Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 13
________________ A mravenue - न्यामत विनाम : परमाद चोर आया, पुरुषार्थ धन चुगया, आलम में आग्हा हूँ ॥2॥ तारण तरण तुहीं है, भव दुम्ब हाण तुहीं है, निश्चय में लारहाई ॥५॥ न्यामत है मझधास, ट्रक दीजियो सहारा, में सर झुका रहा है ॥६॥ ११ जान-गुम पिक दमन भैय्या नाय नाम UNITE: | अब तुम विन दीनानाथ दयानिधि कान मुने मेरी : टेक ॥ में मतिहीन महाहद वादी तुम त्रिभुवन राई । भवभव के प्रभुतुम जगनायक अरज मुना मेरी ॥१॥ इस जगमें सब स्वास्थ साधी झुठी मेग मरी । संकट में प्रभु तुम ही सहाई शरण गही तेग ॥ २॥ न्यामत श्री जिन के गुनगावे वरनन सीम नवाई। भरमत हूं आसार जगत में मेटो भव फेरी ॥ ३॥ meanin । घाल- चमन मापन हूँ फिनना बादामा सान In Har) तू ज्ञाता दृष्टा है सब का, सुगमनेता काम भेना | टेक ॥ तू अविनाशी चिन मृरत है, अनन्त चतुष्टय पग्नि है, सुखकारी है, दुखकारी है, हाहाँ नू जगजनता है। 1. तूने शिवमारगदरशाया, धरम बतलाया. लगाया गाने में ! -

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