Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 53
________________ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला (१३) उत्तमसंहनन वालों का भी अकालमरण हो सकता है अन्तिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त का भी अकाल मरण हुआ है । (राजवार्तिक २/५३/९) (१४) जयधवल पु.१ पृ.३६१ (नया संस्करण पृ. ३२८) में लिखा है कि चरम देहधारीणमवमच्चुवज्जियाणं : अर्थात् चरमशरीरियों का अकालमरण नहीं होता । तत्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि राजवार्तिक (२/५३) आदि में जयधवल के मत का ही समर्थन है। परन्तु प्रभाचन्द्राचार्यविरचित तत्त्वार्थवृत्तिपद, श्रुतसागर सूरि की तत्त्वार्थवृत्ति में २/५३ में लिखा है . “चरमदेहस्य उत्तमविशेषणात् तीर्थकर हो गृह्यते । ततो न्येषां चरमदेहानामपि गुरुदत्तपाण्डवादीनां अग्न्यादिनामरणदर्शनात् ।” भावार्थ: चरमशरीरियों में मात्र तीर्थंकरों का ही अकालमरण नहीं होता। शेष चरमशरीरियों का अकालमरण (गुरुदत्त पाण्डव आदि का) देखा जाता है। इस प्रकार दो मत हैं। (१५) परभव की आयु का बंध होने पर वर्तमान आयु का कदलीघात यानी अकालमरण नहीं होता। जैसे आपने हमने देवायु का बंध कर लिया है । तो इसका अर्थ यह हुआ कि अब हमारा (बद्धपरभवायुष्क होने से) अकालमरण नहीं हो सकता । (धवल १०/२३७) । राजाश्रेणिक का अकालमरण नहीं हुआ था। क्योंकि इससे पूर्व ही उन्हें नरकायु का बंध हो चुका था। अत: बद्धायुष्क के अकालमरण सम्भव नहीं। चाहे श्रेणिक ने तलवार की धार पर सिर मार कर अपना मरण किया हो पर उस समय श्रेणिक के आयु निषेक पूरे हो गए थे। अत: अकालमरण नहीं हुआ। (१६) अकालमरण में स्थितिकाण्डक घात नहीं होता। किन्तु अपकर्षण तथा उदीरणा द्वारा भुज्यमान आयु का स्थितिघात - कदलीघात हो जाता है। (१७) किसी भी जीव के कदलीघात यानी भुज्यमान आयु का ह्रस्वीकरण रूप क्रिया एक समय में हो जाती है। (धवल १० पृ.२४४, ३८४, २५६, ३७२ आदि) (१८) सूक्ष्म एकेन्द्रियों में भी कदलीघात (अकालमरण) होता है। (धवल १४/३५६) (१९) विष, वेदना, रक्तक्षय, भय, शस्त्रघात, संक्लेश, उच्छवास-निरोध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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