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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगणेशायनमः॥ ॥अथद्वादशमासगगेशव्रतकथालिरव्यते॥ // ऋषयउचुः॥ ॥दारियशोककुष्ठाये पीडितैश्चैववैरिभिः॥राज्याचष्टनेपैःस वैःक्रियतालेशभाजनैः॥१॥धनहींनैर्जनैःस्कंदसर्वोपद्रवपीडितैः॥वियापुत्र गृहावष्टैरोगयुक्तैःशिवार्थिभिः॥२॥किंकर्तव्यंवदोपायंपुनाक्षेमसिहय।। / / स्कंदउवाच॥ ॥शृणुध्वमुनयःसर्वेयत्पृष्टाहंव्रतंशुभम्॥३॥येनव्रतेनसंकष्टा त्तरतिविमानवाः॥व्रतराजमहापुण्यनराणांसिद्धिदायकम् ॥४॥नारीणांच विशेषेणपुत्रसौभाग्यवर्धनम्॥यत्कृतंपांडुपुत्रेणधर्मराजेनधीमता॥५॥रा ज्याचष्टेनचारण्ये चातृभिश्चनरोत्तमः॥अरण्येवर्तमानस्यकृष्णेनकथितंपुरा ||आत्मकष्टविनाशायतच्छृणुध्वंद्विजोत्तमाः॥६॥ ॥युधिष्ठिरउवाच॥ // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गन प्रा. केनोपायेनदेवेशसकष्टादुद्धराम्यहम्।। मुक्तोभवेयंतदहिसर्वज्ञोसिगदाधर // // कथा // 7 // ॥स्कंदउवाच।। ॥कृतप्रश्नोहषीकेशःप्रोवीचेदंयुधिष्ठिरम्॥प्रय तप्रांजलिंधीरंप्रार्थयतंमुहर्मुहः॥॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥अस्तिगु त्यतमंराजतंसर्वार्थदायकम्॥ यन्मयाकथितंपूर्वनकस्यापिनरोत्तम॥९ ॥पुरारुतयुगेराजन्हिमाचलसुताशुभा॥तपस्तेपेवनभूरिनदृष्टःशंकर पतिः ॥१०॥तदासस्मारहेरंबंगणेश हिमजातुसा।तत्क्षणादागतंदृष्ट्वागणेशपरिप च्छति॥११॥तपस्तप्तमहाघोरंदुर्लभरोमहर्षणम्॥नप्राप्तःपार्वतीकांतोगिरी शोममवल्लभः॥१२॥संकष्टनाशनंदिव्यंव्रतनारदउक्तवान्॥त्वदीयंतहतंतत्त्वा कथयस्वपुरातनम्॥१३॥तच्छुत्वापार्वतीवाक्यसंकष्टतारकशुभम्॥प्रीत्या For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथितवान्देवोगणेशःक्षिप्रसिद्धिदः॥१४॥ ॥श्रीगणेशउवाच॥ ॥व्रत |मारभमेपुण्यसंकष्टव्रतराजकम्॥तेनतेभवितासिद्धिरन्यस्यापि भविष्यति॥ ॥१५॥श्रावणेकृष्णपक्षेतुचतुर्थ्याचविधूदयतिस्मिन्दिनेव्रतंग्रात्यंसंकष्टारख्या सुरेश्वरि॥१६॥प्रातःशुचिर्भवेत्सम्यग्दंतधावनपूर्वकम्॥निराहारोस्मिन्दिवसे यावञ्चंद्रोदयोभवेत्॥१७॥मोक्ष्यामिभोजयित्वातुगणेशंशंकरप्रियम्॥एवं संकल्प्यचादौतुस्नानंशुक्लतिलैर्जलैः॥१॥आदिकंतुविधायुवंपूजामेकुरू सवते॥यथाशक्त्यातुसौवर्णीप्रतिमासंविधीयते॥१९॥सौषर्णराजनेतामा मयेवाऽथशक्तितः।कुंभपूर्णजलेपूर्वदेवंतत्रैवनिक्षिपेतु॥२०॥शोभितेस] न्यसेत्तुंभेपानेवस्नसमन्विते॥पद्यमष्टदलंकृत्वापायारथपूजयेत्॥२१॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग-त्र षोडशैरुपचारैश्यभक्तिभावसमन्वितैः।।लंबोदरंचतुर्बाहुत्रिनेत्ररक्तवर्णकम्।। कथा. २२॥नीलवर्णतुशोभाढ्यं प्रसन्नास्यविचिंतयेत्॥आवाहनंगजास्यायविनराजा श्रा. यचासनम्॥२३॥पाचंलंबोदरायेतिचार्यशंकरसनवे।।उमापत्रायचस्मानंवक्र तुंडायचार्चनम्॥२४॥शूर्पकर्णायवस्त्रंचकुन्जायेत्युपवीतकम्।।गंधंगणेश्व रायेतिपुष्पं विनाविनाशिने ॥२५॥विकटायेतिवैधूपूवामनायेतिदीपकम्॥नै वेद्यसर्वदेवायफलंसर्वातिनाशिने॥२६॥विघ्नहरैचतांबूलंधूम्मायेतिप्रद क्षिणाम्॥देवेशायनमस्कारंनमस्कृत्वाक्षमापयेत्॥२७॥एवं पूजाप्रकर्त॥ व्याषोडशैरुपचारकैः॥नानाभक्ष्यादिकैर्युक्तमुपहारप्रकल्पयेत्॥२०॥मो| // 2 दकान्कारयेविसघृतान्दशपंचकान्॥देवाग्रेस्थापयेत्पंचपंचविप्रायदापये For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्॥२९॥दक्षिणांतुयथाशस्यादत्वापंचतुमोदकान्॥भक्षयेन्निशिचंद्रा यअर्घ्यदत्वाचभक्तितः॥३०॥ ॥अथतिथ्यर्थ्यम्॥ // तिथीनामुत्तमे देविगणेशप्रियवलो॥गृहाणत्वंमयादत्तंचतुर्थनमोस्तुते॥३१॥ // अथचंद्रार्ध्वम्॥ ॥क्षीरसागरसंभूतलक्ष्मीबंधोनिशाकर।गृहाणार्य मयादत्तंरोहिण्यासहितःशशिन्॥३२॥ लंबोदरनमस्तेस्तुसर्वकामफलप्रद ॥वांछित्तदेहिमेत्वंचसर्वविघ्रविनाशकृत्॥३॥ ॥विप्रप्रार्थना॥ ॥वि प्रपर्यनमस्तुभ्यंसाक्षाद्देवस्वरूपक॥गणेशमीनयेतुभ्यंमोदकान्चैददाम्यह मु॥३४॥ मोदकान्सकलान्यचदक्षिणाभिःसमन्वितान्॥आवयोस्तारणा यैवगृहाणेमान्नमोस्तुते॥३५॥ब्राह्मणाभोजयेत्पश्याद्गणेशंप्रार्थयेत्तदा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग.व. श्रा. आसक्तोबंधुभिश्यान्नमुंजीतदधिसंयुतम्॥३६॥प्रतिमांगुरवेदद्यादेवं चैवविसर्जयेत् // 37 // ॥विसर्जनमंत्रः॥ ॥गच्छगच्छसुरश्रेष्ठस्य स्थानंतुगणेश्वर॥व्रतेनानेनमेनित्यंयथोक्तफलदोभव ॥३॥एवंव्रतंप्रकती व्यंप्रतिमासंशुभानने॥यावज्जीवंतुवाऽब्दानित्वेकविंशतिसंरन्यया॥३९॥ अशक्तेवर्षमेकंचप्रतिवर्षमथापिवा।।उयापनंप्रकर्तव्यंचतुथ्यंश्रिावणेसिते॥ ४०॥गाणपत्यस्तथाकार्यःसर्वशास्त्रविशारदः॥आचार्यवरयित्वादीप्रोक्तेनवि धिनार्चयेत्॥४॥अष्टोत्तरसहस्रवाशतंवाऽष्टाधिकंतथा।अष्टशविंशतिमष्टौ वामोदकांचाहोमयेत्॥४२॥उच्चमंडपिकाकार्यागीतवादिबनिःस्वनैः पूजये। भक्तिभावेनगुरुंचैवप्रपूजयेत्॥४३॥सपत्नीकंसुवर्णायैर्गोभिर्वस्त्रादिभूषणैः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥छचंचोपानीदद्यात्कमंडलुशहादिभिः॥४४॥आचार्यपूजयेदेविगणेश-| स्यचतुष्टये।एवंरुत्वाविधानेनप्रसन्लोहंनसंशयः॥४५॥ ददामिवांछितंतेश्यो यैर्भत्यामहतंकृतम्॥ ॥श्रीरुष्णज्वाच॥ ॥एवंतुकथितंपूर्वगणे शेनस्वयंनृप॥पार्वत्या राधितोतेनकतेनैवसुनिश्चितम्॥४६॥व्रतेनानेना सासाध्वीमहादेवंसमग्रहीत् ॥क्रीडतेतेनसाध्यापिगणेशस्येप्रसादतः॥४७॥ तत्कुरुष्वमहाराजव्रतसंकष्टनाशनम्॥चतुर्थीसंकटानामव्रतमेतन्महासभा म्॥४०॥॥स्कंदउवाच॥ ॥एवरुष्णमुखाच्छ्रत्वावतंसंकष्टनाशन मारुतंधमैणविप्रेद्राराज्यकामेनवैपुरा॥४९॥तेचशैत्रून्निहत्यैवस्वराज्य प्रतिपेदिरे॥तस्मात्सर्वप्रयत्लेनव्रतंकार्यविचक्षणैः॥५०॥येनधर्मार्थकामा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग: श्वमोक्षचैवभवेदिह॥वांछितंतस्यकार्यतुनृपाणांवचमानयेत्॥५१॥यदा कथा. यदापदंभाप्तोनरोमुच्येतसंकटात्।।नदातदाप्रकर्तव्यंऋतंसर्वार्थसाधनम्।।५२|| श्रा. सीतान्वेषणकालेतुरुतंवायुसुतेनच॥रावणेनकृतंपूर्वबलिबंधनसंकटे ॥५३॥भरिमपिशापनअहल्यायोषितांवरा॥विद्यार्थीलभतेविद्याधनार्थील भतेधनम् ॥५४॥पुत्रार्थीलभतेपुत्रानोगीरोगात्प्रमुच्यते॥सर्वपापंक्षयंया|| तिगणनाथप्रसादतः॥५५॥ इतिश्रीस्कंदपुराणेश्रीकृष्णयुधिष्ठिरसंवादेश्रावणकृष्णचतुर्थाव्रतक यासंपूर्णा // 1 // // ॥पार्वत्युवाच॥ // पुत्रभाद्रपदेमासियथासंकष्टनाश||| नं॥व्रतंभवतितत्सविस्तरेणवस्वमाम्॥१॥ ॥श्रीगणेशउवाच॥ // भद्रेभाद्रपदेमासिसंकष्टायाचतुर्थिका॥अनेकफलदाप्रोक्तासर्वसिद्धिप्रदा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यिनी॥२॥पूजापूर्वविधानेनतस्यकार्यासमंततः॥विशेषतुप्रवक्ष्यामिभोज नादिषुपार्वति॥३॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥एवंनिगदितेपुत्रपुनःपप्रच्छपा विती ॥कोविशेषःप्रकर्तव्यःपूजनेभोजनेषुतत्॥४॥ ॥श्रीगणेशउवाच // ॥गुरुपदिष्टमार्गेणभत्त्यातहतमाचरेत्॥द्वादशेष्वपिमासेषुपथकाम भिरर्चयेत्॥५॥ विनायकश्यैकदंतःकृष्णपिंगोगजाननः॥संबोदरोभालचंन द्रोहेरंवोविकटस्तया॥६॥ वक्रतुंडयाखुरथोविनराजोगणाधिपः। द्वादशै मिमितेर्गणेशपूजयेद्वती॥७॥ हादशेष्वपिमासेषुपूज्यतेनामभि:पृथ कृ॥ चतुर्थ्याप्रातरुत्थायनित्यरुत्यंयथोदितम् ॥॥नलोयासीत्कृतयुगेपु-| ण्यश्लोकानराधिपः॥