Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 92
________________ पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला शंका- पु. १४ पृ. १४८ (धवला) यहाँ आगत 'चतुः स्थान' शब्द से क्या गृहीत है ? नाना श्रेणि की अपेक्षा भी वर्गणाएँ चतुः-स्थान-पतित नहीं हो सकती,क्योंकि परमाणु वर्गणाओं से द्विगुणीहीन वर्गणाएँ असंख्यात प्रदेशी वर्गणाओं में जाकर प्राप्त होती हैं। क्योंकि द्विगुणहानि का प्रमाण असंख्यात लोक प्रमाण है । (द्रष्टव्य १७९, १८४.....) समाधान- यहाँ चतुःस्थान से संख्यात भागवृद्धि संख्यातगुण-वृद्धि संख्यात भाग हानि और संख्यात गुणहानि ली गई जान पड़ती है। इससे एकश्रेणि वर्गणा में भी चतुःस्थान पतित घटित हो जाता है। सर्वत्र षट्स्थान पतित वृद्धि तथा षट्स्थानपतित हानि की विवक्षा में यह सब बन जाता है । उक्त वचन का कदाचित् यह अर्थ हो सकता है, पर यह अर्थ स्वीकार करने पर आगे असंख्यात प्रदेशी वर्गणाओं में यह अर्थ घटित नहीं होता। इसलिए यह पाठ तो विचारणीय है ही। फिर भी जब तक ताड़पत्र प्रति पर दृष्टिपात न किया जाए तब तक उसे विचारणीय विषयों में रखना होगा। विशेष - मुझ जवाहरलाल के पास सर्व ताड़पत्रीय पाठ भेद भी उपलब्ध हैं, पर प्रकृत स्थल संबंधी कोई पाठ भेद सम्प्राप्त नहीं होता। शंका - धवल पु. १४/२१९ दव्ववग्गं होदि। अत्र “वग्ग” शब्दस्य कोऽभिप्राय: ? (यहाँ वर्ग का क्या अर्थ ?) समाधान - यहाँ द्रव्य का वर्ग अर्थात् द्रव्य के प्रदेश, ऐसा अर्थ करना चाहिए । वर्ग अर्थात् प्रदेश । क्योंकि वर्ग, वर्गणा में वर्ग का अर्थ प्रदेश होता है। शका- धवल १४/४१० में लिखा है कि 'जहाँ पर उदय में दो समयप्रबद्ध गलते हैं'.. यहाँ प्रश्न यह है कि कहाँ पर गलते हैं ? समाधान - औदारिक शरीर की अपेक्षा जितनी स्थिति बने उसके उतने निषेक कर लें । पुन: एक समय कम के एक समय कम स्थिति प्रमाण निषेक कर लें। इस विधि से संचित द्रव्य का जहाँ दो समयप्रबद्ध प्रमाण द्रव्य निर्जीर्ण हो ऐसी गणित करने पर नियत स्थान निकाला जा सकता है । आप गणित बिठाकर देखलें । नियत स्थान उसी से प्राप्त होगा। पहले तो दोनों उपदेशों को प्रयोजन जान लें, फिर भगवद् वीरसेन स्वामी क्या कहना चाहते हैं, यह समझने में आसानी हो जाएगी। शंका - धवला जी पु. १५ पृ. १५३ अल्पतर उदीरकों से अवस्थित उदीरक असंख्यात गुणे कैसे हैं ? नोट :- इस प्रकरण में पं. फूलचन्द्र जी से प्रत्यक्ष चर्चा के दौरान प्राप्त ३५ समाधान लिखे गए हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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