Book Title: Hemchandra Kosh
Author(s): Hemchandracharya,
Publisher: Jaina Publishing Company
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हेमचन्द्रनानार्थ १५२
कां·३
तृहमा तिरेकऔत्सुक्ये वरीयान् श्रेष्ट योगयोः ॥७५४॥ अतिपून्य तिविस्तारेवाय सत्वगुरौद्धिके ॥ श्री वा सेवा यसी का को दुम्बरी का क मान्यपि॥ ७५५॥ वा हसो जग रेवारिनिर्याणे सुनिषण्णयोः ॥ वि सोहावेलीला यांविहायोव्योमपक्षिणः ॥७५६॥श्रीवासः स्या इक धूपेकमले मधुसूदने ॥ श्रेयसी गजपिप्पल्यामभयाशस्त्रयो पि॥५॥ समासः समर्थनायास्या संक्षेपैरुपद्ययोः॥ सप्तार्चिः क्रूर ने ग्नौ साधीयान निशोभने ॥७५॥ अतिवादे साहसंतुदमे दुष्कृत कर्मणि ॥ अविमृष्यकृतौ द्वेषे सारसं सर सी. रुहि ॥ ७५८९०॥ सा रसः पुष्कराज्ये होः सुमनाः प्राज्ञटै वयोः गजात्यां पुष्ये सुमेधास्त ज्योतिषात्मविदुष्यपि॥७६॥ सुरसः स्वादौपर्णासि त्रिस्वरसा नाप्यन्दचित्रमेखले ॥ अत्यू हा तुनीलिकाया माग्र होग्नुय ग्रहे ॥७६१ ॥ असङ्गाक्रमणं योश्वाप्यारो हो दैर्ध्य उपे भरो हणेगजारोह स्त्री कट्यांमान भिद्यपि॥७६॥ा कल हो मण्ड ने खड़ कोशेस मायो॥ कटाहः स्यात्कूर्मपृष्ठे कर्परे महि मी शिशौ ७६३ तैलादिपाक पात्रेतु दात्यूहःकलकण्ठके ॥ चातके । पिनवा हस्त्वाद्य तिथौ नववासरे ॥ ७६४ ॥ निर्व्यू हो हारिनिर्यासेशेखरे नागदन्त के ॥ निरूहो निय है तके वस्तिभेदेऽथनिग्रहः ॥७६॥ के भने सी भिप्रग्रहः किरणेभुजे ॥ तुला सूत्रे श्वादिरश्मौ सवर्णेह लिपादपे ॥ ७६६॥ बन्धनेवाप्रवाहो व्यवहारांबुवेगयोः। प्रव हो वायु भेदेस्या साधुमात्रेच हिर्गतौ। ॥१६॥ग्राहः स्यातुला सूत्रे पादीनान्दबंध
पहोवा आरम्भेवारा होनाग के किरौ॥ ७६ ॥ मेघे मुस्ते गिरे। निवाराही गृष्टिभेषजे ॥ मातर्यपि विदे मैथिले।पिचर ॥७६९ विग्रहो वृहद्धारेग्राहसंक्षेप पोरपि सुबह सम्पनहे सुवहाशल्लकी डुमे॥७॥रास्त्राशेफालिकागो धापोला पर्णिकान
इत्याचार्य हेमचन्ट्रविरचितेऽनेकार्थ संग्रहेत्रिस्वरनामसंग्रह काण्डस्तृतीयः।

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