Book Title: Haa Murti Pooja Shastrokta Hai Author(s): Gyansundarmuni Publisher: Ratnaprabhakar Gyan PushpmalaPage 51
________________ ५० हाँ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है । कहते हो । महरबान ! जरा सुने और सोचे, पहला बारहवर्षी दुकाल चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहुस्वामी के समय पडा था, जिसे आज २३०० वर्ष के करीब होते हैं । और दूसरा बारहवर्षीय अकाल दशपूर्वधर वज्रस्वामी के समय में पडा, इसे करीब १९०० वर्ष होत हैं । आप के मतानुसार बारहवर्षीय दुष्काल में ही मंदिर बना यह मान लिया जाय तो पूर्वधर श्रुत केवलियों के शासन में मंदिर बना और उसका अनुकरण २३०० वर्ष तक धर्मधुरंधर आचार्योने किया और करते हैं । तो फिर लोंकाशाह को कितना ज्ञान था कि उन्होंने मंदिर का खण्डन किया और उन्हें पूर्व आचायाँ की अज्ञानी मान लिया । मंदिरो की प्राचीनता सूत्रो में तो हैं ही पर आज इतिहास के अन्वेषण से मंदिरो के अस्तित्व की महावीर के समय में विद्यमान बतातें है । देखिये (१) उडीसा प्रांत की हस्तीगुफा का शिलालेख, जिसमें महामेघवाहन चक्रवर्ती राजा खारवेल, जिसने 'अपने पूर्वजों के समय मगध के राजा नन्द ऋषभदेव की जो मूर्ति ले गये थे उसे 1Page Navigation
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