Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 93
________________ ८४ पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला समाधान - अल्पतर उदीरकों के काल से अवास्थित उदीरकों का काल असंख्यातगुणा है । इसलिए अपने काल में संचित हुए वे अल्पतर उदीरकों से असंख्यात गुणे हो जाते हैं। शंका- देव नारकियों में भुजगार उदीरक कैसे संभव है ? समाधान - ऐसा लगता है कि जितने देव और नारकी अल्पतर उदीरक होकर वहाँ से च्युत होते हैं उतने ही अन्य पर्याय से आकर वहाँ जन्म लेते हैं। इन्हें ही भुजगार स्वीकार कर दोनों को समान कहा है। (दि. २९-५-८२ वाराणसी) शंका - धवल १५/१४१ में १६ भंग करने बताए । वे कैसे होंगे ? समाधान - वे १६ भंग ये होंगे - एक जीव उदीरक, एक जीव अनुदीरक अनेक जीव उदीरक, अनेक जीव अनुदीरक, एक जीव उदीरक तथा एक जीव अनुदीरक, अनेक जीव उदीरक और एक जीव अनुदीरक, एक जीव उदीरक और अनेक जीव अननुदीरक। अनेक जीव उदीरक तथा अनेक जीव अनुदीरक : ये आठ भंग उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा की अपेक्षा हैं । इसी प्रकार ८ भंग अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणा की अपेक्षा बनेंगे । इस तरह कुल १६ भंग हो जाते हैं। ये सम्यग्मिथ्यात्व तथा आहारक शरीर दोनों की अपेक्षा घटित कर लेने चाहिए । अन्य कथित प्रकृतियों में भी इसी प्रकार जानना । (दि. २९-५-८२ वाराणसी) __ शंका - धवल १५-१८२ “जघन्य स्थिति में", यहाँ स्थिति पद से किसका ग्रहण समाधान - यहाँ आयुकर्म की स्थिति से तात्पर्य प्रतीत होता है । (दि. २९-५-८२ वाराणसी) ___पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री (काशी) के समाधान' नोट - मैं अपनी कुछ शंकाओं को लेकर, गुरुवर्य पं. फूलचन्द्र जी से आदेश प्राप्त कर वाराणसी (काशी) पहुँचा । दि.१७-१०-८१ से मेरी शंकाओं को मेरे द्वारा पूछा जाना तथा समाधान प्राप्त करना, यह महनीय प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी। एतदर्थ लगभग अर्द्धमास मैं वहाँ रहा । मेरी शंकाओं के समाधान जो आपने बताए उन्हें मैं यहाँ इस रूप में उद्धृत कर रहा हूँ कि मेरी शंकाएँ क्या थी, यह सहज ही ज्ञात हो जाएगा अत: नीचे मैं शंकाएँ नहीं लिख रहा हूँ । मात्र उनके समाधान ही लिख रहा हूँ, ताकि अधिक विस्तार न हो। १. इस प्रकरण में पं. फूलचन्द्र जी से प्रत्यक्ष चर्चा के दौरान प्राप्त ३५ समाधान लिखे गए हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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