Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 9
________________ -- न्यामन विनाम ; भोरमा पूजा का बला मोजाना है। साँझ समय सामायक करना याद न आना है ॥ १ ॥ गुमभक्ति अम शाम्र स्वाच्या वन नहीं आता है तप मंयम और दान का दना मन नहीं भाना है ॥ ॥ - यह पट कम श्रावक जिन शामन दाशाना है। एक नहीं पूरा होता दिन वीता जाना है ॥२॥ पाताह धर्मार्थ काम शिव जो शाणाता है । दो शक्ती दीनानाथ सदा न्यामत गुन गाना है ॥ ४ ॥ - - - - - - - - - - - - - -- - पार--मुस्ता होने का प्रप कामगार न TYPE ||जय महावीर धरम नीर पिलानेवाले। | काल विकाल में शिव मार्ग दिखाने वाले ॥१॥ मापने ज्ञान से परघट किया जिन शासन को । सब विपक्षी काही युक्ती से हटाने वाले ॥२॥ था भरम कोन है इस जगका बनाने वाला। हे स्वयं सिद्ध यता भ्रम मिटाने वाले ॥ ३ ॥ सात के तत्त्व दरव सारे अनादी हैं अनन्त । बयवत्पाद ध्रव भेद बताने वाले ॥2॥ अर्पित नर्पितहि सिद्ध होता है वस्तु का साए । नय व परमाण से यह वात जिनाने वाले ॥ ': 1) म्यादवादादि से मंडन किया जिनमन न्यामत । मारे मत जीनके जिननाम वगन बान 16 ॥ - - -

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