Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 24
________________ न्यामत बिलास | पत्थर नाव समन्दर गहरा- कैसे पार लंघावोगे ।। ३ ।। झूठे देव गुरू तजदीजे, नहीं आखिर पछतावोगे ॥ ४ ॥ न्यामत स्यादवाद मनलावो, यासे मुक्ती पावोगे ॥ ५॥ - - - . चाल-चल चल गोरी योवना उभारे न चल ॥ ( नाटक) सुन २ प्यारे रस्ते में काँटेन बो, काटेनबो मतवारा न हो। टेक विषयों की यारी में होवेगी स्वारी । सातों में साथी न को,न को, न को प्यारे रस्ते में काँटे न वो? भववन में डेरा लुटेरों ने घेरा। उठा मोह निद्रा नसो, नसो, न सो प्यारे० ॥२॥ न्यामत विचारो जरा दिल मे धारो। धर्म रतन को न खो, न खो, प्यारे रस्ते में .. ३॥ - - - -- चाल-नारस को-बूटी लाने का कैसा वहाना हुआ यूटी लाने का ॥ - - - no a m विषय सेनमें कोई भलाई नहीं । कोई सातों में है सुखदाई नहीं । विषय० ॥ टेक.॥ सुनो रावण का हाल, करके सीता से चाल । मरा होके वेहाल, पड़ा नकों के जाल, · जहाँ कोई किसी का सहाई नहीं ॥ विषय० ॥१॥ .पाँचों पांडु कुमार, करके जुवा व्योहार । - -

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