Book Title: Haa Murti Pooja Shastrokta Hai
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

Previous | Next

Page 47
________________ ४६ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। को रटे तो क्या उस स्मरणमात्र से उसका पति उस विधवा की इच्छाएं पूर्ण कर सकता हैं ? कदापि नहीं तब माला लेना और फेरना भी व्यर्थ हुआ । सज्जनों ! नाम लेने में तो एक नाम विशेष ही है पर मूर्ति में नाम और स्थापन दोनों निक्षेप विद्यमान है, इसलिए नाम रटने की अपेक्षा मूर्ति की उपासना अधिक फलदायक हैं, क्योकिं मूर्ति में स्थापना के साथ नाम भी आ जाता हैं । जैसे आप किसी को युरोप की भौगोलिक स्थिति, मुंह जबानी समझाते हो परंतु समझनेवाले के हृदय में उस वक्त युरोप का हूबहू चित्र चित्त में नहीं खिच सकेगा। जैसा आप युरोप का लिखित मानचित्र (नकशा) उसके सामने रख उसे युरोप की भौगोलिक स्थिति का परिचय करा सकेंगे । इससे सिद्ध होता है कि केवल नाम के रटने से मूर्ति का देखना और नाम का रटना विशेष लाभदायक है। प्रश्न ३१ : जब आप मूर्ति को पूजते हो तब मूर्ति के बनाने वाले को क्यों नहीं पूजते ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98