Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 14
________________ १० न्यामत बिलास जनमनरंजन, सब दुख भंजन, जनम निकंजन तु निरंजन क्या क्या क्या || तू ज्ञाता दृष्टा है सबका सुगम नेता करम भेता || १६ चाल - रघुवर कौशल्या के लाल मुनि को यज्ञ रचाने वाले ॥ सन्मति भवसागर के माँह नैय्या पार लघाने वाले ॥टेक॥ आए पावापुर के बीच, मारे बैरी आठों नीच । अपने धनुष ध्यान को खींच, करम के कोट उड़ानेवाले ॥१॥ लेकर चक्र सुदर्शन ज्ञान, करके मिथ्या मत को भान । जितलाकर नयमति परमाण | मुक्ति की राह बतानेवाले ||२|| १७ चाल - ऐसे तुमसे ऐरे गैरे मैंने लाखों देखे भाले (नाटक) लेलो श्री जिनवर का शरणा जल्दी मुक्ति जानेवालो ||टेक॥ सत्य धर्मका टिकट कटालो, निजगुण सामाँ बुक करवालो | शिवपुर की बिलटी करवालो ॥ श्री० ॥ दर्शन ज्ञान चरण की गाड़ी, आती है वह आती है । जो सीधी शिवनगरी को प्यारे जाती है वह जाती है | आवो आवो जल्दी आवो, आश्रव बंध महसूल चुकावो । स्यादवाद को टिकट दिखावो, चौदह दरजों में चढ़नावो ॥ अंजन ध्यान का अटल, कोलकमका जल ।

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