Book Title: Ganeshvrat Katha Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग.व. श्रा. आसक्तोबंधुभिश्यान्नमुंजीतदधिसंयुतम्॥३६॥प्रतिमांगुरवेदद्यादेवं चैवविसर्जयेत् // 37 // ॥विसर्जनमंत्रः॥ ॥गच्छगच्छसुरश्रेष्ठस्य स्थानंतुगणेश्वर॥व्रतेनानेनमेनित्यंयथोक्तफलदोभव ॥३॥एवंव्रतंप्रकती व्यंप्रतिमासंशुभानने॥यावज्जीवंतुवाऽब्दानित्वेकविंशतिसंरन्यया॥३९॥ अशक्तेवर्षमेकंचप्रतिवर्षमथापिवा।।उयापनंप्रकर्तव्यंचतुथ्यंश्रिावणेसिते॥ ४०॥गाणपत्यस्तथाकार्यःसर्वशास्त्रविशारदः॥आचार्यवरयित्वादीप्रोक्तेनवि धिनार्चयेत्॥४॥अष्टोत्तरसहस्रवाशतंवाऽष्टाधिकंतथा।अष्टशविंशतिमष्टौ वामोदकांचाहोमयेत्॥४२॥उच्चमंडपिकाकार्यागीतवादिबनिःस्वनैः पूजये। भक्तिभावेनगुरुंचैवप्रपूजयेत्॥४३॥सपत्नीकंसुवर्णायैर्गोभिर्वस्त्रादिभूषणैः For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 76