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हरीतक्यादिवर्गः। चूर्णार्थे चेतकी शस्ता यथायुक्तं प्रयोजयेत् ।
चेतकी दिविधा प्रोक्ता श्वेता कृष्णा च वर्णतः ॥ १२॥ टीका-और चूर्ण बनानेमें चेतकी श्रेष्ठ होती है. उसकी योगके अनुसार योजना करनी. और चेतकी रंगमें दोपकारकी होती है, एक सफेद दूसरी काली॥१२॥
षडङ्गुलायता शुक्ला कृष्णा वेकामुला स्मृता।
काचिदास्वादमात्रेण काचिद्गन्धेन भेदयेत् ॥ १३॥ टीका-सफेद छअंगुल लंबी और काली एकअंगुल लंबी होती है; कोई खानेमात्रसें दस्त लाती है और कोई सूंघनेमात्रसेंही दस्त लाती है ॥ १३ ॥
काचित्स्पर्शेन दृष्ट्यान्या चतुर्धा भेदयेच्छिवा । चेतकीपादपछायामुपसर्पन्ति ये नराः ॥ १४ ॥ भिद्यन्ते तत्क्षणादेव पशुपक्षिमृगादयः । चेतकी तु धृता हस्ते यावत्तिष्ठति देहिनः ॥ १५॥ तावद्भिद्येत वेगैस्तु प्रभावान्नात्र संशयः।
न धार्ये सुकुमाराणां कशानां भेषजद्विषाम् ॥ १६ ॥ टीका-और कोई स्पर्श करनेसें और कोई देखनेसेंही दस्त लाती है. ऐसी चार प्रकारकी हर्ड होती है. जो मनुष्य चेतकीके वृक्षकी छायामें जाते हैं ॥ १४ ॥ उनकों उसी क्षण दस्त लगजाता है, और मनुष्यके शिवाय पशुपक्षीमृगादिकोंकोभी दस्त लगजाता है, और मनुष्य चेतकीकों जबतक धारण करते हैं ॥ १५॥ तबतक उसके प्रभावसे दस्त लगता है इसमें कुछ संदेह नहीं है. सुकुमारअवस्थावाले और कुश और औषधिके शत्रु इनकों धारण करने योग्य नहीं ॥ १६ ॥
चेतकी परमा शस्ता हिता सुखविरेचनी।
सप्तानामपि जातीनां प्रधानं विजया स्मृता ॥ १७ ॥ टीका-चेतकी सुषवी रेचनमें बहुत अच्छी होती है और इन सातो जातकी होंमें विजयानामकी हर्ड सबमें प्रधान कही है ॥ १७ ॥
सुखप्रयोगा सुलभा सर्वरोगेषु शस्यते। हरीतकी पंचरसा लवणा तुवरा परम् ॥ १८॥
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