Book Title: Ganeshvrat Katha
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्वत्युवाच॥ ॥पोपेमासिकर्यपुत्रपूजनीयोगणाधिपः॥किनाममोजनेकि स्पानद्दस्वसमासतः॥१॥ ॥श्रीगणेशउवाच॥ ॥पौषेमासिमहादेवि || विमहंबीचतुर्थिका ॥तस्यांलंबोदरःपूज्यपेयंगोमूत्रमेवहि॥२॥ब्राह्मणान्भो जयेद्न्याव्रतीपूर्ववदाचरेत् // निराहारोजितकोपोजितनिद्रोह्यलंपटः॥३॥ हविष्यान्नघृतैहोमराजवश्यार्थमेवच॥ अत्रैवोदाहरंतीममितिहासंपुरातनं॥॥ एकदारावणोगज्जियित्वास्वर्गवासिनः॥संध्यास्मरणकालेतुवासिंदफ़ेस पृष्ठतः॥ ५॥सतुकक्षाप्रदेशाभ्यांगृहीत्वाविहसन्बली॥आकाशमार्गमाथि त्यकिष्किंधांप्रययौपुरीम्॥६॥अंगदस्यतुपुत्रस्यरुत्वाकीडनकंतदारज्ज्या गलेनिधायाथचालयामासरावराम्॥७॥जहसु गराःसर्वेलंकानाथविलो For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76