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न्यामत विलास ।। ईर्या सुमत यह जिनेन्द्र बखानी ॥ रखियो न्यामत कदम को सँभल, सँभल, सँभल प्यारे मुंह
को० ॥ चल चल ॥३॥
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चाल-नाटक की-दही वाली का तौर दिखाना ॥
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दया करने में दिलको लगाना । हाहा सता न कोई जिया
॥ दया०॥टेक॥ चोरी झूठ को मन से हटायो । होवे भला नगमें सदा, वरने नकों में होगा ठिकाना हाहा०१॥ तज परनारी, है दुःखकारी। सारी जिया मन में जचा,माता भगनीसुताके समाना हाहा॥२ मान लोभ मद माया चारों। चित न लगा, करले दया, न्यामत होवे मुक्ती में जाना ॥ .
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चालानई-अमोलक है यह रतन प्यारे ॥ (पंजावी चाल)
अमोलक मनुष जनम प्यारे, भूल विषयों में मत हारे ।।टेका चौरासी लख जून में प्यारे, भ्रमत फिरा चहुं ओर । नरक स्वर्ग तिर्यंच में प्यारे, पाए दुख अति घोर ।। कहीं नहीं सुख पायो प्यारे ।। अमोलक० ॥१॥
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