Book Title: Haa Murti Pooja Shastrokta Hai
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 65
________________ ६४ हाँ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है । । २०० वर्षों में केवली, चतुर्दश पूर्वधर श्री श्रुतकेवली सेंकडों धर्म धुरंधर महान प्रभाविक आचार्य हुए वे सब मूर्ति उपासक ही थे, यदि उनके समय में मूर्ति नहीं मनानेवाले होते तो वे मूर्ति का विरोध करते पर एसे साहित्य की गन्ध तक भी नहीं पाई जाती । जैसे दिगम्बर के श्वेताम्बर अलग हुए तो उसी समय उनके खण्डन मण्डन के ग्रन्थ बन गये पर मूर्ति मानने नहीं मानने के विषय में वि.सं. १५३१ पहिले कोई भी चर्चा नहीं पाई जाती इसी से यह कहना ठीक है कि जैनमूर्ति के उत्थापक, सबसे पहिले लौंकाशाह ही हैं। यदि वीर परम्परा से आने का कोई दावा करते हों तो लौंकाशाह के पूर्वं का प्रमाण बतलाना चाहिये, कारण जैनाचार्योंने हजारों लाखों मंदिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा की हजारों लाखों ग्रंथो की अनेक राजा महाराजाओं को जैन धर्ममें दीक्षित किया, ओसवालादि जातिएं बनाई इत्यादि । भला ! एकाथ प्रमाण तो वे लोग ही बतलावें कि लौंकाशाह पूर्व हमारें साधुओं ने 'अमुक ग्रंथ बनाया या उपदेश देकर अमुक स्थानक बनाया

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