तस्यरूपवतीभार्यादमयंतीनिविश्रुनाए। तस्यदैववशाच्छा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत्र ||पःस्त्रीषियोगविषादरुत्॥तदादेव्यारुतंति हतानामुत्तमंव्रतम्॥१०॥ कथा |पार्वत्कवाच॥ ॥केनैवविधिनापुत्रदमयंतीव्रतोत्तमम्॥चकारभूपतिले||| भेतृतीयेमासिशोभना॥११॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ एवंनिगदितःपा ॥र्थपार्वत्यागणनायकः॥प्रोवाचवचनंधीमान्विस्तरेणशृणुष्वतत्॥१२॥ // श्रीगणेशउवाच॥ ॥मातर्नलस्यभूपस्यविपत्तिबहुलाभवत्।।गजाश्यगज शालायांमंदुरायांहयाहृताः॥१३॥ कोशस्तुतस्करैनीतीगृहंदुग्धंरुशानुना। मंत्रिणोपिगतास्तस्यराजकार्यविनाशकाः ॥१४॥अक्षकीडनकेनैवराजासर्व हतोभवत्॥भनदेशस्ततोराजासपुरानिर्गतोचनम्॥१५॥ दमयंत्यासमंतत्रना| निक्लेिशैश्नपीडितः॥तथापिदमयंत्याचवियोगंप्रापदैवतः॥१६॥ कस्मिंश्रिन्न For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गरेराजाभृत्यभावंसमागतः॥कस्मिंश्चिद्विषयेभार्याकस्मिंश्विद्विषयेसुतः ॥१७॥शिक्षाशिनस्तुतेसर्वेनानाव्याधिप्रपीडिताः॥स्वकर्मभोगान्भुजाना परस्परवियोगिनः॥१॥एकदादमयंतीसाशरशंगमहामुनिम्॥प्रणम्यपाद|| योर्मूर्धाबद्धांजलिरभाषत॥१९॥ ॥दमयंत्युवाच॥ ॥कथमेमपतिमा प्तिःपुत्रप्राप्तिःकथभवेत् ॥कथंगजहयाम्राज्यनगरंनरसंकुलम्॥२०॥क थंमेतादृशंभाग्यमुनेतद्वदनिश्चितम्॥ ॥गणेशउवाच॥ ॥इतितस्यवचाश्रुत्वाशरभंगोब्रवीद्वचः॥२१॥ ॥शरभंगउवाच॥ ॥दमयंनिशृणुवचोवक्ष्यामिहितकारकम्॥महासंकष्टशमनंसर्वकामप्रदंशुभम। ॥२२॥भाद्रमासस्ययाकृष्णाचतुर्थीसंकटातुसा॥ तस्यांपूज्योनरस्त्रीभि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत रेकदंतोगजाननः॥२३॥पूक्तिनविधानेनास्यापीत्याचश्रद्धया॥वते|| कथा. |नानेनभोदेपिलब्धकामाभविष्यसि॥२४॥मुनिमासेमहाराजइतिमेनिश्च भा. लामतिः॥ ॥गणेशउवाच॥ ॥दमयंतीतदारसंकष्टव्रतमुत्तम म॥भाद्रेमासिरुतारंभागणनाथार्चनेरता॥२५॥ सप्तमासे पतिप्राप्तारा. ज्यं पुत्रंतथैवच॥तथैवसंपदंराजन्कृत्वाचैवंव्रतोत्तमम्॥२६॥ ॥श्री. रुष्णउवाच॥ ॥तथापार्थव्रतादस्माद्राज्यप्राप्स्यसिनिश्चितम् वरिणस्तेपराभूताभविष्यतिविशेषतः॥२७॥ इतितेकथितंभूपव्रतानामुत्तमं व्रतम्॥करिष्यतिमहाभाग्यंसर्वदुःखनिवारणम् // 20 // // इतिश्रीस्कंदपुरा | |गेकष्णयुधिष्ठिरसंवादेभाद्रपद रुष्णचतुर्थीव्रतकथा समाप्ता / / 2 // यधिष्ठिरउवाच॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णकृष्णमहाभागविश्रुतंव्रतमुत्तमम्॥आश्विनेमासियाकृष्णाचतुर्थी सिंकटास्मृता॥१॥तस्याकेनप्रकारेणपूजनीयोगणाधिपः॥तहुदस्वंज गन्नाथरूपयाममविस्तरात्॥२॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ // इतिश्रुत्वा तदादेवीप्रहस्यवदनांबुजम्॥श्रोतुमिच्छाम्यहंदेवआश्विनेकीहशंत्र तम्॥३॥ ॥श्रीगणेशउवाच॥ ..॥आश्विनेमासिगिरिजेरुष्ण नामागणाधिपः॥पूजनीयोविधानेनपूर्वोक्तेनचसिङग॥ ४॥निराहारोजितकोधोदंभलोभाविवर्जितः॥मनसासंस्मरेद्देवंगणनाथंप्रपूजयेत्॥५॥ चतुर्थीआश्विनेकृष्णासंकटाव्रतमुत्तमम् // दूर्वाहरिद्रयाहोमात्सप्तही पवतीलभेत॥६॥एकदाषाणतरयानानोषेतिप्रकीर्तिता॥प्रसुप्तापुष्पशा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. व्यायामनिरुद्धंददर्शसा॥७॥नहियोगेनसंतप्तासानलेभेसुखंकचित् चित्ररेखातदर्थचविलिरव्यभुवनत्रयम्॥८॥साचहत्यासरवींपाहपति दृष्टोमयानिशिअनिरुहुइतिख्यातोमयास्वविवाहितः॥९॥तमानयत्वं सुप्राणियेनकेनस्थलेनवा॥ अन्यथातुचमेमृत्युर्भवितात्रनसंशयः॥ चित्रलेखासरवीश्रुखागत्वाहारवंतीपुरीम्॥अनिरुईजहाराथदैत्य मायाविचक्षणा // 1 // वाणासुरपुरेनीतःसंध्याधेनुसमागमे॥प्रद्युम्नः पुत्रशोकेनतीव्रव्याधिपपीडितः॥१२॥नरुष्णोपिसुरवलेभेडस्वापुत्रतथा विधम्॥रुक्मिणीविललापाथपोत्रदुःरवेनपीडिता॥१३॥गत्वारुष्णाति केसाध्वीतमुवाचपरामुखी॥प्राणाधियोपिमेपोत्रकेननीतःववागतः 7 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शोकाहिंकरिष्यामिप्राणत्यागंत्वयेक्षितम्॥ इतितस्यावच श्रुत्वासभाया मागतोहरिः॥१५॥तत्रापश्यदृषिश्रेष्ठलोमशंतीव्रवर्चसम्॥प्रणम्याथम निविष्णुर्वृत्तांतंचन्यवेदयत्॥१६॥ ॥श्रीकृष्णाउवाच॥ ॥मुनेला मशमेपात्र केननीतःकवागतः॥नाहंजानेहतःकेनपौत्रोमेक्वगतःसुधीः॥ १७॥मातातस्यार्दितादुःश्वैःपुत्रस्मृत्वापुनःपुनः॥इतिहष्णवचः श्रुत्वालोमशो मुनिरब्रवीत्॥१८॥ लोमश उवाच॥ ॥बाणासरस्ययाकन्याउ पानाम्नेतिविश्रता॥ चित्रलेखासरखीतस्याव्याजहारानिरुडकम्॥१९॥ गोपितोबाणनगरेकथयामासनारदः॥ आश्विनेकृष्णपक्षेतुचतुर्थीसंक टाभवेत्॥२०॥तदनुष्ठान मात्रेणपोत्रस्तेत्यागमिष्यति / एवमुक्त्वामुनि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गज कया. जा. श्रेष्ठोदत्ताशी:प्रययोवनम् "215 उपवेश्यमहाविष्णुंसंकष्टव्रतमुत्तमम्।।उप| |दिष्टंकतंतेनलोमशेनव्रतोत्तमम्॥२२॥तेनव्रतेनादेविजितोबाणासुरोरि |पुः॥महादेवेनमत्पित्रारक्षितोपिमहामृधे॥२३॥चिच्छेदबाहुदंडानांसह |स्त्रंकुपिताहरिः।।सतहतमभावननात्र कार्याविचारणा // 24 // श्रीगणेश तुष्ट्यर्थरुतविनोपशातये॥अनेनसदृशंनास्निकार्यसिद्धिकरंपरम् ॥२५॥नि दानंतीर्थयात्रायांराजतेपृथिवीतले॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥तस्माद्राज स्त्वयाकार्यमापहरणहेतुकम्॥ विजेष्यसिरणेशत्रून्राज्यंसर्वमृवाप्स्यसि // 26 ॥एतद्वतस्यमाात्म्यनशम्यवर्णितुंबुधैः।। अनुभूतंमयापार्थसत्यंसत्यंवदा म्यहम्॥२७॥ इतिश्रीस्कंदपुराणेआश्विनरुष्णसंकष्ट चतुर्थाव्रतकथासंपूर्णा // 3 // 5 5 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्वत्युवाच॥ लंबोदरमहाभागवदनोवदतांवर॥कार्तिकस्यासि तपक्षेकथंपूज्योगणाधिपः॥१॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥. मातुर्वा, स्यनिशम्याथजगादगणनायकः॥ कार्तिकस्यासितेपक्षेसंकटायाचतुर्थि का ॥२॥तस्यांपूज्योगणाध्यक्षःपिंगनामेनिविश्रुतः॥पूर्वोक्तेनषिधानेन भुजीयादेकाक्तकम्॥३॥ब्राह्मणान्भोजयेत्पश्यात्स्वयम्भुजीतवाग्यतः॥ एतद्तस्यमाहात्म्यंफणुवक्ष्यामिसादरम्॥४॥उर्जकृष्णचतुर्य्यातुसंक ष्टव्रतमुत्तमम्॥माषान्ने श्यघृतोमैःसर्वसिद्धिर्भवेन्नृणाम॥५॥ गणे शउवाच॥ ॥त्रासुरोमहादैत्योद्धिमापसमंततः॥ त्रिलोकींसकलांजि त्वासदेवाःपराजिताः॥६॥मशानश्वष्टास्ततोजग्मुःकातरा:सर्वतोदिशम् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गब दिवौकसभ्यसेंद्रास्तेविष्णुंशरणमाययुः॥७॥तदुक्तंतुनिशम्याथविष्णुःप्रो, कथा. वाचनिर्जरान्॥समुद्रस्याभयंलब्वाप्रबलास्तेतिदुर्मदाः॥८॥अवध्यादेव|| तानांतुवरमापुः पितामहात्॥अगस्त्यस्तोषितःसंर्वसंपास्यत्वंबुधिंमुनिः॥ ॥९॥आयास्यतिपुनःस्वर्गपितुरंतेयथासुखम् ॥तस्मान्मुनेःसहायेनयुष्भत्का भविष्यति॥१०॥श्रुत्वाऽगस्त्याश्रमंगत्वातुष्टुवुर्मुनिसत्तमम्॥ मुनि प्रसन्ना स्ताग्राहमारितिसुनिश्चितम्॥११॥ततोदेवॉदिवंजग्मुरगस्त्यश्वितयातुरः | कथंपेयःसमुद्रोयलक्षयोजनविस्तरः॥१२॥तदागणेश्वरंस्मृत्वासंकष्टनी तमुत्तमम्॥चकारविधिनासम्यगगस्त्यश्वमहामुनिः॥१३॥ विभिर्मासैर्गणाध्यक्षः प्रसन्नःसमजायत॥नत्प्रभावादगस्स्येनपीतःपाथोनिधिःसुखम्॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir H॥१४॥एतस्पेरमभावेन निघातकवचादयः॥अर्जुनेनजिता:सर्वरिपोव्रतरा जतः॥१५॥एवमुत्तोगणाध्यक्षोनिशम्यपार्वतीतदा॥