Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 21
________________ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला (९) अंगुल के असंख्यातवें भाग में असंख्यात कल्प काल हो जाते हैं। पृ. २७, प्रस्ता. ३२ (१०) “अनन्तान्त” शब्द से मध्यम अनन्तानंत गृहीत होता है । पृ. १९, ४०२, २४ (११) अन्तर्मुहूर्त काल में लगभग सब संसारी जीव राशि मर जाती है । ४०३ (१२) विभंगज्ञानी (मिथ्यात्वी अवधिज्ञानी) तिर्यंच असंख्यात हैं । पृ. ४३७-३८ (द्रष्टव्य धवल ९/४३५) (१३) असंख्यात आवली का भी एक अन्तर्मुहूर्त होता है । पृ. ६९ द्रष्टव्य ध. ४/१५७ धवल ४:(१) आकाश में भी व्यंतरों के आवास संभव हैं । पृ. २३२ (२) सभी गुणस्थानों तथा मार्गणाओं में आय के अनुसार ही व्यय होता है । पृ. १३३ (३) त्रसों में अभव्य पल्य के असंख्यातवें भाग हैं । पृ. १३२ (४) तीर्थंकर प्रकृति तथा आनुपूर्वी का उदय से पूर्व भी फल सम्भव है । पृ. १७५ (५) सभी पृथ्वियों (नरकों) में बादर जलकायिक तथा वनस्पति कायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त होते हैं । पृ. २५२ (६) असंख्यात प्रमाण वाली (पंचेन्द्रिय आदि) राशि में उन उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण वहाँ-वहाँ पर (उन-उन विवक्षित राशियों में) अभव्य राशि होती है। पृ. ३०१ (७) लोक का आकार आयत चतुष्कोण है, न कि मृदंगाकार । पृ. ११ से २२, प्रस्ता.पृ. २० (धवल ७/३७२) (८) स्वयंभूरमण समुद्र के पर भाग में भी योजनों प्रमाण पृथ्वी है । पृ. १५८ (९) अभी तक आप हम जीवों ने समस्त पुद्गलों को ग्रहण नहीं किया। पृ. ३२६ (१०) मिथ्यात्व भी व्यंजन पर्याय है । पृ. १७८, ३२७ (११) एक अन्तर्मुहूर्त में हजारों बाद छठे से सातवें में जाकर, सातवें व छठे में आ जाता __ है । पृ. ३४७ (१२) तीसरे गुणस्थान वाला जीव सीधा संयम को प्राप्त नहीं होता । पृ. ३४९ (१३) मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभव (१/२३.०३३३ सैंकंड) से भी कुछ कम है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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