Book Title: Hemchandra Kosh
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 221
________________ हेमचंद्र नानार्थ १६९ कांट षोयातुधानेपलङ्कषातु किंम्पुके॥ ३१९॥ | गोसु रेगुग्गु लौ लाक्षारा स्ना मुण्डीरिका सुचभूत रक्क्त शारवोटेश्यो नाककलिवृक्षयोः ३२० महाघोषो महाशब्देस्यान्महाघोषमापणे ॥ महाघोषा शृंग्योषध्या राजरक्षः पियाल के ॥ ३२१|| सुवर्णालुतरौ वा तरुषः शक्रशरासने ॥ वातू लोकोच यो वा पिविशालाक्षो महेश्वरे ।। ३१२।। तार्ये विशा लने च बीर वृक्षे ||र्जुनद्रुमे ॥ भल्लाते सङ्कटाक्षक्क कटा सिणिधव द्रुमे ॥ ३२३॥ चतुः स्वरषान्ताः॥ अधिवासः स्यान्निवा से संस्कारे धू पॅनादिभिः॥अवध्वंसक्त निन्दायां परित्यागेऽवचूर्णने ।। ३२४ ॥ कल हे सो राजहंसे का दम्बे नृपसत्तम। कुम्भीन सरत्व हो कुम्भीन सील वणमात्तरि॥ ३२५॥ घनरसो एफ कपूर सान्दे सिद्धरसे द्रवे ॥ मोस्टेर पीलुपण्यचचन्द्रहासोऽसि मात्र के ॥ ३२६ ॥ दशग्रीव कृपाणेच ताम रसन्दुर कजे ॥ ताम्र कांचन मोद्दिव्यच सुस्त्वन्ये सुलोचने॥ ३२७॥सु गन्धभेदेति श्रेयसन्तु कल्याण मोक्ष योनीला सानदी भेदेऽप्सरो भेदेतडित्यपि ॥ ३२ ॥ पुनर्वसुः स्यान्नक्षत्रेकात्यायनमुनावपि ॥ पौर्ण मासायाग भेटे पोर्णमासी तु पूर्णिमा।। ३२९ ॥ मलीमसः पुनः पुष्य का शीशम लिनायूसो. ॥ महारसः पुनरियोखर्जूर ट्रो कशेरुणि ॥३३॥ मधुरसातुमूर्बा याट्रासादुग्धिकयो र पि ॥ राजे हे स्तु कादम्बे कलहंसे नृपोत्तमे ॥ ३३१ ॥ रासेर सो रससिद्ध बलौ शृङ्गार हा सयोः। षष्ठी जाग रकेरसगोष्ठ्या विश्वावसुः पुनः ।। ३३२ ॥ निशिगन्धर्वभेदेन विभाव स रक्त भास्करे हुताशने हार मे दे चन्द्रेश्नःश्रेयसं सुखे ॥ ३३३॥ परानन्दे चभट्रेचस वरास रक्त धूण के ॥ बाद्यभेदे ॥ चतुःस्वरसान्ताः ॥ वग्र हु स्तुज्ञानभेदेगजा लिके ॥ ३३४॥ प्रतिबन्धेदृष्टि रोधेऽप्यभिग्रहस्तु गौ खे। अभियोगे ऽभिग्रहणेऽवरोहस्तुल तो हमे ॥ ३३५॥ तरोरङ्गे । बतर " प्यारो होटवार के ॥ अश्वारोहा ! श्वगन्धायामुपय हो:नुकू लवान् ॥ ३३६॥ द्युपयोग यो वोपना हो वीणा निबन्धने॥णाले पनपीठे च गन्धवा है। मृगेऽनिले॥ ३३७ ॥ गन्धव हा तु नासा यांत मो पहोजिनेश्वौचन्द्रेऽग्नौ तनूरुहस्तु पुत्रे गरु तिलोम्नि च ॥ ३३८

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