Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 20
________________ MAnima . d an - - - १६ न्यामत विलास अरे हारे जग कूप में । ओ चातुर चेतन० ॥ टेक ।। तेरा रूप अरूप अरे चेतन चित्त क्यों लगाया रंग रूपमें । अ० ॥१॥ तृतो आनन्द सरूप अरे चेतन । किसने फँसाया विषय कूप में ॥ अरे० ॥२॥ तज पर परणति अब न्यामत, ध्यान तो लगावो निज रूप में ।। अरे० ॥ ३ ॥ चाल-नाटक ॥ है सनम तूचता कहाँ जाके छिया मुझे देतो पता नहीं आता नज़र || (काफ़ी रागजोग) - - - है सनम तो तेरा, तेरेदिलमें बसा, तू फिरेहै कहाँ नहीं . . आता इधर। तू खुदीको हटा, अपने आपे में आ, जरा परदा हटा । . . . तुझे आवे नजर ।। टेक ॥ क्यों शिवाले गया, काहे गिरजा गया, काहे मसजिद में . . जाके झुकाया है सर । तूने ढूंढ़ा नहीं, वरने था वो यहीं, तेरा माहेजवीं तेरे अन्दुसा॥ योही गंगा गया योंही जमुना गया, योही भटका फिरा , तू तो दर दर। अब तू आ अपने घर, प्यारे भटका न फिर, लख करके नजर दिलमें दिलवर ॥ २॥ - - -

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