Book Title: Haa Murti Pooja Shastrokta Hai Author(s): Gyansundarmuni Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala View full book textPage 9
________________ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है । आशाओं के लिये किल्ले बांधे जाने लगे। फिर भी अफसोस इस बात का है कि हमारी समाज में अभी ऐसे लोगों का भी अभाव नहीं है कि वे इस सगंठन के युग में भी अठारवीं शताब्दी के स्वप्न देख रहे हैं । जिसमें पहला नंबर तो है स्थानकवासी मुनि शोभागचन्दजी (संतवलजी)का आपने हाल ही में जैन प्रकाश पत्र में 'धर्मप्राण लोकाशाह' नाम की लेखमाला की ओट में शासन रक्षक धर्मधुरंधर पूर्वाचार्यो की और मूर्ति की भर पेट निन्दा कर शान्त हुवे समाज में क्लेश के बीज आरोपण किए है । दूसरा नंबर है स्थानकवासी पू. रत्नचन्दजी के टोला के साधु सुजानमलजी का कि आपके मौलिक गुण (1) गत वर्ष पीपाड़,रोड़ पर मिटिंग के अन्दर आपके ही टोला के साधु लाभचंदजीने प्रकाशित किया था । तीसरा नंबर है स्था. पू.रुघनाथजी के टोला के साधु मिश्रीलालजी का आप 'लघुवय में ही स्वच्छन्दी हो मूर्ति की निन्दा कर शान्त समाज में क्लेश फेलाकर ठीक नामवरी हांसल की कि पूज्यPage Navigation
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