Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 31
________________ २७ - - - - - - mame m --a - - न्यामत विलाम संग साथी न कोई तेरा जगत में प्यारे । तू अकेला है सदा सब है तेरे से न्यारे ।। तेरा कोई भी नहीं मात पिता परिवारे । तुझे अग्नी में धरके यह घरके जलाय आयेंगे।। सदा० ॥१॥ धन योवन तो रहा स्थिर न किसी का जगमें। एक दिन छोड़के जाना है तुझे सब जगमे ।। पाप बबूल क्यों बोता है तू न्यामत मगमें । यह न कर्मों के फंदे ओ अंधे हटाए जायेंगे ॥ सदा०॥२॥ - -- - -- - - -- - ----- - --- चाल-रिवाड़ी वाले प्रतीवर को, गावाज नेर में ना यो । - - - मत मान करो मानो प्यारे। मानो प्यारे मानो प्यारे, मत मान करो मानो प्यारे । देक॥ मान किया राजा रावण ने । छिनके बीच गए मारे । मत० ॥१॥ इन्दर झूग इन्द्र कहायो। हार गया रण मझधारे । मत ॥ २ ॥ चक्री सुभूम सुमंत्र मिटायो । पड़ दधि नर्क गयो प्यारे । मत० ॥३॥ न्यामत मान महा दुःखदाई। याहि तने हाँ सुख सारे । मत०॥४॥ -

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