Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 10
________________ न्यामत बिलासं - चाल--को जय अंबे गौरी ॥ (आर्ती) - जय जिनवर देवा, जय जिनवर देवा । हित उपदेशी सबके, हितउपदेशी सबके, बीतराग देवा । जय० ॥ टेक॥ . | सकल ज्ञेय ज्ञायक तदपि हो, निज आनन्द रसलीन। सो जिनेन्द्र जयवंतो, अरिस्जरहस बहीन ॥ जय० ॥१॥ मोह तिमर मिथ्या तम हरता, ज्यो दिनकर परकाश। तुमरे नाम ध्यान से, होत करम का नाश ॥ जय० ॥ २॥ तुम जग भूषन रहित बिदूषन, तुम सबके सरताज । भव दधि सागर माँही, तारण तरण जहाज ।। जय० ॥३॥ तुममन चिंतत तुम गुण सुमरत, निज पर बस्तु विवेक । प्रगटे बिघटे आपद, छिनमें एक अनेक ॥ जय० ॥४॥ तुम अविरुद्ध विशुद्ध सुबुद्धी, चेतन सिंद्ध सरूप । परमातम परमेश्वर पावन, परम अनूप ॥ जय० ॥५॥ जो तुम ध्यावै शिव सुख पावै, मेटे सकल कलेश । निजगुण धारण कारण न्यामत नमत जिनेश ॥ जय० ॥६॥ चालवारीजाउंरे साँवरिया तुमपर वारनारे ॥ तनमन सारेजी साँवरिया तुमपर वारनाजी, तुमपर . वारनाजी ॥ तन०॥टेका

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