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श्री मश
॥ २४ ॥
॥ अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥
|| ॐ || अथ प्राकृतम् || ८ | १ | १ | बहुलम् || ८ | १ | २ || आर्पम् || ८ | १ | ३ || दीर्घ- स्वौ मिथोवृत्तौ ॥ ८ । १ । ४ ॥ पदयोः सन्धिर्वा | ॥ ८ ॥ १ ॥ ५ ॥ न युवर्णस्यास्त्रे || ८ | १ | ६ ॥ एदोतोः स्वरे || ८ | १ | ७ || स्वरस्योद्वृत्ते || ८ | १ | ८ || स्यादेः || ८ | १ | ९ || लुक् ॥ ८ | १ | १०|| अन्त्यव्यञ्जनस्य ।। ८ । १ । ११ ॥ न श्रदुदोः ॥ ८ । १ । १२ ॥ निर्दुरोर्वा || ८ | १ | १३ || स्वरेऽन्तरथ ॥ ८ । १ । १४ ॥ स्त्रियामादविद्युतः || ८ | १|१५|| रोरा || ८ | १ | १६ || क्षुध हो || ८ | १ | १७ || शरदादेरत् ॥ ८ । १ । १८ ॥ दिक्-प्रावृषो सः । ८ । १ । १९ ॥ आयुरस्सर मोर्वा ॥ ८ । १ । २० ॥ ककुभो हः || ८ | १ | २१ || धनुषो वा ॥ ८ । १ । २२ ॥ मोऽनुस्वारः || ८ | १ | २३ || वा स्वरे मथ | ८ | १ | २४ ॥ ङ-ज-ण-नो व्यञ्जने ॥ ८| १ | २५ || वक्रादावन्तः || ८ | १ | २६ ॥ क्त्वा स्यादेर्ण स्वोर्वा ॥ ८ । १ । २७ || विंशत्या देलुक् || ८ | २ | २८ || मांसादेव || ८ | १ | २९ ॥ वर्गेऽन्त्यो वा ॥ ८ ॥ १॥ ३० ॥ प्रावृद्-शरत्तरणयः पुंसि ॥ ८ । १ । ३१ ॥ स्नमदामशिरो नभः || ८ | १ | ३२ ॥ वाक्ष्यर्थ वचनाद्याः || ८ | १ | ३३ || गुणाद्याः क्लीवे वा ॥ ८ । १ । ३४ ॥ वैमाञ्जल्याद्याः स्त्रियाम् ॥ ८ । १ । ३५ || वाहोरात् || ८ | १ | ३६ || अतो डो विसर्गस्य || ८ | १ | ३७ || निष्यती ओस्सरी माल्य स्थोर्वा ॥ ८ ॥ १ ॥ ३८ ॥ आदेः ॥ ८ । १ । ३९ ॥ त्यदाद्यव्ययात् तत्स्वरस्य लुक् ॥ ८ । १ । ४० ॥ पदादपेर्वा ॥ ८ । १ । ४१ ॥ इते: स्वरात् तथ द्विः ॥ ८ । १ । ४२ ॥ लुप्तय-र-व-श-य-सां श-ष-सां दीर्घः ॥ ८ । १ । ४३ ॥ अतः समृद्ध्यादौ वा || ८ | १ | ४४ || दक्षिणे हे || ८ | १ | ४५ || इ: स्वमादौ || ८ | १| ४६॥ काङ्गारललाटे वा ॥ ८ । १ । ४७ ॥ मध्यम-कतमे द्वितीयस्य ॥ ८ । १ । ४८ ॥ सप्तपर्णे वा ॥ ८ । १ । ४९ ॥ मयट्यइव || ८ | १ | ५० ॥ ई हेरे वा || ८ | १ | ५१ ॥ ध्वनि - विष्वचोरुः ||८ | १ | ५२ ॥ (च) वन्द्र खण्डिते णा वा ॥ ८ । १ । ५३ ॥ गवये वः ॥ ८ । १ । ५४ ॥ प्रथमे प थोर्वा || ८ | १ | ५५ ॥ ज्ञो णत्वेभिज्ञादौ || ८ | १ | ५६ ॥ एच्छय्यादौ ॥ ८ | १ | ५७ ॥ वल्ल्युत्कर- पर्यन्ताश्चर्ये वा ॥ ८ । १ । ५८ ॥ ब्रह्मचर्ये घः । । ८ । १ । ५९ ।। तोऽन्तरि ॥ ८ ॥ १ ॥ ६० ॥ ओत्पद्ये ॥ ८ | १ | ६१ ॥ नमस्कार- परस्परे द्वितीयस्य || ८ | १ | ६२ ॥ वार्षौ || ८ | १ | ६३ ॥ स्वपायुच्च ॥ ८ । ६४ ॥ नात्पुनर्यादाइ वा || ८ | १ | ६५ || | वालाब्वरण्ये लुक् || ८ | १ | ६६ ॥ वाव्ययोत्खातादावदातः || ८ | १ | ६७ ॥ घञ्वृद्धेर्वा || ८ | १ | ६८ || महाराष्ट्रे || ८ | १ | ६९ ॥ मांसादिष्वनुस्वारे || ॥ ८ । १ । ७० श्यामाके मः ||८ | १ | ७२ ॥ इ: सदादौ वा ॥ ८ । १ । ७२ ॥ आचार्ये चोच्च ॥ ८ | १ | ७३ ॥ ई : स्त्यानखल्वाटे || ८ | १ | ७४ ॥ छः सास्ना-स्तावके || ८ | १ | ७५ ॥ ऊद्वासारे || ८ | १ | ७६ ॥ आर्यायां यः श्वश्वाम् || ८ | १ | ७७ ॥ एद्राये || ८ | १ | ७८ ॥ द्वारे वा || ८ | १७९ ॥
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अष्टाध्य