Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 12
________________ - - न्यामत बिलास १२ चाल- भान पाली श्रीमती जननी सुन मायारी॥ - - आज मानों विघन हरन धन छाए जी ॥ टेक ।। शांत स्वरूप लखो जिनतेरो, शांति सुधा बरसायेजी। आज०॥ १॥ मन दादुर भवबनमें प्यासो, तृश्ना कलुष मिटायेजी ॥ आज०॥२॥ भागे रोग सोग सबमेरे, आनंद उरन समायेंजी ।। आज०॥३॥ निरखि श्रीजिन आनन भानन, भ्रमतम घाननसायेजी। . आज०॥४॥ न्यामत समकित सम्पत पाई, जिन चरनन चितलायेजी। आज० ॥५॥ .. १३ चाल-तुम बोलो या न बोलो आशक तो हो चुका हूं.' करो पार नैय्या मेरी, डूबा में जारहाहूं ॥ टेक ॥ भवसिन्धु है अपारा, जिसका न.वारपारा । एजी हैरत में आरहाहूं ॥१॥ मदलोभ क्रोध माया, तूफान सिर पे आया । चकर मैं खारहाहूं ॥२॥ मिथ्यात अंधेर छाया, रस्ता,मेरा भुलाया, : . " उलटा मैं जारहा ॥३॥ - - -

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