Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 22
________________ १३ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला (१४) बन्दर के असंख्यात वर्ष तक संयमासंयम सम्भव है । पृ. ४६० (१५) सूक्ष्म एकेन्द्रिय में उत्पन्न होने वाला ही ३ मोड़े लेता है । पृ. ४३४ (१६) लब्ध्यपर्याप्तकों में चक्षुदर्शनोपयोग नहीं होता। पृ. ४५४, १२७ (१७) तिर्यंचों में “तिर्यंच, देव, नारकी सम्यग्दृष्टि" नहीं उत्पन्न होते, केवल क्षायिक सम्यक्त्वी मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं, अन्य कोई सम्यक्त्वी नहीं । पृ. २०९ (१८) वायुकायिकों को छोड़कर अन्य बादर जीव पृथ्वी के सहारे से ही रहते हैं। पृ. १६४ धवल ५:(१) अनादिसान्त जो है वह नियम से अनन्त है । पृ. २५ (२) सम्मूर्छनों को वेदक सम्यक्त्व ही होता है, उपशम सम्यक्त्व नहीं । पृ.७३ (३) ग्यारहवें गुणस्थान को जीव अन्तर्मुहूर्त बाद पुन: प्राप्त कर सकता है ॥ पृ. ७५ (४) क्षपकों के विवक्षित गुणस्थान-काल से उपशमक का वही विवक्षित गुणस्थानकाल आधा होता है । पृ. १२१-२२, १५९ (५) केवलज्ञान क्षायिक है, पारिणामिक भाव नहीं । पृ. १९१ (६) एक ही उपशम सम्यक्त्व से दो बार (दूसरी बार) उपशम श्रेणि प्राप्त नहीं की जा सकती । पूर्व का उपशम सम्यक्त्व वेदक में बदलकर पुन: उपशम सम्यक्त्व होगा तो पुन: उपशमश्रेणि चढ़ना सम्भव है । पृ. १७० योग पारिणामिक भाव है (पृ. २२५) योग औदयिक भाव है पृ. (२२६) योग क्षायोपशामिक भाव है (धवल ७/७५) ग्रैवेयकों में मिथ्यात्वी जीव वहाँ के सम्यक्त्वी जीवों के भी संख्यातवें भाग है। पृ. २८३ (९) सासादन गुणस्थान को उपशम सम्यक्त्वी ही प्राप्त होते हैं । पृ. २५० (१०) तीनों लोकों में कभी एक ही उपशम सम्यक्त्वी हो, यह सम्भव है । पृ. २५७ तथा ध.९/२७७ धवल६:(१) वेदक सम्यक्त्वी के श्रद्धा की हानि पाई जाती है । पृ.४० (७) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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