Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 9
________________ एवं उपलब्धि का मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार यह 'ज्ञाताधर्मकथाङ्ग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन' आठ अध्यायों में विभक्त है। इन अध्ययनों में ज्ञाताधर्म की उपलब्धियों का सिंहावलोकन है। यह ग्रन्थ जहाँ एक ओर आत्मधर्म का प्रतिपादन करता है वहीं दूसरी ओर एक सुसंस्कारित समाज एवं राष्ट्र व्यवस्था की संरचना पर प्रकाश डालता है। इसमें जीवन के प्रत्येक पहलू पर सुन्दर व सटीक प्रकाश डाला गया है जिससे इस ग्रन्थ की विशेषताएँ स्वभावत: मूल्यवान हो गई हैं। .. उत्तम एवं सुसंस्कारित कुल एवं धर्मिक आस्थाओं वाले स्वजनों का योग विरल ही प्राप्त होता है। सौभाग्य से मेरे दोनों ही परिवार धर्म भावना से ओतप्रोत हैं। मैं वन्दन करती हूँ अपने कुल की सौरभ एवं महासती नानूकंवर जी म.सा. की सुशिष्या साध्वी श्रीराज श्री जी म.सा. को, जिनका आगमिक एवं सैद्धान्तिक उद्बोधन इस दिशा में प्रेरणादायी बना। इस शोध प्रबन्ध में मेरे आदरणीय, साहित्यकार, इतिहासवेत्ता एवं समालोचक, इन्स्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज के निदेशक तथा राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के रजिस्ट्रार डॉ. देव कोठारी जी, जिनके विपुलं ज्ञान एवं मार्गदर्शन से यह प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध पूर्ण हो सका, के प्रति कृतज्ञता या. आभार प्रकट करने में मेरी सामर्थ्य नहीं है। पूज्य ससुर श्री जीवनसिंह जी कोठारी, सासू श्रीमती सीतादेवी जी कोठारी, पिता श्री बलवन्त सिंह जी मेहता, मातु श्रीमती माणक देवी मेहता के आशीर्वाद, स्नेह एवं संबल से इस कार्य को सम्पन्न कर सकी अतः इनसे भी सदैव आशीष की अपेक्षा रखती हूँ। मेरे पति डॉ० सुभाष कोठारी जो स्वयं आगमविद् हैं, के सहयोग एवं मार्गदर्शन का यह सफल सदैव स्मरणीय रहेगा। यदि उनकी प्रारम्भ से ही प्रेरणा प्राप्त नहीं होती तो इस दुरूह कार्य को. पूर्ण करने का मैं साहस भी नहीं कर सकती थी। इसके अतिरिक्त मैं उन समस्त लेखकों/मनीषियों/चिन्तकों/विचारकों/समालोचकों की आभारी हूँ जिनके ग्रन्थों से इस कार्य को सम्पन्न करने में सहयोग प्राप्त हुआ है, उनके प्रति भी आभार व्यक्त करना अपना दायित्व समझती हूँ। इन्स्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज साहित्य संस्थान के पुस्तकालयाध्यक्ष, कर्मचारियों, आगम संस्थान, उदयपुर पुस्तकालय, जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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