Book Title: Hemchandra Kosh
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 203
________________ हेमचन्द्र नानार्थ १५१ कोइ व्यवसाये अकर्षश्वतरीषः शोभनाकृतौ ॥ भेलेऽन्धो व्यवसायेचता विषाऽब्धिसुवर्णयोः ॥७३५॥ स्वर्गेचन हुषो राज विशेषे नागभिद्यपि निकषः शाणफलकेनिकषायातुमातरि ॥७३६॥ निमेषनिमिषनेत्र मीलने कालभिद्यपि॥ प्रत्यूषः स्याद् सौ प्रातः प्रदेोषःकाल दोष योः ॥ ॥१३७॥ परुषकर्बुरेको स्यान्निष्ठरवचस्यपि ॥ पीयूष अमृतेनव्य सूतधेनोः पयस्यपि॥७३॥ पुरुषः स्वात्मनिनरेपुन्नागेचाथ पौरु विस्तृत दो:पाणिपुरुषोन्मान तेजसोः ॥ ७३९॥ पुंसः कर्म णिभावे च महिषी नृप योषिति।। सौरिभ्यामौषधीभेदेमा रिषस्त्वार्थ शाकयोः ॥ ७४॥ मारिषादक्षजननी मृगाक्षी मृगलोचना।त्रियामे न्द्रवारुणीच रक्तासोरक्तलोचने ।। ७४१ ॥ चकोरे महिषेक्ररेपाराव ताय रोहिषः॥ मृगकत्तृणमत्स्य विश्लेषस्तु वियोजने ॥७४२ वि धुरेचाथशुश्रूषोपासना श्रवणेच्छयोः । शैलूषः स्यान्नटे विल्वेस हर्षः पत्रने मुदि ॥ १४३॥ स्पर्द्धायांच समीक्षा तु ग्रन्थ भेदेस मी क्षणे॥ त्रिस्त रषान्ताः। अलसःस्याहुमभेदे पाट्रोगेक्रियाज डे ।। ७४४ ॥ अलसानु हंसपाद्यांन गो को गाँव सः ॥ विहङ्ग सिंहशरभा आश्वासःस्यान निर्वृत्तो ॥ ७४५॥ आख्यायिका परिच्छेदे पीष्ठा सोधन्वधन्विनोः॥ ॐ चहास: प्राणने श्वा से गद्यपद्यान्तरेऽपिच ॥ ७४६॥ उत्तंसः शे खरे कर्ण पूरे चापि वनं सवत्॥ उदचिरुत्प्रभग्नौचकनी याननुजेऽल्पके ७४७ अति सूनि की कसरतु कि मौकी कसका स्थिनि ॥ तामसः सर्परबल यो स्वामस्तस्या निशामयोः ॥ ७५८॥ त्रिस्रोताजान्हवीसिंधुभिदोर थ दिवो कसैौ ॥ चातक स्त्रिदशश्वापि दीर्घायुर्जीव के द्विके ।। ७४९ ॥ मा कैडेये शाल्मलित रौन भसस्तन दीप तौ ॥ गगने तुभेदेचपनसः कपिरुग्भिदौः॥७५॥ कण्टके कण्ट किफ लेप्रचेता वरुण सुन हृष्टे पायसः पायसंश्रीवासपरमान्नयेोः॥ ७५० ॥ बीभत्सो विल ते क्रूर रसेपा घृणात्मनि ॥ बुक्कसीनीलिकाका ल्यार्बुक सःश्वपचेधमे॥७५२ मानसं स्वांतसर सोरभसोवेगहर्षयोः।। राक्षसीकोण पीदंष्ट्राशेद दवतुरोदसी ॥ ७५३॥ दिवि शुब्यु भयोश्वापि ज्ञाहसोहोलया मोः।

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