Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 88
________________ ७९ पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला समाधान - आपकी जिज्ञासाएँ बहुत हैं। ऐसा लगता है कि आप उन सबका समाधान कर लेना चाहते हैं । यह अच्छी बात है। अपने में नि:शंक होना, यह सम्यक्त्व का प्रथम गुण माना गया है । समाधान निम्न प्रकार है - पहले तो इन दो बातों को हमें मन में रख लेना आवश्यक है कि-(१) कोई भी गुण बिना पर्याय के नहीं रहता, अन्यथा उसका परिणाम-स्वभाव समाप्त हो जाए। फिर तो उसे मात्र नित्य स्वभाव मानना पड़े, जो जिनागम को मान्य नहीं । (२) जितने काल के समय हैं उतनी ही पर्यायें (प्रत्येक द्रव्य की) होती हैं,नन्यन होती है न ही अधिक। इसके लिए आप्तमीमांसा का निम्न वचन द्रष्टव्य है- नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चय: अविभ्राड् भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा । जीवकाण्ड के सम्यक्त्व अधिकार में भी इसके अनुरूप कथन पाया जाता है। अब उत्तर यह है कि केवलज्ञान कोई स्वतंत्र गुण नहीं है । ज्ञानगुण की एक पर्याय है। जहाँ भी ज्ञानगुण को केवलज्ञान कहा गया है वह पूर्णता की अपेक्षा ही कहा गया है। वैसे ज्ञानगुण है और आवरण भेद से वह पाँच प्रकार का हो जाता है । वस्तु का ऐसा ही स्वभाव है । इसी के लिए यह कारिका द्रष्टव्य है - शुद्ध्यशुद्धी पुनः शक्ति: ते पाक्यपाक्य-शक्तिवत् । साद्यनादी तयोर्व्यक्ती स्वभावो तर्कगोचरः ।। (आप्तमीमांसा १००) आप जानते ही हैं कि २१ औदयिक भावों में एक अज्ञान भाव भी है तथा ज्ञानावरण के उदय में जो भाव प्रकट होता है उसे ही अज्ञान कहा गया है । इसके लिए तत्त्वार्थवार्तिक और सर्वार्थसिद्धि आदि देखिए । इसलिए यह निष्कर्ष निकला कि जो अभव्य समान भव्य हैं, उनमें भी द्रव्ययोग्यता है और अभव्यों में भी । परन्तु अभव्यों में सम्यग्ज्ञानरूप उपादान योग्यता का सर्वथा अभाव है । अभव्य समानभव्यों में उपादान योग्यता तो होती है, पर अनुकूलता कभी नहीं बनती, इसलिए उनमें भी सम्यकज्ञान, सम्यक्त्व आदि पर्यायें प्रकट नहीं होती। इसलिए वे भी अभव्य के समान ही हैं । यह कथन संभावना सत्य की अपेक्षा समझना चाहिए “सक्को जंबूदीवं पल्लट्टदि" (इन्द्र जम्बूद्वीप को उथलपुथल कर सकता है) यह संभावना सत्य का उदाहरण है। लोक में देखते भी हैं कि जितनी भी लोक में चिकनी मिट्टी है उसमें और रेतीली मिट्टी में बड़ा अन्तर है । फिर भी सभी चिकनी मिट्टी पुद्गल की सर्व पर्यायों को प्राप्त हो, ऐसा कोई नियम नहीं है । इसी न्याय से प्रकृत में निर्णय कर लेना चाहिए। (वाराणसी दि. २८-१-८१) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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