Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 8
________________ ४ न्यामत बिलास मिथ्या अंधेरा मगर मोहने घेरा, कर्मों के विकट पहार | अवार० || २ || सातों विषय क्रोध मद लोभ माया, आएलुटेरे दहार । अबार० ॥ ३ ॥ न्यामत की बेड़ी भँवर में पड़ी है, बेगी से लोना उभार । अवार० ॥ ४ ॥ ६ चाल - न लेते खबरिया हमारी रे || दादरा || लीजो लीजो खबरिया हमारी जी । हमारी जी हमारी जी, लीजो लीजो खबरिया हमारी जी ॥ टेक घोके से आगये हैं कुमतिया की चाल में | रक्खा है हम को बाँध के कर्मों के जाल में ॥१॥ बीता अनाद काल हाल कह नहीं सकते । जो दुख हमें दिये हैं वो अब सह नहीं सकते || २ || ॥ तन धनका नाथ कुछभी भरोसा मुझे नहीं । माता पिता भी कोई संगती मेरे नहीं ॥ ३ ॥ सच है कि हैं संसार में कोई न किसी का । न्यामत को सिवा तेरे भरोसा न किसी का || ४ || ७ चाल--है सोरठं अधिक सरूप रूपका दिया न जागा मोल ॥ प्रभु हगे मेरा परमाद मुझे परमाद सताता है || टेक ||

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