ममपुत्रोजगहूयासर्व सिद्धिप्रदायका६॥तस्मात्त्वमपिराजेंद्रव्रतमेतत्समाचर।पिजेष्यसिशत्रु संघात्राज्यंप्राप्स्यप्तिसत्वरम्॥१७॥अश्वमेधसहस्त्राणिवाजपेयशतानिच ॥कथाश्रवणमात्रेणपुत्रपौत्रादिवर्धनम्॥१८॥ इतिश्रीस्कंदपुराणेकार्तिककृष्णाचतुथी|| मतकथासमाप्ता // 4 // // ॥पार्वत्युवाच॥ ॥मार्गशीर्षतुयारुष्णाचतुथीसंकटाभवेत् // तस्यांकेनप्रकारेणपूजनीयोगणाधिपः॥१॥ ॥श्री गणेशउवाच॥ ॥अत्रमासेगणेशस्तगजाननइतिस्मृतः॥दत्वायंत. विधानेनपूर्वोक्तेनहिमाद्रिजे॥२॥निराहारेणकर्तव्यंब्राह्मणांश्चैवो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा. ग.त्रः जयेत्।।व्रतेचहोमयेद्रव्यं वैशवीत्वमामुयात्॥३॥अत्राप्युदाहांतीम|| मितिहासंपुरातनम् ॥त्रेतायुगेसमारव्यातॉराजोदशरथः पुरा॥शामृगया रसिकश्यासीहाह्मणस्तरपीडितः। शशापतंडिजश्रेष्ठःपुत्रशोकॉन्मरिष्य सि॥५॥ उद्विगमनसाराज्ञारुतापुत्रेष्टिरद्भता॥ चतुर्ग्रहावतारणरामोज ज्ञजगत्प्रभुः॥६॥तत्पनीजानकीजातालक्ष्म्या:प्रतिनिधिःसती॥पितुनि योगाद्रामोपिससीतोलक्ष्मणान्वितः॥७॥वनंजगामविश्वात्मानिर्दहनक्ष साकुलम्॥तत्रसीतांजहाराथरावणोलोकरावणः॥सीतावियोगतोरामो जनस्थानस्वयंजही॥ऋष्यमूकगिरोमैत्रीसुमीवेणलदाभवत्॥९॥हनुम समुखाःसर्वेन्वेषणेजग्मुरातुराः। सीतायास्तत्रसंपानिर्ददृशुर्वानरान्युनः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ima||संपातिःपाहतानसर्वान्के यूयंषनमागताः॥केनवाप्रेषिताःकार्यकि याचात्रप्रवर्तते॥११॥इतितस्यवचः श्रुत्वापानराजगदुःपुनः॥रामोदाशर थिनोमवयविष्णुर्जगत्पतिः॥१२॥ससीतालक्ष्मणसरचोदंडकारण्यमाय|| यो॥तत्रसीताहृताकेननेदवियोवयूसरखे॥१३॥ इतितस्यपाश्रुत्वासंपा तिःपाहबुद्धिमान्॥यूयंसरवायःसबैनोवयंरामस्यकिंकराः॥१४॥जानीमो जानकीयत्रयेननीतासतीयथा॥जटायुमैऽनुजोधातासीतार्थप्रागपंच कम्॥१५॥तत्याजरावणंबुख्यास्मृत्वारामपदांबुजम्॥ इनोविदूरेपायो |धिस्तत्पारेरक्षसांपुरी॥१६॥ शिंशपातमाश्रित्यतत्रसीतास्तिदृश्यता || म्॥रावणेनहतासीतामयाचाद्यापिदृश्यते॥१७॥वानरेषुचसर्वेषुहनुमा, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा. मा. गब तीव्रविक्रमः॥तेनतत्रप्रगतज्यसत्यंसत्यंवदामिवः॥१॥बलेनलंपितुसि धर्नान्यथालंधितुंक्षमः।। इतितस्यवचः श्रुत्वाहनूमान्प्राहबुद्धिमान्॥१९॥ संपातेकेनमार्गणगंतव्योदुस्तरोंबुधिः॥अशक्तावानराःप्ररव्यमहमेकासमा गतः॥२०॥ इतितस्यवचः श्रुत्वासंपातिःपुनराहतम्॥संकष्टनाशनंचैवव्रतं कार्यत्वयासरचे॥२१॥ एतद्तप्रभावेनतरिष्यस्यंबुधिंक्षणात्॥संपातेरुप देशेनसंकष्टव्रतमुत्तमम्॥२२॥रुतंहनूमतादेविलंधितोवारिधिःक्षणात्॥ निदृशवंतेतेलोकेव्रतमन्यत्सुरवपदम्॥२३॥ ॥श्रीकृष्णाउवाच॥ // तस्मात्त्वमपिराजेंद्रव्रतमेतत्समाचर ॥हत्या हवेरिपून्सन्सिंपदंप्राप्स्पसिक्षणात् // 24 // // इतिश्रीस्कंदपुराणेमार्गशीर्षकष्णचतुर्थीव्रतकथासंपूर्णा // 5 // // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्वत्युवाच॥ ॥पोपेमासिकर्यपुत्रपूजनीयोगणाधिपः॥किनाममोजनेकि स्पानद्दस्वसमासतः॥१॥ ॥श्रीगणेशउवाच॥ ॥पौषेमासिमहादेवि || विमहंबीचतुर्थिका ॥तस्यांलंबोदरःपूज्यपेयंगोमूत्रमेवहि॥२॥ब्राह्मणान्भो जयेद्न्याव्रतीपूर्ववदाचरेत् // निराहारोजितकोपोजितनिद्रोह्यलंपटः॥३॥ हविष्यान्नघृतैहोमराजवश्यार्थमेवच॥ अत्रैवोदाहरंतीममितिहासंपुरातनं॥॥ एकदारावणोगज्जियित्वास्वर्गवासिनः॥संध्यास्मरणकालेतुवासिंदफ़ेस पृष्ठतः॥ ५॥सतुकक्षाप्रदेशाभ्यांगृहीत्वाविहसन्बली॥आकाशमार्गमाथि त्यकिष्किंधांप्रययौपुरीम्॥६॥अंगदस्यतुपुत्रस्यरुत्वाकीडनकंतदारज्ज्या गलेनिधायाथचालयामासरावराम्॥७॥जहसु गराःसर्वेलंकानाथविलो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | कथा. गवा |क्यतम्॥येनबाहुबलेनैवजितादेवाःसवासवासासोऽयंबध्वागलेनित्यं राजुपुत्रेणनीयते॥ इनिपौरवच श्रुत्वारावणस्पपितःश्वसन्॥९॥नृष्टगर्व स्तुपौलस्पःसस्मारस्वपितामहम्॥श्रुत्वाआर्तस्वपौत्रंचदशेयकुतईदृशीत ॥॥अतिगत्पितिष्यतिअसुरासुरमानवाः॥पुलस्त्योरावणंणाहुकिमर्थ स्मस्सेमम॥११॥ ॥रावणउवाच॥ ॥देवानांधिजयादत्सिमये जातमीदृशम्॥संध्यास्मरणकालेतुबद्धःकश्चित्कपीश्वरः॥१२॥प्रतिच्या वारिधेस्तीरेगृहीतःपृष्ठभागतः॥विपरीतंरुततेनबंबंधपुनरेवमाम्॥१३॥ अत्रानीतोगलेबध्वापुत्रस्यकीडनरुतम्॥ धिक्कुर्वन्मांप्रहसंतिलोकामामः || 12 पुरौकसः॥१४॥इतिचिंताकुलोदेवनिर्बलःकिंकरौम्यहम्॥ तस्मान्नायव For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shil kailassagarsuri Gyanmandir यारक्ष्योमादृशोगोत्रटूषितः॥१५॥ ॥पुलस्यूवाच॥ ॥शृणुराव णमाभैष्टमोचयिष्यामिबंधनात्॥ अयंसुरपतेर्वीर्यत्वत्तुल्योस्निपराकमे ॥१६॥रामोदाशरथिर्नामतेनवध्योभविष्यति॥एतस्माइंधनान्मोक्तुंयदीच्छेराक्षसाधिप॥१७॥तदासंकष्टनाशारख्यंव्रतंकुरुममाज्ञया।वाहयोद्भवेदुःखेरुतमिंद्रेणवैपुरा॥१॥तस्मात्त्वमपिसंकष्टनाशनंव्रतमुत्तमम् ॥समाचराविलंबेनक्लेशनाशोभविष्यति॥अगस्त्यस्योपदेशेनरावणेनन तरुतम्॥१९॥तस्यप्रभावतोदेषितत्क्षणान्मुक्तबंधनः॥रावणःप्रापस्वराज्य|| यथासुरवमनिंदितम्॥२०॥कुरुपार्थमहाबाहोबतमेतद्यथाश्रुतम्॥निहत्य संगरेशत्रून्प्राप्यसेराज्यमुत्तमम्॥२१॥ // इनिश्रीस्कंदपुराणेपोषकष्णचतुर्थीघ्रतकथास|| For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गन्ज माला // 6 // // पार्वत्युवाच॥ ॥कथंगणेश्वरः पूज्योमापेकिंभोजनंसु कथा. 13 गत किनामकिंचनैवैद्यंतड्दस्वविशेषतः॥१॥ ॥श्रीगणेशवाचा। मा. माएमासेगणाध्यक्षभालचंद्रप्रपूजयेत् ॥श्रद्धयापूजयेद्देवंषोडशैरुपचारकै: |२|मोदकान्कारयेन्मातस्तिलजान्दशपार्वति॥देवाग्रेस्थापयेत्संचपंचचिप्रायकल्पयेत्॥३॥ पूजयित्वातुतंविभक्तिभावेनदेववत्॥दक्षिणांच यथाशस्थामोदकापंचदापयेत्॥४॥स्वयंदशतिलान्देषिभुजीयाद्भक्ति लत्परः॥ इनिहासंप्रवक्ष्यामीहरिश्चंद्रस्यभूपतेः॥५॥आसीत्पूर्वयुगेराजा हरिश्चंद्र प्रतापवान्॥क्षत्रधर्मरतःसाधुःसत्यसंघोहिजार्चकः॥६॥नाध-|| |13 मिरिश्यतेदेवितस्मिनाज्यंप्रशासति॥नहीनवदनः कश्चिनदुःरचीनदरिद्र For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वान् ॥७॥नचच्याधिभयंकिंचिदल्पायुननरोभवेत्॥तस्यराज्यभवहिप ऋष्यशमैतितापसः॥॥तस्याचिरेणकालेनबस्वतनयःप्रियः॥ऋष्यश ||मगितःस्वर्गपत्नीपुत्रंररक्षच॥९॥शिक्षाशिनीमहादीनापुत्रलालनतत्प| |रा॥दरिद्राकारयामाससंकष्टव्रतमुत्तमम् ॥१०॥गोमयस्यगणाध्यक्ष पूजयंतीसदासती॥कत्वाभिक्षातिलानांतुमोदकान्दशपार्वती॥११॥ य थोक्तेनविधानेनतावरसुत्रीयदृच्छया॥गलेषिनायकंबध्याकीडनायबहि ॥र्गतः।। १२॥कुलालभ्यततस्तस्याःपुत्रंवैपंचहायनम्॥गृहीत्वाप्रद दीवल्होपात्रपाकेच्छयाकुधीः॥१३॥अन्वेषयंतीसापुत्रनलेोकापिविहला॥पूजयंतीगणाध्यक्षपिललापातिदुररिचता ॥१४॥भोगणेशम For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा. गना हाकायसूर्यारुणसमप्रभ जटाकलापसुभगवाहिमांपुत्रदुःखिताम्।।१५।। गजाननचतुर्बाहोभालचंद्रविनायक ॥अनाथनाथवरदपाहिमांपुत्रदुःखि ताम्॥१६॥एवंविलापकुर्वतीनिशाधेचतदासती॥ततःकुलालःप्रातस्तु पात्रपाकदिदृक्षया॥१७॥अवाहमुत्सृजस्तबबालकंक्रीडनेरतम्॥ददर्शजानुदग्धंचजलेतिठंतमद्भुतम्॥१॥ दृष्ट्वासवेपथुस्सूर्णजगामनृपमंदिरम् // लगत्वाजगादायनपस्यायथारुतम्॥१९॥ // कुलालउवाच॥ // हरिश्चंद्रमहाबाहोज्वलदमिसमप्रभ ॥वध्योहंसुतरांराजन्येनकर्मेदृशंकत म्॥२०॥राजन्कन्याविवाहर्थमृत्पात्राणिपुनःपुनः॥ददाहपरिपक्कानिनजाता ||14 ||निकथंचन॥१॥तदारपृच्छंभीतोहंमत्रिणंचेटकेस्थितम्॥समांबालबलिं|| For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दद्यादितिप्राहरहस्थितः॥२२॥ तदाहचिंतयामासकस्पटामिवाल कम् // यस्यबालंददाम्यमोसमांछेत्स्यतिसत्वरम्॥२३॥ इतिभीस्यामहारा जरडिकातनयंबलिम्॥कृत्वामृत्पात्रनिवहंददाम्यनिसुनिश्चितम्॥२४॥ सचमाहनिजांभार्याषिशर्मामृतोद्विजः।तत्पनीरडिकानित्यक्षिक्षाकृत्योप जीविनी ॥२५॥साकरिष्यतिकिषालेतत्पुत्रोयंमयाहतः॥पकपात्राणिसर्वा |णिकार्यमेचभविष्यति // 26 // इतिरात्रीसुरवंसुस्वाप्रातःपात्रदिदृक्षया॥ गतस्तत्रावमुच्याथयावत्पश्यामिसत्वरम् ॥२७॥तावहालोयथानीतस्त थातिष्ठतिनिर्भयः॥हवासमागतोत्राहंसकंपोजातीचमः॥२८॥इतित स्थवचा श्रुत्वाराजाविस्मितमानसः।।आजगामाशुतत्रैवयत्रवालःसमोदते॥ - For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र | ॥२९॥इक्ष्वातथाविधंबालंराजामात्यमुवाचह // किमिदंकस्यबालोयमि कथा तित्वनियकुरु॥३०॥जानुदग्धंकुतःप्राप्तंजलंजलजमंडितम्॥वैदूर्यस||मा. दृशीर्वादरिद्रस्पयथैवहि ॥३१॥नदाहोनक्षधातस्यनपिपासापिवर्तते॥ ||निर्भयतुयथागेहेतथाकीड़तिबालकः॥३२॥एवंनिगदितेराज्ञिब्राह्मणीसास मागता कोशंतीबालकंदृष्ट्वास्ववत्संसुरभिर्यथा॥३३॥समुत्थायनिजंबा लंसमालिंग्ययुचुंबह ॥रुदंनीकंपमानासानृपस्यायेन्यपीदत॥३४॥ // हरिअंद्रउवाच॥ ॥विषपत्निकुतोबालोनामिनाभस्मसात्कृतः॥चेटकं| किविजानासिकोधर्मश्यत्वयाकृतः॥३५॥ ॥बाह्मण्युवाच॥ ॥चेटकं ||15 नविजानामिनधर्मनतपस्तथा।नयोगनचदानंचनविधानंबलिंपुनः॥३६॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संकष्टनाशनंचैकंकरोमिव्रतमुत्तमम्॥ तत्प्रभावेणराजेंद्रजातोमेकुशलीसुर नः॥३७॥ इतितस्यवचाश्रुखापुनःप्राहसभूपतिः॥व्रतमेतत्प्रजाःसर्वा:कुवै| तुममसंमतम्॥३॥राजातांचपरिकम्यधन्यासाध्वीति भारत॥पूजनीयोगणा ध्यक्षःसर्वे पौरजनैस्तदा॥३९॥मासिमासिवतंचकु:सविस्मयसंयुताः॥ब्रा झणीसासुतंलेभेव्रतराजप्रभावतः॥४०॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥त स्मासार्थत्वयाकार्यव्रतानामुत्तमंवतम् ॥एतहतप्रभावेणलब्यकामोमावि ष्यसि ॥४१॥राज्यप्राप्यतथामिपुत्रपौत्रसुरवावहम्॥याकरोतिव्रतराज सर्वसिद्धिपदायकम्॥४२॥ ॥इतिश्रीस्कंदपुराणेमाघरुष्णचतुर्थीव्रतकथासंपूर्णा।। 7 / / ॥पार्वत्युवाच॥ ॥फाल्गुनस्यासितेपक्षेकथंपूज्योगणेश्वरः // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गनकिनामभोजनंकिंचतन्मेब्रूहिगजानन॥१॥ गणपतिरुवाच॥ // कथा. मातःफाल्गुनमासेतुहेरंबायोगणेश्वरः॥पूजनीयोविधानेनप्राक्तनेनयथा- फा. क्रमम्॥२॥पायसे करवीरैश्चपुष्पश्यैश्यहोमयेत॥धृतंचशर्कराचैव भोज नंकय्यतेबुधैः।।३॥ इतिहासंप्रवक्ष्यामियथापूर्वसमीरितम्॥युधिष्ठिरेण संपृष्टंहष्णेनकथितंयथा॥४॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥आसीत्कृतयुगेराजायुवनाश्वइतिस्मृतः॥धार्मिकःसुवदान्यश्यदेवब्राह्मणपूजकः॥ | ५॥तस्पराज्ये पहिमोविष्णुशर्मामहातपाः ॥वेदशास्त्रार्थतत्वज्ञाधर्मशा स्वार्थकोविदः॥६॥तस्यासंस्तनया सप्तधनधान्यसुमारताः। मिथाकोषा चवैजातातस्यसपृथक्पृथक्॥७॥पितातेषांक्रमेणैव जीयाप्रतिवासर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म्॥एवंबहुतियेकालेद्योजातःसुनिर्बलः॥८॥ततःसर्वाःस्नुषास्तस्यनादवि दधुस्तथा।। यथापूर्वतदारोदुःरवार्तस्तुरुरोदह।। 9 // एकदाविष्णुशर्माचब तंसंकष्टनाशनम्॥ कृतवान्श्रद्धयाज्येष्ठःस्नुषायामंदिरंययो॥१०॥ // विष्णुशर्मावाच॥ ॥स्नुषेममव्रतस्यास्यसामग्रीप्रतिपाद्यताम्॥यथासंतो षितोदेवोददातिधिपुलंघनम्।। 11 // इतिब्रुवतिविरेंद्रेस्नुषातंप्राहनिष्ठुरम्॥ता नमेनावकाशोस्तिगृहाचारस्यकारणात् ॥१२॥चैटकंनाटकंतस्मात्त्वयातात विधीयते॥नाहंव्रतविजानामिकोगणेशःप्रयायतः॥१३॥ एवंनिराकतोविमः षट्पुत्राणांगृहेगतः।ताभिस्तिरस्कृतोदीनोनिलालेशपीडितः ॥१४॥स्नुषा याश्यकनिष्ठायागृहेगत्वान्यषीदत।।अतिदीनांदरिद्रांतांविज्ञायपब्रवीच:१५ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गन // ॥विप्रउवाच॥ ॥स्नुषेक्कयामिरडोहंपुत्रैःस्त्राभिर्निरारुतः॥तव कथा गेहेनपश्यामिधनंकिंचितमम॥१६॥ सिद्धिर्भवतिकल्याणिचिंतयामिपु फा. नःपुनः॥ इतितस्यवचःश्रुत्वाकनिष्ठाप्रासादरम्॥१७॥ ॥कनिष्ठोवाच // ॥किमर्थविद्यसेतातव्रतंकुरुयहच्छया।उपोष्ये हंव्रतंभत्त्यासदास कष्ठनाशनम्॥१-सिद्धिस्तुभविताशीघंहेरंबस्यप्रसादतः॥ इत्यक्त्वासास्नु पायामेतिक्षाकत्वागतारहे ॥१९॥आत्मायैश्वशुरस्याथैकुर्वतीमोदकान्प थक्॥चंदनंसुमनोदूर्वाशुभाक्षतफलानिच॥२०॥धूपदीपंचनैवेद्यसतांबू लंपृथक्पृथक्॥ पूजयित्वागणाध्यक्षश्वशुरेणसमंसती॥२१॥श्वशारंभोज यित्वाथसम्यक्प्रीत्यासुशोभना॥निराहारास्वयंतस्थौ भोजनाभावतो दिने।।२२|| For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निशीथेवशरस्तस्यावतंचक्रेपुनःपुनः॥पुरीपंचतदादेविनमलेमानसेस्नुषा। २३॥जलंगृहीत्वातत्पादीक्षालयंतीशुशोचसा॥ कस्मात्तवेदृशीजातादशामे मंदसाग्यतः॥२४॥किंकरोमिक्कगच्छामिताततहदमाचिरम्॥पिलपंतीस्नुषा रानौतावदायुदितोरविः॥२५॥सातत्रददृशेसाजीरलानामुग्रतजसांमाहीराणामणिमुक्तानांराशिविदवातवर्जितम्॥२६॥संगमाच्छशुरंपाहअत्या श्वर्ययुत्तासती॥ददृशेविस्मितासाचकिमिदंकस्यसंपदः॥२७॥धनंकस्य इदंसाक्षान्मद्गुहेमणिविद्रमाः॥श्वशुरः कस्यधायातःकावाक्षित्वागतोधुना | // 28 // इतितस्पावचा श्रुखाबडोवचनमब्रवीत् ॥तवश्रद्धाफलं पसंतुष्टःश्रीगणाधिपः॥२९॥व्रतस्यास्यमभावेणसंपत्तिःप्रकटागृहे॥क्ष्योगणेश्वर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग.न. |स्त्वंतुश्वरस्त्वत्प्रसादतः॥३०॥दारियनाशनंजातंगृहेमेसुखसंपदः॥त्वत्मा कया. सादादहंधन्याइतिसावृथुरंब्रवीत्॥ 31 // दृत्वातांचुकुपुःसर्वेषट् पुत्रादन |यितानिजाः॥विष्णुशर्माचतानसानसमुवाचभयातुरः॥३२॥नायंदोषो ममाप्यस्तिनवैषम्यंमयाकृतम्। किंतुतुष्टोंगणाध्यक्षोव्रतस्यास्यप्रभावतः ||॥३३॥तेनसंपत्मादुरभूनदस्ययथापुरा॥ स्नुषाभिर्निरुतःपश्याद्ययौत। स्यागृहेबलः॥३४॥ ॥श्रीगणेशउवाच॥ ततस्तेतनयास्तस्या दारियव्याधिपीडिताः॥ बभूवुगिरिजेचैकोवासवेनसमोसवत्॥३५॥ तपिसवैवतंचकुःप्रतिस्पर्धात्परस्परम् ॥तस्यव्रतप्रभावणसर्वसंपत्तिनो॥ भवन्॥३६॥अन्येपियेविधानेनव्रतंकुर्वतिमानवाः॥तेषांरहेधनंधा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्यंश्रीगणेशप्रसादतः॥३७॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥अनेनैवविपानेनपुरुषःपुरुषर्षभ।पार्थिवत्वंलभेत्यार्थश्रीगणेशव्रतेनय॥३॥त स्मात्त्वमपिराजेंद्रफुरुशीघ्रंव्रतोत्तमम् // दुःस्वराशिविमुच्याथसुखसंपत्ति माभवः॥३९॥ ॥इतिश्रीस्कंदपुराणेफाल्गुनरुणयनुर्भाग्रतकथासंपूर्णा॥॥ // // ॥पार्वत्युवाच॥ ॥फयंगणेश्वरःपूज्योभोजनंकिंप्रकीर्तितम्॥ कोनामकोविधिस्तस्यास्तन्मेवदगजानन॥१॥ गजाननउवाच॥ // चैत्रेमासिमहादेविधिकटोगणनायकः॥पूजनीयोविधानेनुपंचगव्यंपिबेद्र ती॥२॥चैत्रेकष्णचतुर्थीयावतंसंकटनाशनम्॥बीजपूरैपतोमैंर्वध्या स्त्रीपुत्रमामुयात्॥३॥ इतिहासंप्रवक्ष्यामिगिरिजेपरमाद्भुतम्।। यस्यस्मर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन णमात्रेणकार्यसिद्धिलभेन्नरः॥४॥आसीसुरारुत युगेराजावैमकरध्वजः कथा प्रजाःपालयतस्तस्यदरिद्रोनभवेकचित्॥५॥ स्वेस्वेधमैरतावर्णानिरा|| तंकानिरीहयः॥दांता कांतावदान्यामधर्ममार्गपरायणाः॥६॥नाभवत्पुत्र एकोपिराज्ञिराज्यंप्रशासति॥याज्ञवल्क्यप्रसादेनपश्यात्युत्रोप्यजायत॥४॥ धर्मपालाभिधेमात्येस्थाप्यराज्यसभूपतिः॥लालयामासतसुत्रंनानाकी उनकैर्नृपः॥॥धर्मपालोवभूवाथधनधान्यसमृद्धियुक॥अजायंतसुताः पंचतस्यामात्यस्यसुंदराः॥९॥ नानाविधाःकतोडाहाधनभोगपरायणाः॥ कनिष्ठाचागतातस्थस्नुषासाध्वीपतिव्रता॥१०॥आगतेचैत्रमासेतुरुष्ण ||19 पक्षेपुनःपनः॥पूजयंतीगणाध्यक्षभक्तिभाषसमन्विता॥११॥ इदंदृष्ट्या For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्रतंतस्याश्वशुरस्तुतदाऽब्रवीत्॥किंकर्मचेटकंकृत्वावशीकरणमुद्यता॥१२॥ ॥वहुवारं निषिद्धापिननिवर्ततिदुष्टधीः॥त्वांदुष्टताडयिष्यामिनाहजानामिचे टकम्।।१३॥वतंकरिष्येहंश्वश्रीसंकष्टाख्यंफलप्रदम्॥इतिश्रुत्वातदाश्वश्रूः प्रोवाचवचनंसुतम्॥१४॥पुत्रभार्यात्वत्वेषाचेटकंकर्तुमुद्यता॥बहुवारनि पिडापिननिवतेतिदुष्टधीः॥१५॥ताडयैनामहादुष्टानाहजानामिकिंवतम्॥ कोगणेशोस्तिक क्लेशोयंधिनाशयतिध्रुवम्॥१६॥ पित्रैवप्रेरितःपुत्रस्ताड्या मासतांमुहक्लेशितापीडितासाचव्रतंरुत्वागणेश्वरम्॥१७॥ध्यायतीमार्थना चकेवंगणेशजगत्पते।क्लेशंदर्शयहेरंबश्वोश्वश्वशुरस्यच॥१॥येनैषा जायतेभक्तिप्रतेतवगणाधिपा। लंबोदरस्तथाचकेतल्याविहसन्विभुः। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत ॥१९॥पश्यतांसर्वलोकानांभूपतेस्तनयंविक्षुः॥तदापायच्छद्विश्वात्माधर्मपा। लस्यमंदिरे॥३०॥पश्चाज्जहारतहस्त्रभूषणाभरणानिचा।राजगेहेपिनिक्षि|| प्यतत्रैवांतरथीयत ॥२१॥ततोराजास्वपुत्रंचस्वयमाहूयसत्वरम्॥अमात्य स्यगृहेगत्वामत्पुत्रःकगनोधुना॥२२॥भूषणानिचसर्वाणिवस्त्रंलज्वानपुत्र कः॥कस्यकर्मइदरौद्रंकगतोममपुत्रकः॥२३॥ इतिनृपवचःश्रुत्वामंत्रीपत्या त्तरंददी। बगतोहनजानामित्वत्पुत्रोनपदुर्धरः ॥२४॥शोधयिष्यामितत्सर्वन पुरंनगरपाटिकाम् ॥राजातदाबभाषेचकुडापिभृत्यकिंकरान् // 25 // भटाःशीघ्रविचिन्वंतुमंत्रिणोममपुत्रकम्॥दूतास्तत्रह्मधावंतनगरेषुवनेषुच।।२६॥॥२० ततोनलब्धः पुत्रापिदूताराजसमीपकौ॥जगदुर्भयभीतास्तेराजन्नप्राप्तत For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्कराः॥२७॥कुमारोनगरेनास्तियथाचोपवनेषुच॥ दृष्टःप्रविष्टसर्वेषुनदृष्टोनि र्गतःपुनः॥२०॥ इतितेषांवचः श्रुत्वाराजामंत्रिणमाइयत्॥तमाहूयमहाराज ष्टवान्कुत्रमेसुतः॥२९॥धर्मपाल कमेपुत्रःसत्संवदममाग्रतः॥कस्मौदाभरणंवबंदृश्यतेनममात्मजः॥३०॥दुष्टत्वावधायिष्यामित्वत्कुलंनात्रसंशयः॥एवंवा दतिराजेंद्रमंत्रीविस्मितमानसः॥३१॥प्रणिपत्यनृपंप्राहशोधयिष्यामिभूपते॥ राजना–पुरेयोगीनचदूतानतस्कराः ॥३२॥नजाने ईदृशंकर्मरुतंकुत्रगतःप्र भो॥धर्मपालोगृहंगलापुत्रान्पप्रच्छचस्त्रियम्॥३३॥स्नुषा:सर्वाःसमाहूयकेने दंकर्मवाद्भुतम्।।ममभाग्यविहीनस्यकुलंराजाधिष्यति॥३४॥श्वरस्यय चाश्रुत्वावधर्वचनमब्रवीत्॥किमर्थतप्यतेतातकोपंरुत्वाजनाधिपः।।३५।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||तस्माञ्चात्रप्रयत्नेनपूजनीयोगणाधिपः।।जनाराजादयःसर्वेसरुवीकाःपुरवासि न॥३६॥व्रतंकुयुर्विधानेनचतुर्थीकष्टनाशनम्॥राजपुत्रस्यप्राप्तिःस्यान्नमेवाचो स्थाप्रभो॥३७॥ इतितस्यावचःश्रुत्वाश्वशुरःप्रणतांजलिः॥धन्यापुत्रवधवाचकुलंमांचोरिष्यति // 38 // यथागणेश्वरः पूज्योमावदस्वरूपानिधे।एतद्र तस्पमाहात्म्यनज्ञातंमंदबुद्धिना॥३९॥तक्षमस्वतुकल्याणिराजपुत्रप्रदर्शय।। तदासर्वव्रतंचक्रुश्यतुर्थी कष्टनाशनम्॥४॥राजादयःप्रजासहेिरंबतुष्टिहेत विगतदाप्रसन्नोभगवान श्रीगणेशोव्रतेनच॥४१॥पश्यतांसर्वलोकानांराजपुत्रंददर्श ह॥राजपुत्रंतदादृत्वाविस्मिता:पुरवासिनः॥४२॥प्रसन्नाःसकलालोकाराजाह| र्षमुपागतः॥धन्योगणेश:साधन्यामंत्रिपुत्रवधूःशुभा॥४३॥यस्याश्यरुपया For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राप्तःपुत्रोवैवस्वताद्यतः॥तस्मात्सर्वप्रयलेनव्रतंकुर्यु:सुतप्रदम्।।४४॥ // श्रीरुष्णउवाच॥ नातःपरतरंभूपत्रिषुलोकेषुविद्यते। अनेकलेशशांत्यर्थ वतंकुरुकहह // 45 // ॥इतिश्रीस्कंदपुराणेचैत्रछष्णचतुर्थीव्रतकथासंपूर्णा॥ 9 // // // ॥पार्वत्युवाच॥ ॥वैशाखमासेयाकृष्णाचतुर्थीसंकटाभवेत्॥कयंपू || ज्योगणाध्यक्षः किनामकिंचभोजनम्॥१॥ गणेशउवाच॥ ॥वैशाख स्यासितेपक्षेचतुर्थ्यातदिनेव्रतम्॥ पूजनीयोवक्रतुंडोभोजनंशतपत्रकम्॥२॥इयं चतुर्थाशुभदायथायेनरुतानृप / / इतिहासप्रवक्ष्यामिश्रद्धयाशृणुपाति॥३॥ आसीत्पुरामहीपालोरंतिदेव प्रतापवान्॥ शत्रुतॄणसमूहामिलेोकपालेषुमित्र |ता॥४॥तस्यराज्येबभूवाथधर्मकेतुहिजागणीः॥तस्याद्वयंचासीत्सुशीला For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir गन कथा. 22|| चंचलापिच॥ ५॥सुशीलानिरतानित्संवतकर्शितविग्रहा॥चंचलाबुभुजेनिस व्रतधर्मपरामुखी ॥६॥सुशीलासुषुवेकन्यांसुभगांसुखदायिनीम्॥चंचला याःसुतोजातोजहासो:पुनःपुनः॥७॥सुशीलाव्रतपुण्यात्तकन्याजातारुशां गके। अस्माकंव्रतहीनानांफलमीहक्ततोभवेत्॥८॥ इनितस्यावचाश्रुत्वासुशी लाविन्नमानसा॥प्रार्थयंतीगणाध्यक्षंयथोक्तविधिनासती॥९॥संकष्टनाशनी चक्रेवतमेतत्समाहिता ॥ततोरात्रौददर्शाथगणेशंवतदायकम्॥१०॥ // श्रीगणेशउवाच॥ ॥सुशीलेतवकन्यायामुरखान्मौक्तिकविद्रुमाः॥पतिष्यं सनिशंभद्रेयथात्वांचाहास्यति॥११॥पुत्रस्तेभविताशीलेवेदशास्त्रार्थतत्वचित् 22 ॥इतितस्येवरंदत्वातत्रैवांतरधीयत॥१२॥ तस्याः पुत्रोवभूवाथकन्यामौक्तिक For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्षिणी॥ धर्मकेतुस्तथाकालेपंचत्वंसमुपागतः॥१३॥चंचलाधनमादायगतागे हातरंरुषा॥सुशीलागृह्मासाद्यकन्यापुत्रौरक्षचा॥१४॥कन्यामुखोद्भवैर्मुक्का फलैस्तस्याधनंबहु॥वरधेसंपदोनित्यंचंचलावीक्ष्यतय्यत॥१५॥ततःसाचंचला दुष्टादृष्वातप्यतनित्यशः॥सुशीलातनयांकूपेपातयामासदुष्टधीः॥१६॥रक्षिता सातदाकूपेहेरंबेनरूपालुना॥तथैवपुनरायातामातृगेहेमुदान्विता॥१७॥तावि लोक्याथसादृष्टाचचलचित्तविानमा।देवारक्षितवान्यस्यतस्यान्यःकिंकरिष्यति।।। ||17 // सुशीलातनयाचैवदृस्वाहर्षितमानसातस्थामालिंगनंचके श्रीगणेशिनरक्षिता ||म॥१९॥अस्माकंचाप्यनाथानांनायोश्रीगणनायकः॥सशीलापादयोर्नत्वाचंचलाविस्मितानदा॥२०॥क्षमध्वंभांचदुष्टांचपापाचरणतत्परमात्वंदयातुःशुशेशीलेता For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || रिने भयो कुले // 21 // यस्यदेवाहिरक्ष्यतितस्यतिमानवाः॥नश्यनियेचने सर्वसाधूनांदोषतत्पराः॥२२॥चकेसापिव्रतंपुण्यसंकटांकष्टनाशिनीम्॥श्रीगणेश प्रसादेन उौपीतेपरस्परम् ॥२३॥शत्रवोमित्रतांयांतियस्यतुष्टोगणाधिपः॥संकष्ट नाशनंचैवव्रतंचकेसमाहिता ॥२४॥इतितेकथितंदेवियथारत्तमभूत्पुरा।नातः परतरंलोकेव्रतविमविनाशनम्॥२५॥ ॥श्रीकृष्णउवाच॥ तथात्वमपि। राजेंद्रवतंकुरुयथाविधि॥अरयोनाशमायांतिसिद्धयःसमुपस्थिताः॥२६॥बंधुभिः सहधर्मज्ञसदारःसहमातृभिः॥अचिरेणैवकलेनस्वराज्यंप्राप्स्यते भवान्॥२७॥ // // इतिश्रीस्कंदपुराणेवैशारपरुष्णचतुर्थीग्रतकथासंपूर्णा // 1 // ॥पार्वत्युवाच॥ // ज्येष्ठमासेकथंपूज्योगणेशोवत्सतहद॥ किंनामभोजनेकिंचतद्विधानसमासतः।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षष्ठभावसंस्थौचेत्तदानद्भावः नुः नालेयांशोचंद्रेखलखग सहिते पापय हयुक्तेशत्रुभावस्थे कनिष्पीडितेशनिप्रतिभिःक्रूरय है: योगेनदृष्ट्यावापीडितेतनुसदः .....नशीतकरे चंद्रतहानोगीस्यात् भया पालेयांशौरिपुस्येरवलरवगसहितेमानवोरोगवान्स्याल्कूरैर्निष्पीडितश्चेत्तनुसद नगतःशीतरश्मिस्तदानीं क्रूरैकेंदालयस्थेयदिशाविहगर्नेक्षितेरोगवान्स्या त्तस्मिन्काव्यालयस्थेकुजगुरुकविभिनेक्षितेतहदेव 21 प्रिहित केंदगा क्रूरश्चेद्रोगयान्स्यात् स्मिन्क्रूरेशकराशिसंस्थेकुजशकगुरुभिर्नदृष्टेतहदेवरोगवा नेवस्यात् अत्रयद्यपिविशेषेनोक्तस्तथापियोगकर्तृगृहस्वामिकफवातपित्तादिकोपजन्यो। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जालं. विशेषरोगोज्ञेयः 21 षष्ठेशेपुराशिलमेस्वोच्चेवापापग्रहैदृष्टेसति नराणांजातानांअंगेशरी टी. 21 // रिअरिजनवशतः शत्रुजनकारित: गूटरूप:प्रच्छन्न: गदोरोग: स्यात् अत्रयहतुंगराशी नांप्राय: स्त्रीराशिखात् पुंलग्नेवाशब्दप्रयोगेभिन्नएवयोगोज्ञायते षष्ठेशेराहुयुक्तः यपुंलग्नेस्सीयतुंगेरिपुभवनपतोवीक्षितेसन्न मोगैरंगेनूननराणामरिजनवशतः स्थाद्रदोगूढरूप: रि: फस्थानेस्थितेचेदरिसदनपतौसिंहिकापुत्रयुक्त किं वासप्ताश्वयुक्तपरग्रहवसति चवृत्तिनःस्यात् 22 गमयमा यो बास्थितः तदाजात: नरः परग्रहवा न 22 अथसप्तमभावफलंनिरूपाय ||21 प्यन्विवाहयोगमाह यावंतीग्रहाः तातोदिवाहाःनुः पुरुषस्यज्ञेयाः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समतिमताजन्मलमाभिज्ञेनदैवज्ञेन जनकाचाबादोज्ञेयहोरागम जतिकशास्त्रविडिरधिक बलवतांग्रहा . कार्यः तत्राधिकबलरविविधुकुनुवां रविसूर्यचंदोमानांअंगदिक शेलसंर ....यषपाणिचंद्रस्यदशरूपाणिमोमयावंतोवाविहंगामदनसदनगाश्चेनिजाधीशदृष्टास्तावतोनुर्विवाहास्वथसमति मताज्ञेयमित्थंकुटुंबे कार्योहोरागम रधिकबलवतारखेचराणांहियोगादादे श्यतत्रवीर्यरविविधुकु सुवामंगदिशैलसंख्य 23 स्यसप्तरूपाणि अन्येषा षट्पाण्येव अंगरूपाधिकोयलीतिपइतिवचनात् 23 गृहिणीकारकाः सप्तमभावेशभयहाः शकेंडुजीवशशिजैः सकलै स्विभिर्वाहात्यांकलत्रभवनेरतयैककेन एषार For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालयां दुःरवीपश्चात्सरवीस्यात् लाभगेष्टमेशेपापेअल्पायुःस्यात् तस्मिन्नेवशुभयहयुक्ने जाताना टी. 23 दीर्घमायुःस्यात् 26 आयुर्घहेश: अष्टमपतिः क्रूरयुक्तः षष्ठरादशगतः तदाऽसमायु:कु यात् अष्टमपतिः लग्नेशयुक्त: अरिपांत्यसंस्थः इत्यनुषंग- तदाखल्पमायुः प्रदत्ते अष्टमेश: नमा रंध्रस्थानस्थितावास्थिरावनगताःशुक्रवागीशसौम्याः कृच्छ्राणाकर्मणांनाभ वतिहिनियतंकारकस्तब्धभाव: बाल्यैदुःरवीनर स्यान्निधनगृहपतौलानयाते सरवीस्यात्पश्चासापेल्पमायुः शुमणगसहितेदीर्घमायुर्नराणाम् 26 जोर सवाष्टमेतहनचिरायुः प्रदत्ते लयेशोतः स्थित: द्वितीयेस्थितश्चेत्तदातस्करोथैरिय तश्वस्यात् 27 प्रसूतीजन्मसमरे लमपतीहीनवीर्योअष्टमषष्ठग For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीनदासंयामेकीर्तिशेषप्राप्नोतिसं यपंचखंप्राप्नोतीत्यर्थः तावेवायु देहाधिनायोसबलोचेद्विजयीभवति युतश्रेत् आंदोलिकाया: शिबिकाया जयः शिविकारूटोजयत्तीत्यर्य: चतु५ .. लमशनचंद्रेणचयुतः मूर्तौलमेस्थितश्चेत्तदादंता कुर्यादायुम्हेशःखलयुगरिपांत्यसंस्थोल्समायुश्चेल्लनाधीशयुक्तोनिधनुभव नपः स्वल्पमायुःप्रदत्ते रंध्रस्थोवाचिरायुस्तदनुरविभुवस्तबतबल्लयेशोफेशस्थानस्थितश्चज्जनषिहिमनुजीवरियुक्तस्करःस्यात्२५वलेंट मशागजै जय: स्याता अथचतुर्थेशोगुरुयुतः लमेचेत्तदावाजिवाहै: वाजिराजैः गजेंद्रैश्चसहजयः स्यात् इत्यष्टममा व: 28 अथनवमभावः शायोगमाह नवमभावेशोएरुदृष्टः लग्नस्थश्वेत्तत्रजातोराजवंद्यः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 ||राजमान्यः स्यात् भाग्येश: नयमाधिपः लग्नस्थः चतुर्थनवमपतीस्वामवनंचतुर्थपतिःचतु|| || टी. नवमपतिनतमंपूर्ण दृष्ट्यापश्यनश्वेत्तदासर्वासांधनधान्यसवर्णादिसंपदांआस्पदआश्रय मन जःस्यात्वाहनेशः अष्टमस्यस्तदामनुजः भाग्यराहित्येवजति होराविद्भिरेयंप्रकारेणभाग्यराहियों आयुर्दहाधिनायौनिधनरिपुगतौहीनतीर्थीप्रसूतीसयामेकीर्तिशेषव्रजनियलयु तौतौतदात्तज्जयाप्तिंशक्रेणादोलिकायास्तनुपविधियुतोवाहनस्थाननाथोमू तौदतावलेंद्रस्थगुरुसहितःस्याज्जयोगधचाहे:२८ येन दीनानांगरायो बिलादिरहितानांप्राप्तिस्तदनुचपलतारि मेणसंबंध: 29 अयनवमेशोलाभगेरा ||24 जमान्या दीर्घायुधर्मशीलस्यात हनेशाः द्वितीयलमारतुर्थपतय:// For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |1 // ॥श्रीगणेशउवाच॥ ॥मानज्येष्ठऽसितेपक्षगणेशस्यचतुर्थिका सौभाग्यदायिनीदेवीपतिदासाप्रकीर्तिता ॥२॥तस्यामारपुरथा पूज्योविधिनाभ |क्तिचेतसा॥ भोजनंचघृतंदिव्यंब्राह्मणान्भोजयेत्तदा॥३॥इतिहासप्रवक्ष्या मिप्राग्भूतंशृणुपार्वति। पुराणजमहादेविगणेशस्यव्रतेविधिम्॥४॥आसीत्पु राहतयुगेपृथुभूपःशतुकतुः।तस्यराज्येडिजश्रेष्ठोद्यादेवइतिस्मृतः॥५॥चत्वा रस्तनयास्तस्यवभूवुर्वेदपारगाः। पित्राविवाहितास्तेतुरायोक्तविधिनाततः॥ ॥६॥तासुसर्वासुज्येष्ठातुस्नुषाश्वश्रूमुवाचह॥आजन्मतःकतंश्वश्रुव्रतंसंकष्टना ||शनम्॥७॥शुभमयापितुगैहेतथाज्ञांदेहिमांप्रभो॥तदापुत्रवधूवाक्यनिशम्य श्वशुरोब्रवीत्।।॥ ॥श्वशुरउवाच॥ ॥शृणुष्ववरपत्नीनांज्येष्ठा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग.त्र श्रेष्ठागुणाधिका॥नकष्टंनदरिद्रासिकिमर्थक्रियतेव्रतम्॥९॥ भोगान्मुक्ष्व कया. ||महाभागेकिमर्थकोगणेश्वरः॥ततःकालेनसंजातागभिणीसावधूप॥१०॥ | |श्रावतनयं श्रेष्ठश्वश्रूस्ताचपुनःपुनः॥निषिद्धामासनोभद्रेव्रतंकुरुममाज्ञ या॥११॥ एवंबहुविधेकालेपत्रकुद्धोगणाधिपः॥तस्याः पुत्र विवाहेतुवरव खोःसुमंगले॥१२॥जहारतनयंतस्याहाहाकारोतदाप्यभूत्॥ कगना केनवा नीतः कुतोगत्वाजनाकुलाः॥१३॥ एवंजनानांगदितंतस्यमातातिविट्कला॥ दयादेवंस्वश्वशुरंरुदंतीवाक्यमब्रवीत् ॥१४॥त्वयानिषेधितदेवगणेशस्यन प्रभो॥नकर्मविपाकनकगतोममपुत्रकः॥१५॥ दद्यादेवोपितच्छलापौ 24 ||त्रदुःरवेनदुःखितः॥तस्यपुत्रवधूःसाचसाकन्यानष्टभर्तृका ॥१६॥पतिदुःखा | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दितानित्यपूजयंतीगणेश्वरम् ॥संकटनाशनंसाचव्रतंचकेनुमासिकम्॥५॥ एकदादुर्वलःकश्चित्तस्पगेहेसमागतः॥भिक्षाविदतत्वज्ञोकन्यांमृदुलभा |षिणीम् ॥१॥मिक्षांप्रदेहिमांकन्येभोजनंक्षुन्निवारकम्॥साकन्याधर्मसं पन्नातस्यविप्रस्यपूजनम्॥१९॥चकारविधिनामत्याभोजनाच्छादनादि कम्॥सोपितुष्टेनमनसाक्चनंतामुवाचह // 20 // वरंब्रूहियथाभद्रेयत्तेमनसि वर्तते। विप्ररूपीगणपतिस्तवप्रीत्याविहागतः।। इतिश्रुत्वातदाकन्या रुतांजलिरभाषत। यदितुष्टोसिविघ्नेशभर्तारंममदर्शय।।२२।। तस्यास्तच नंश्रुत्वागणेशःप्राहसत्वरम् ॥तथास्तुतेपतिःशीघ्रमागमिष्यतिशोभने॥२३॥ इनितस्यैवरंदत्वादेवोत्यंतरधीयत॥सोमशाहिजःकश्चित्तदातस्मिन्पुरेवन For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गज कथा म्॥२४॥तीर्थयात्राप्रसंगेनावमन्तंचददर्शसः॥विप्रपुत्रंचतंज्ञात्वासोपिचानीय तसुरेसा२५॥दयादेवोददर्शायस्वपोत्रंचानयिष्यतः॥जनानागरिकाःसर्वतस्यमा तामहर्पित।।२६॥