Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 28
________________ has -na - -MALLdaaduaadiancai-ARO - WADAMusal - - - - - - - न्यामत बिलास विषय भोगों में मुझको फँसाया ॥ हाय टेक॥ जमी में आग में पानी में वायु में दरख्तों में। कहूं क्या क्या नचाया नाच लेजा करके कुगतों में !! गया नकों में जब मरके पड़ा नीचे को सिर करके । मुसीबत वहाँ वह देखी थी कलेजा याद कर धड़के । । लाखों बदख्वार मिले, हा हा दुखकार मिले। सारे बदकार मिले पूरे मकार मिले। मुझको देखा जो जरा नर्क में आते आते ।। चीर डाला मेरा तन रस्ते में जाते जाते। हाय कुमता के धोके में आया ।। हाय मुझे ॥ : - - - - - - -- ... चाल-टूटे न दूध के दाँत उमर मेरी कैसे कटै बाली ॥ - टूटी न मोह का जाल करम तेरे कैसे कटें भारी ॥ टेक ॥ एक तो की हिंसा दुखकारी, दूजे झूठ चोरी मनधारी। शील डिगाया लखपरनारी, लीप्रग्रहसारी ॥ ढूंटा०॥१॥ मद्रा और मांस नित खाया, गणिका संग रहा सुखपाया। दूत खेल आखेट रचा, भया जीवन पर हारी ॥ टूटा० ॥२॥ काम क्रोध माया में लागा लोभ मानकर सत को त्यागा। न्यामत नाम धर्म सुन भागा, करी कुमतयारी ॥ टूटा० ॥३॥ - - -

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