Book Title: Hemchandra Kosh
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 215
________________ हेमचन्द्रनानार्थ १६३ का ॥ वाहनेऽङ्गमर्दने च संप्रयोगी तुका मुके ॥ कला के लौ सुत्र पोगेस रो जि नीस रोरु है | २०१॥ सरोरुहिण्यां का सारेस्तनयित्नुः पयोमुचिगमती स्तमिते रोगेच सारसन मुरम्छु दे ॥ २०२ ॥ कां च्यां च सामयो निस्तु सामा स्थेद्रुहिणो गजे ॥ सामिधेनीम मिह चोः सुयामुनो जनार्द्दने ॥ २०३॥६ त्सराजे प्रासादे द्विभेदेचाथसुदर्शनः। विष्णश्व क्रेसु दर्शन्यमरा वत्या सुदर्शना ॥ २०४॥ आज्ञायामोषधीभेदेमे रुजम्बासुराभिदि ॥ सौदामिनीन डिझेदन डि तोरसरोभिदि ॥ २०५ ॥ हर्षयितुः सुते स्व चतुःस्वरनान्ताः ॥ वले पो गर्वले प्योः ॥ दूषणेऽप्यपलाप स्तुप्रेमा पन्ह व या रथ ॥ २०६ ॥ उपतापोग देतापेज लकेप्यन्धुगर्भ के सर स्या जीव पुष्यंतुदमन के फणिनके ॥ २०७ ॥ नाग पुष्पस्तपुन्नागेचंप केनागकेसरे॥ परिवा पोज लस्थाने पर्युतिपरिवारयोः ॥ २०८॥ पिंड पुष्पं जपा या स्पा दशो के सरसीरुदे ॥ बहुरूपः समरे विष्णौ सन्टेन णकेशिवे॥ २०९॥ मेघपुष्यंतुना देस्या पिण्डाभ्रे सलिलेपिच॥वित्र लापाविरोधोक्ता वनर्थकवचस्यपि ॥५१॥ रकधू पोरक्षधूपेसिद्ध केऽथवृषाकपिः ॥ वासुदेवे शिवेऽग्नौ च हेमपुष्यंतु चंपके ॥ २१९ ॥ शोक द्वैौ जपापुष्पे ॥ चतुःस्व र पान्ताः राज जेबूरतु जंबुभित ॥ पिंड खर्जूर रक्षश्वाप्य ॥ चतुः स्वरबान्ताः॥वष्टंभ रेक्तको चने ॥ २१२ ॥ संरंभारङ्गयोः स्तंभेशातकुम्भोऽश्वमारके ॥ शातकुम्भन्तुकन के चतुःस्वरभान्ताभ्यागमः समरेऽन्तिके ॥ २१३॥ घाते रोपे भापगमे अनुपमस्तु भवेदयं ॥ उपमार हितेऽनुप मे भ्यामुपगमः पुनः ॥ २१४ ङ्गीकारेऽन्तिक गतावुपक्रमस्तु विक्रमे ॥ उपधायां तदाद्याचिख्यासा चिकित्स योरपि ॥ २१५ ॥ आरंभ जलगुल्मो जलावर्ते म्बु- दत्तरे ॥ कमवेदण्ड या मस्त दिव सेकुम्भजे यमे ॥ २१६ ॥ पूर्वगमः कपीने के पराक्रम रक्त विक्रमे सामर्थ्य चाभियोगे च महापद्मः पुनर्निधौ नाग संख्या भिदो पतिया मो भुक्तसमुक्ति ते ॥ जीर्णेचसार्वभौमस्तुदि ग्गजे चक्रवर्त्तिनि॥ २९८ ॥ चतुःस्वरमांताः॥ अनुशयः पश्वात्तापेदी र्घद्वेषानुबन्धयोः ॥ अन्वाहार्यममावास्याश्राद्ध मिरेश्व दक्षिणा २१९

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