श्रीगणेशप्रसादेनपुत्र प्राप्तोमयाधुना॥वस्त्रालंकारकंकृत्वाअंके |सालिंगितासती॥२७॥सोमशर्मदयादेवोनमयके पुन:पुनः त्वत्प्रसादाच्चविद्रपो नोमेह्यागतोगृहम।।२॥ वस्त्रंचभोजनंगांचब्राह्मणेभ्यस्तदार्पयत्।।पुनर्मडपि कांरुत्वायथोक्तविधिनाततः॥२९॥ विवाहमंगलंहत्वाहर्षितासकलाजनाः।मा ग्यवतीचसाकन्यास्वा सहमोदिता ॥३०॥रुष्णपक्षेतज्येष्ठस्यचतुर्थीकामदा नृणाम् ॥तस्यांपूज्योनरैःस्वीभिरेकदंतोगजाननः॥३१॥पूक्तिनविधानेनात्याप्रीत्याचश्रद्धयाणवतेनानेनभोदेविलन्धकामाभविष्यसि॥३२॥ ॥श्रीकृष्णउवाच।। 25 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ईदृशंहिवतंराजन्गणेशस्यमहात्मनः॥ तस्मात्त्वयापिराजेंद्र कर्तव्यंरिपुनाशनम्॥ // 33 // // इतिश्रीस्कंदपुराणे ज्येष्ठकृष्णचतुर्थीव्रतकथासंपूर्णा।। 11 // ॥पार्वत्युवाच॥ // पुत्रआषाढरुष्णस्यचतुर्थीकथिताशुभा॥ तस्यांकेनप्रकारेणपूजनीयोगणाधिपः |॥१॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥शृणुराजन्प्रवक्ष्यामिकथाविनविनाशिनीम् पौराणिकांसेतिहासांगणेशप्रीतिकारिणीम्॥२॥पार्थआषाढमासेतुलंबोदरइति स्मृतः॥ पूजनीयोगणाध्यक्षःपूर्वोक्तविधिनाततः॥३॥पुरातुझपरेराजपुरिमाहिष्मती|| प।अभून्महाजितोनामराजापुण्यप्रतापवान्॥४॥प्रजापालयतोनित्यपुत्रहीनोन वत्तदा॥पुत्रहीनस्यतद्राज्यंतस्यैवनसुरसंगृह॥५॥पुत्रहीननृणांजन्मस्थावेदेतिषि श्रुतं तेनैवदत्तमअंतिपितरःकोष्णवोदकम्॥६॥ कालंव्यतीयराजासौचाहनिशि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गबामनोरथैः॥ बहुपुण्यकर्ततेनपुत्रस्योत्पादनेतदा॥७॥नाभवत्तस्यपुत्रस्तुसंसारा! ||कथा. 26|| र्णवतारकायौवननिर्गतंतस्परसावंसमाविशत्॥॥ब्राह्मणान्ससमाहूयवे आ. दविद्याविशारदान्॥बुद्धिमती:प्रजाश्यान्याराजातेभ्यउपाचह॥९॥ ॥राजीवा च॥ // किंभविष्यतिभोविपाःपुत्रहीनस्यभोजनाः॥ इहजन्मनिकिंचिदैनम यापातकंकृतम्॥१॥अन्यायोपार्जितंवित्तकोशेक्षिप्तमयानहि।सुतवत्पालि तालोकाधमणपालितामही॥११॥ दुष्टेदंडोमयादत्ताइष्टमित्रेषुभोजनम्॥ शिम शाः संपूजितालोकागोब्राह्मणहितेरतः॥१२॥ इत्येवंपालितापृथ्वीधर्मणैवाखिलाजनाः॥कस्मात्पुत्रोगृहेमेऽद्यनभवेद्रोहिजोत्तमाः॥१३॥ ॥विप्राउचुः॥ ॥वयमुपायंकुतस्तवपुत्रस्यकारणम्॥ इतिचिंतयमानायकुर्षे For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तोराजसत्तम॥१४॥तदातस्यप्रजाःसमितिकत्वामनोरथम्॥बुद्धिमंतोजना श्यान्येसहविप्रैर्वनंययुः॥१५॥वनेतावद्धमंतश्यइतश्वेतश्यसत्वराः॥इत्येवाचा |ममाणास्तेददृशुर्मुनिसत्तमम्॥१६॥तप्यमानंतपोध्याननिराहारंनिरूदकम् // . ब्रह्मतुल्यंजितात्मा जितको,सनातनम् ॥१७॥लोमशंनामविमलंसर्वशास्त्रविशा रदम् // दीर्घायुषमनंतंचअनेकब्रह्मसंकुलम्॥१०॥ एकेनैवापिकल्पनलोमतस्य विशीर्यते॥इत्येवंलोमशंनामत्रिकालज्ञमहामुनिम्॥१९॥ एवंविधमुनिदृत्वा जग्मुस्नेतृत्समीपनः॥यथान्यायंयथार्हचप्रणिपत्यत्युपस्थिताः॥२०॥ हर्षितात्प |भवन्सर्वेऽचुस्तेचपरस्परम् ॥अस्मद्भाग्यवशादेवप्राप्तोर्यमुनिसत्तमः॥२१॥ उपदेशोयथान्यायंतथास्माकं भविष्यति॥ इनिसंचिंत्यतेसर्वेतंमुनिवाक्यमत्रुक For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गन न्॥२२॥ ॥जाउचुः॥ ॥श्रूयतांमुनिशार्दूलअस्माकंदुःखकारणम् || || कथा. तत्संशयच्छेदनायतवसान्निध्झमागताः।। २३॥आचक्ष भोयथास्वामिन्नपरं किंचकथ्यते॥ब्राह्मणोमुनिवर्यस्त्वंत्वत्समोनैवदृश्यते॥२४॥ . लोमश || | उवाच॥ ॥किमर्थमागतापत्रकिकार्यब्रूतभोजनाः॥मांकिमर्थब्रुवंतस्तह्या गताकथ्यतांजनाः॥२५॥ निःशंकंचकरिष्यामिभक्तांचहितेरतः॥परोपकरणा|| यअस्माकंकेवलंतपः॥२६॥ ॥जनाउचुः॥ ॥आगताःस्मद्विजश्रेष्ठ कारणवियतेमहत्॥राजामहाजितोनामब्राह्मणोधर्मतत्परः॥२७॥दाताशूरःसु भाषीचपुत्रहीनोपिवर्तते॥वयंतुपालितास्तेनपुण्यकर्मनमहात्मना ॥२८॥अस्मा 27 कंपितरःस्वामिन्केवलंजन्महेतवः॥ तस्येवकारणादवचागतागहनेवने॥२९॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यथोपायंवदस्वामित्राज्ञेपुत्रोभविष्यति।तस्मिन्राज्ञिगुणेर्युक्तेपुत्रप्राप्तिनर्जाय त॥३०॥मतिकृत्वावयंसर्वेशागतागहनेवने।।तस्यभाग्यवशादेवभवत्तांदर्शनल भेत्॥३१॥पुण्यंदानंव्रतंयत्तुमुनेतत्कथयस्वयम्॥केनकर्मविपाकेनपुत्रस्तस्यभविष्यति॥३२॥ इतितेषांवचा श्रुत्वाधानस्ति मितलोचनः। तस्योपकर णायमुनिर्वाक्यमुवाचह।।३३॥ लोमशउवाच॥ ॥शृणुतावहितापि प्रावतंसंकष्टनाशनम्॥पुत्रप्रदमपुत्राणांनिर्धनानांधनप्रदम्॥३४॥आषाढे रुष्णपक्षेचचतुर्थीयाप्रकीर्तिता॥ तस्यांपूज्यश्यते राजन्नेकदंतोगजाननः॥ ३५॥पूर्वोक्तेन विधानेनश्रद्धपापरयायुतः॥ व्रतंकुर्याद्वाह्मणानांभोजनाच्छा दनादिकम्॥३६॥पुत्रास्तस्यभविष्यतिश्रीगणेशप्रसादतः॥ इतिश्रुत्वामुने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मन क्यिसवैप्रांजलयास्थिताः॥३०॥नेमुदंडवद्भूमौसर्वस्वपुरमाययुः।।यथावत्ता वनेजातंसराजेन्यवेदयन्॥३॥तेषांराजावचा श्रुत्वाहर्षितोमानदःसधीः॥व्रतं चिकेविधानेनविप्रपूजापरायणः॥३९॥तस्याराश्या:सदक्षिण्यागर्भाधानमभूत्तदा। पुत्रःसुलक्षणोजात श्रीगणेशप्रसादतः॥४०॥प्रजा:संतोषिताःसर्वानगरे सर्वमंगलम्॥महीजितोब्राह्मणेप्योधनरत्नादिचाददत्॥४१॥ ईदृशोहिप्रमा वोयंव्रतस्यपार्थिवोत्तम // करोतियोनरोभक्त्याससर्वसुरवमामुयात्॥४२॥ // ॥श्रीकृष्णउवाच॥ ॥तस्मात्त्वमपिराजेंद्रव्रतंकुरुयथाविधि|सर्वाकामानवाप्नोषिश्रीगणेशप्रसादतः॥४३॥सर्वराज्यमवाप्नोतिरिपवःसंक्षयंता था॥युधिष्ठिरनृपश्रेष्ठयेकुर्वतिव्रतोत्तमम्॥४४॥एकांतमानसायेवैऋषयःपं For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |डितोत्तमाः॥ तेषांपुत्राश्रपौत्राअनिर्विघ्नासंततिर्भवेत्॥४५॥पठनाच्छ्रव! णाडापिकार्यसिद्धिःप्रजायते॥४६॥ ॥इनित्रीकंदपुराणेआषाटकृष्णचतुर्थावतकथासंपूर्णा७२ // ॥अथाधिमासकृष्णचतुर्थीव्रतकथा॥ ॥स्कंदउवाच॥ ॥शृण्वंतुऋषयः सर्वेकयांपौराणिकींशुभाम्॥ गणाधिपवतस्यायंप्रभावोवर्णितोयथा॥१॥अरण्ये वर्तमानास्तेपांडुपुत्राद्विजोत्तमाः॥ सर्वधर्मसुशीलायसवैकृष्णपरायणाः॥२॥ए कदातुगृहेतेषाश्रीव्यासोमुनिपुंगवः॥आगताखेच्छयाचारीतंदृष्ट्वामुनिसत्तमम्॥ ३॥सहमोत्थायतेसवैकृतप्रांजलयास्थिताः॥धन्यावयं गृहंधन्यं भवतोदर्शनेनच।। ४॥अद्यमेसफलंजन्मभवदागमकारणात्॥अद्यमेसफलंसंर्वदर्शनात्क्लेशनाशन म्॥५॥महतांरुपयागेहेस्वागतंवनवासिनाम्॥आत्मानंसाधुमन्येऽहंराज्यंत्र For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग.ब्र. कथाः अ. टंपराङ्मुखम्।। 6 // इतिभीमादयःसवैनमस्कृत्याग्रतःस्थिताः॥पाद्यार्थ्यमास |नंदत्वाद्रोपदीप्रणतांजलिः॥७॥राज्यभोगान्यथायोग्याकर्शितावनवासिनी॥कि कर्तव्यंमयाचाघउपायंकटनाशनम्॥॥येनपराजिता:सर्वे रिपवायांतिसत्वरम् ॥इ त्यक्तवंतराजानंदुष्टसंकष्टनाशन ॥९॥उवाचरुपयाव्यासोसर्वज्ञंपार्थिवंतदा॥नास्तिभूमंडलेराजात्वत्समोधर्मतत्परः॥ 10 // कथयामिततेनदुःखसंकष्टनाशनम्।। शुभफलदंदिव्यंचविसर्वार्थसाधनम्॥११॥ विद्यार्थीलभतेविद्याधनाथीलामतेधन |म्॥इतिहासंप्रवक्ष्यामिश्रृणुपार्थपुरातनम् ॥१२॥आसीत्पुरारुतयुगेचंद्रसेनोमहीपतिः॥सभार्योदीक्षितोधीमानसहद्भिःपरिवारितः॥१३॥स्वजनैधुभिश्चैव तसुत्रैःसहसंयुतः।।तस्पप्रियाचसौभाग्यासलीगुणवतीचसा॥१४॥नाम्नारत्नाक For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लीराजनुपतिव्रतपरायणा।।