Book Title: Hemchandra Kosh
Author(s): Hemchandracharya,
Publisher: Jaina Publishing Company
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हेमचंद्र नानार्थ १४३
डुरो वर्णन इतोः॥ पांडुरं तुमरुवकेपिण्डारो भिसु के दुमे ॥ ५७७ ॥ महि बी पाल के क्षेपे पिठरंम थि मुस्तके ॥ उरवायांच पिंजरस्तु पीत रक्ते श्वभिद्यपि॥ ५७८ ॥ पिञ्जरं शातकुम्भेस्पात्सीवरःस्थूल कर्मयेोः ॥ पुष्करंद्वी पतीर्थाहि खगरागैौषधांतरे ॥ ५७९॥ तूर्यास्यैः सिफले कोडे मुंडावेज लें। बुजे ॥ ववष्ठशठ यो धुरोरम्य नम्रयोः ॥ ५८० ॥ बंधुरन्तु त यो सेबंधुजीवविडंग यो बंधुरा पण्ययोषा यांबरो नीवृदन्तरे ॥ ५ ८ १॥ वर्वरातु फेजिका यांपामरे के शचक्रले पुष्येच वर्वराशा के वर्करःपशुनर्मणोः ॥ ५८२॥ वदास्या देला पर्ण्याविष्म क्रांनौषधावपि ॥ वदरी को लिकर्पास्यो बदर तुतयोः फले ॥ ८३ ॥ दरस्तु कर्पासास्थिभंगुरौवक्रनश्वरौ ॥ भ्रामरं मधुरष दोर्भास्करो वन्हि सूर्ययोः ॥ ५८४॥ भार्यारुरन्यस्त्री पुत्रोत्पादके मृगशैलयेोः॥ भृंगारीस्या मिल्लिकायां भृंगारःकन का लुका ॥ ५८५॥ मत्सरः पर संप्रत्यक्षमायांतद्वतिधि ॥ कृपणे मत्सरातुस्यान्मक्षिकामकरो निधौ ॥ ५८६ ॥ नक्रेराशिविशेषेच मन्दोमंथपर्वते ॥ स्वर्गमन्दार योर्मन्देव हलेमधुर विषे ॥ ५८७॥ मधुरस्तु प्रिये स्वादौर से चरसव त्यपि ॥ मधुरा मथुरापूर्यो यष्टि मेदामधूलिषु ॥ ८८ ॥ मधुकुक्कुटि कायाच मिश्रयाशतपुष्पयोः॥ मन्दिरो मकेरावा से मन्दिरं नगरं गृहे ॥५८९॥ मन्थरः सूचके केशेब क्रेमन्दे पृथौम थि। मंथरंतुकुसुंभ्या स्यान्मन्दार स्त्रिदशद्रुमे ॥ ५९॥ पारिभद्रेऽर्कपर्णचम सूरोमसु रोऽपिच ॥ मसुराचमसूराचचत्वारः पण्ययोषिति ॥ ५९१॥ तथा व्रीहि विविशेषेच मर्मरोवसनान्तरे ॥ शुष्कपत्र ध्वनौ चापिमर्मरीपी तदारुणि॥ ५९२ ॥ मयूरः केकिचूडारल्या षधेऽपा मार्गकै किनोः ॥ महेन्द्रो वासवे शैले मज्जरी तिलकेद्रमे । ५९३ ॥ वल्ल स्थूलमुक्ता यांमाठरो व्यास विप्रयेोः ॥ सूर्यानु गेध्थमानरिः स्यात्व द्वाश विडा लयोः॥ ५९४॥ मिहिरोऽर्केऽम्बुदेबु देमु हर कोर का स्त्रयोः ॥ लष्टा दिभेदने चापि मुहिरो मूर्खुकामयैः।। ५९५॥ मुदिर का मुके मेघेमुकु रोमकुरो यथा ॥ कुलाल दण्डे चकुलेको रका दर्श योरपि ।। ५९६ ॥ मुमु
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