Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 51
________________ ४२ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला (५) उत्कृष्ट अनुभाग बंध (आयुका) करने पर उसका भी धात हो सकता है । (धवल १२/२१) बद्ध देवायु की भी न्यूनता हो सकती है । (धवल ४ / २८३ आदि) (६) आयु के अनुभाग घात व स्थितिघात साथ -२ होते हैं । मात्र स्थिति घात या मात्र अनुभाग घात नहीं होते । (धवल १२ / ३९५) (७) बध्यमान आगामी आयु का उदीरणा नहीं होती है । उदय भी नहीं । बद्ध परभव की आयु का अपकर्षण कर उन निषेकों को आबाधा के ऊपर निक्षिप्त जरूर किया जा सकता है । इसे अवलंबना करण कहते हैं । (धवल १० / ३३०) परभव की बद्ध आयु का उदय तो मरने बाद ही हो सकता है । (८) परभव की बंधी आयु का हर समय अपकर्षण हो सकता है, क्योंकि उसके अपकर्षण के लिए बंध- काल का नियम नहीं है । जिस जीव ने मिथ्यात्व अवस्था में सातवें नरक की आयु का बंध कर लिया हो तथा उसके पश्चात् उसको सम्यक्त्व प्राप्त हो गया हो तो वह जीव सम्यक्त्व के द्वारा सातवें नरक के स्थितिबंध को घटा कर (अपकर्षण कर) प्रथमनरक की आयु के समान कर लेता है । कहा भी है :- न नरकायुषः सत्वं तस्य तत्रोत्पत्तेः कारणं सम्यग्दर्शनासिना छिन्नषट्पृथिव्यायुष्कत्वात् । न च तच्छेदोऽसिद्ध आर्षात्तत्सिद्ध्युपलम्भात् (धवल १ / ३२४) प्रथम नरक के सिवा शेष द्वितीयादि पृथ्वी की आयु बांध कर सम्यक्त्वी हुए जीव के नीचे की छह पृथ्वी की आयु का अपकर्षण हर समय हो सकता है । राजा श्रेणिक के ३३ सागर की नरकायु का बंध हुआ था । किन्तु सम्यग्दर्शन होने पर नरकायु का अपकर्षण होकर ८४००० वर्ष रह गई । सम्यग्दृष्टि के नरकायु का बंध नहीं होता । इस प्रकार आयुबंध के अभाव में भी परभविक आयु का अपकर्षण हुआ है। (करणानुयोग प्रभाकर रतनचन्द्र मुख्तार जै. ग. २७- ८- ६४ पृ. IX) नरकायु की बंध व्युच्छिति तो प्रथम गुणस्थान में ही हो जाती है | अतः सम्यक्त्वी श्रेणिक के, या अन्य सम्यक्त्वी के नरकायु के बंधने का प्रश्न ही नहीं उठता । (गो.क. ९५, पं.स., धवल, ८ पृ. ४२-४३, १२३ जयधवल १४ पृष्ठ ३४ महाधवल १/३९ आदि) (९) परन्तु बद्ध आगामी आयु का उत्कर्षण हर समय नहीं होता । वह तो तभी होगा जबकि पुन: अगले किसी अपकर्ष में आयुबन्ध हो रहा हो । यदि परभव की आयु बंध के पश्चात् दूसरे किसी अपकर्ष में अधिक स्थिति वाली परभविक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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