तयोःपरस्परंप्रीतिरभवन्मुनिसंमता॥१५॥ कदाधिदैवयोगेनहतंराज्यंचशत्रुभिः॥कोशोबलंचापहृतं विनष्टोबंधुभिःस ह॥१६॥रलावल्यातयासार्धनिर्गतोभूमिवल्लाः॥क्षुघयापीडितोराजाचैवा सास्तृषादिभिः॥१७॥ इतश्वेतश्यविचरस्तपासार्धमहीपतिः॥ एकाकीवनमा सायतयासार्धयुधिष्ठिर॥१०॥सूर्यास्तंचततोजानमरण्येक्षत्तृषार्दितः॥च्याप्रै श्यचक्रवाकैअषककोकिलसारसेः।।१९॥कंटकैःक्लेशिताराज्ञीवनंहनाभयंकर तांविलोक्यनृपश्रेष्ठोदुःखेनक्लेशनांगतः॥२०॥ततःप्रभातसमयेमार्कडेयंम | हामुनिम्॥ दूरात्संदशेराजातत्रैवविचरन्वने // 21 // उपगम्यशनैस्तत्रदंडवत पतितो वि॥तयाचभार्ययासार्थप्रणिपत्यपुनः पुनः॥ 22 // कृतांजलिपुटोभू] For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. वाराजावचनमब्रवीत्।।तपस्विनंमुनिंदांनंमार्कडेयंवनेस्थितम्।।२३॥ // राजोवाच॥ // दुरुतंकिमयापूज्यपूर्वजन्मनियत्रूतम्॥तेनकर्मविपाकेनरा ज्यलक्ष्मी परैर्हता॥२४॥ ॥मार्कडेयउवाच॥ ॥शृणुराजनप्रवक्ष्या मियत्कृतंपूर्वजन्मनि ।।मृगयालुब्धकोभूत्वागतस्तद्हनंवनमू॥२५॥ मृगशार्दू लशशकान्हेन्यमानोवनेतदा॥ तस्यांरात्रौञ्चमाजंचतुर्थीमधिमासिकाम्।। ॥२६॥तस्मिन्वनेमहारम्यंसरतत्रैवदृष्टवान् ॥तत्तीरेनागकन्यानांसमूहरक्तवास साम॥२७॥ गणेशपूजयंतीनादृष्ट्वातत्रैवविस्मितः॥उपगम्यशनैस्तत्रास्ता श्यपयाविधि ॥२॥स्वर्गदेव्योयथापूज्योवक्तव्याश्रीगणाधिपः॥ अहंपूजांक |रिष्यामिप्रभावंभूतशोभनाः॥२९॥ ॥नागकन्याउचुः॥ ॥संपूंजय For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणेशंखसर्वसिद्धिमदायकम्॥ शांतिदंपुष्टिदनित्यंसंततिसुखसंपदः॥३०॥ // ॥राजोवाच॥ // कस्मिन्मासेदिनेकस्मिन्पूजनीयोगणाधिपः॥ किं वादानंकयंपूज्योयूयंवदतमेपुनः॥१॥ ॥नागकन्याऊचुः॥ // धिमास्यसितेपक्षेचतुर्थ्यांचविधूदये।। पूजनीयोविधानेनपिमहानृपसत्तम / 32 // यथाचोत्पद्यतेशक्तिभक्तिभावेनचार्चयेत्॥पंचामृतेनचलायाद्रक्तपुष्पैः मपूजयेत्॥३३॥ गंध पैश्यनैवेद्यदूर्वा युग्मैःसुवासितैः॥मोदकान्पंचदशका नतशर्करयायुतान् // 34 // कृत्वापंचगणेशायपंचविप्रायदापयेत्॥कुमायव टकान्दत्वा स्वयंपश्यात्तुभोजयेत्॥३५॥सर्वोपस्करणैर्युक्तंगणेशःप्रीयतामि नि॥ ततः पौराणिकीं श्रुत्वाइतिहासकथामिमाम्॥३६॥सर्वकामान्लोसिद्धि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गवा || मेवपूज्योगणाधिपः // श्रुत्वातासांपचोराजानमस्कत्यपुनःपुनः॥३७॥ र|| हीतंतंत्रराज्ञाचनतंसंकष्टनाशनम्॥ निर्जगामसरस्तीरामात्वादेवंगणा || पिपम्।। 38 // तत्प्रभावेणसंतुशेगणेशासिद्धिदायकः // अभवनधान्यादि पुत्रदारादिकंबहु ॥३९॥रलहारैःसुवर्णेश्वगोगजैःपूरितंगृहम्॥कस्मिं यित्समयेत्वंचनांधोविस्मृतोवतं॥ ४०॥ततःप्राप्तहिपंचत्वं त्वयापूर्वहि जन्मनि॥ तत्मभावाद्राजकुलेनवंजन्माभवत्युनः // 41 // सुमित्रप्रियायु कसंप्राप्तविमलं वपुः॥ ब्रतमंगप्रभावमपुनस्त्वमीदृशोभवः॥४२॥ // राजोवाच // ॥किंकर्तव्यमयाब्रह्मन्नधुनादुःखनाशनम्॥यथोपायेनसं| विनाःक्लेशाःशांतिमुपागताः॥४३॥ ॥मांडेयउवाच॥ ॥यथा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्व विधानेनसंपूज्यो : गणेश्वरः // संकष्टनाशनंचैवव्रतंकुरुतयानृप।। 44 // राज्यं नृपत्वंसंप्राप्तःपुनःप्रीतेगजानने॥ तस्मात्त्वंपूज्यगणपस्वयंक्त शोपशांतये॥४५॥ // व्यासउवाच॥ ॥मार्कडेयवचाऋत्वा प्रणिपत्यययौगृहम्॥ सभार्ययावतंचक्रे भक्तियुक्तोययाविधि॥ ४६॥रिप वःसंक्षयंयातानष्टराज्यंचलब्धवान्॥ सर्वकामोभवेसिद्धिर्गणेशस्यप्रसादतः // 47 // . ॥स्कंदउवाच॥ // इतिव्यासवचा बापांडुपुत्रोयुधि|ष्ठिरः॥ रुतांजलिर्बभाषेदंश्रीव्यासंनृपसत्तमः॥४८॥ .. ॥युधिष्ठिरउवाच व्रतस्यास्यविधिहिरुपयाकष्टनाशनम्॥ किंनामसाजनंकिंचक थंपूज्योगणेश्वरः॥४९॥ ॥व्यासउवाच // ॥राजनहष्णच For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुझंच पूजनीयोगणाधिपः / / पंचामृतैः कृतस्नानं षोडशैरुपचारकैः॥५०॥ कया. गस्तैः करवीरपुषैर्नैवेद्येर्मोदकादिभिः // रक्तपुष्पाक्षतै रेभिर्नामपदैः || |अ. पृथक् // 51 // विश्वप्रियापेत्याचमनंस्नानंचब्रह्मचारिणे / / वस्त्रंगणेश्वराये तिपुष्टिदायेतिचंदनं // 52 // विनायकायपुष्पाणिपंचोमासुतायच॥ दीपं रुद्रप्रिया येतिनैवेपंधिननाशिने // 53 // तांबूलं फलदायेतिफलं संकष्टनाशिने॥ ततः संप्रार्थपेद्देवंविनेशंचगणाधिपम् // 54 // संसार पीडाव्यथि तंभयातक्लेशान्वितंमांसुमुखप्रसीद। घायस्वमांदुःरपदरिद्रनाशननमोनमो विमविनाशनाय // 55 // पुष्पांजल्यामिममंत्रचन्द्रायाय प्रदापयेत् ॥क्षी राभोधिसमुद्भूतद्विजराजकुलाधिप // 56 // रोहिण्यासहित अंद्रगृहाणा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org नमोस्तुते॥बाह्मणेभोजनंदत्वामोदकान्दक्षिणाधिनान् // 57 // पश्यात्स्वयंनुसुजी तिदेवब्राह्मणशेषतः // भूमिशायी जिनकोधोलोभदंभाविवर्जितः // 58 ॥प्रतिमासंयुनः कुर्याइनहेरंबतुष्टये॥ विद्यार्थी लभतेवियांधनार्थी लभते धनम् ॥५९॥कुमारीशुभा भर्तारंपतिनासहमोदने॥ विधवानुयदाकुर्यात्सौभाग्यपरजन्मनि // 60 // पुत्रार्थीलभ ने पुत्रान रोगीरोगादिमुच्यते। भीतोभयाद्विमुच्येतबद्धोमुच्येतबंधनात्॥६॥व्यासउवाच॥ एयंत्वमपिराजेंद्रवनसंकष्टनाशनम्॥रुत्वाप्राप्नोषिस्वराज्यंगणेशस्यमसादतः // ॥६२॥पटंतिचैवयेभक्त्याकांपौरागिकीशुभाम्॥प्राप्नुवंतिपरांसिद्धिंसुखसंप निमुच्चकैः ॥६३॥इत्येतत्तथि सर्वयथापृष्ट नृपोत्नम।।संकष्टनाशननामवतंसर्वार्थसाधकम्॥६५॥ ॥इनिग्रीस्कदपुराणेप्यासयुधिष्ठिरसंचादे अ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गब.॥ धिकमासहष्णगणेशचतुर्थीवनकथासंपूर्णा॥ ॥ीसंकष्टनाशनगजा- कया ननार्पणमस्त॥ ॥श्रीसारसदाशिवार्पणमस्त॥ ॥रुसंभवतु॥ इदं पुस्तकं मोहमय्यारच्य राजधान्यां श्रीकृष्यादासात्मज गंगाविष्णुना श्री. वेंकटेश्वर शिलायचे अंकितम् - संवत् 1940 शालिवाहनशकान्दा:१८०५ | इस यंत्रालय में मुंबई के छापेके सबग्रंथ ( श्रीमद्भारतभागवत रामायणादि बड़े और छोटे ग्रंथ) यथार्थ दामसे मिलेंगे. जिन् महाशयोंको पत्र भेजना होय उन्होने शास्त्री अक्षरमें स्पष्ट लिरयके ठिकाणा-पत्ता- नाम-गाम-जिल्हा सहित लिरवके भेजना. दाम ||चाहिये तो पहेले अथवा पुस्तकपोहंचे पर डांकरवानेमे देना For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बतराजका पुस्तक अच्छा जाडा कागदकासशोपित सांचा का, टाइपके उपर अपनेका काम चला है. और पूजापंकज भास्कर' यह अति उत्तमग्रंथ सबलोगोंके हितार्थश्री महाराजा परमउदार श्री मैथिलाधिपति ( दरभंगाके ) इन्होने शास्त्री द्वारा अनेका ग्रंथोंका प्रमाणसें वणवायके तयार किया है सो भी छपके तयार होताहै. एक महि नेसे चाहेर पडेगा. और यह श्री वेंकटेश्वरछापरवानेमें जाडे कागद , बडा अक्षर और अच्छी शाईसें ग्रंथ छपजाते हैं. राईप और शिलाक्षर दोनो हैं: पत्ता इस मुजब लिरवना- श्री मुंबई में, मुंबादेवी बजारमें, मेहेर यानकी चालीमें श्री वेंकटेश्वरछा परवाने में श्री गंगाविष्णु श्रीकृष्णदासबजाज के पास पहुंचे. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( इतिश्रीगणेशसंकष्ट चतुर्थीवतकथास.)) For Private and Personal Use Only
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