Book Title: Ganeshvrat Katha
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म्॥एवंबहुतियेकालेद्योजातःसुनिर्बलः॥८॥ततःसर्वाःस्नुषास्तस्यनादवि दधुस्तथा।। यथापूर्वतदारोदुःरवार्तस्तुरुरोदह।। 9 // एकदाविष्णुशर्माचब तंसंकष्टनाशनम्॥ कृतवान्श्रद्धयाज्येष्ठःस्नुषायामंदिरंययो॥१०॥ // विष्णुशर्मावाच॥ ॥स्नुषेममव्रतस्यास्यसामग्रीप्रतिपाद्यताम्॥यथासंतो षितोदेवोददातिधिपुलंघनम्।। 11 // इतिब्रुवतिविरेंद्रेस्नुषातंप्राहनिष्ठुरम्॥ता नमेनावकाशोस्तिगृहाचारस्यकारणात् ॥१२॥चैटकंनाटकंतस्मात्त्वयातात विधीयते॥नाहंव्रतविजानामिकोगणेशःप्रयायतः॥१३॥ एवंनिराकतोविमः षट्पुत्राणांगृहेगतः।ताभिस्तिरस्कृतोदीनोनिलालेशपीडितः ॥१४॥स्नुषा याश्यकनिष्ठायागृहेगत्वान्यषीदत।।अतिदीनांदरिद्रांतांविज्ञायपब्रवीच:१५ For Private and Personal Use Only

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