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(ख)
पुस्तक लिखने का प्रयोजन
प्रतिमा छत्तीसी में लिखा हुआ एक एक अक्षर आगम अनुसार है । तथापि आधुनिक समय में सम्यग् ज्ञान शून्य पुरुषों ने स्त्रकपोल कल्पित अनेक विकल्प उठाए हैं । उनके लिए 32 सूत्रों का मूलपाठ व अर्थ से अच्छी तरह समाधान के साथ ही 'ए. पी. जैन' की कुयुक्तियों का खण्डन स्पष्ट बतलाया गया है, मानें न माने अख्तयार उन्हीं के । अस्तु ।
__ तत्त्वरसिक-तत्त्व खोजो पुरुषों से निवेदन है कि ऊपर लिखे 'ए. पी. जैन' महाशय के लेख और हमारे लेख की आदिको , से अन्त तक समालोचना करें। ताकि सत्या - सत्य का निर्णय हो जावे । कहा भी है "बुद्धेः फलं तत्त्व विचारणं च + ... ... .
एक बात और भी सुनाता हूँ कि जब ये (स्थानकवासी)लोग तेरा पंथिओं से चर्चा करते हैं तब तो हिंसा को गौण कहकर धर्म कार्य में शुभ परिणाम की मुख्यता बतलाते हैं । नदी की मच्छीयों को तालाब में पहुंचाने में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के अनन्त जोवोंको हिंसा होती है । तो भो परिणाम शुद्धि से धर्म-पुन्य मानते हैं। लेकिन जब जिन प्रतिमा के पूजन का वर्णन आवे तब ये (स्थानकवासी) तेरा-पंथियों के बच्चे बन बैठते हैं । हिंसा हिंसा पुकार के भगवान की भक्ति का निषेध करते हैं ।