Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 63
________________ ५४ पं.फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला बाल्यावस्था में ही यदि तालाब कुएँ बावड़ी में गिरने से उसकी अकाल मृत्यु हो गई तो उसका अर्थ यह हुआ कि उसके शेष ९० वर्ष प्रमाण आयु निषेकों की लड़ी भी, उस मरण के अंतिम अन्तमूहूर्त में, कदलीघात (अपवर्तन) द्वारा, उदय को प्राप्त हो गई । यही अकालमरण या कदलीघात है । यह आगम का हार्द होने से समीचीन प्ररूपण है। परन्तु ऐसा मानना कि - "वह १० वर्ष प्रमाण ही जीवित रहा इसलिए पूर्व भव में आयुबंध भी उसने १० वर्ष किया : अथवा १०० वर्ष एवं १० वर्ष ऐसे दो आयुबंध किए", हास्यास्पद है। पण्डित मोतीचन्द जी के शेष बिन्दुओं की समीक्षा ऊपर समीक्षित प्रकरण से ही हो जाती है। कदलीघात के लिए दो बार आयुबंध नहीं होता, इस पर भगवद् वीरसेन स्वामी का मत : (१) भगवद् वीरसेन स्वामी धवल १४ पृ.३५२ से ३५४ में लिखते हैं कि : एकेन्द्रिय जीव की जघन्य पर्याप्त निवृत्ति सबसे स्तोक है । अर्थात् सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य आयु बन्ध सबसे स्तोक है, क्योंकि वह अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । (यहाँ जघन्य निर्वृत्ति से जघन्य आयुबन्ध का ग्रहण करना चाहिए ।) फिर आगे कहा है कि उससे निर्वृत्ति स्थान (यानी आयुबन्ध के विविध विकल्प या भेद) संख्यात गुणे हैं । उससे जीवनीय स्थान (यानी जीने की आयु के भेद) विशेष अधिक हैं। शंका - जीवनीय स्थान बंधस्थान के समान न होकर विशेषाधिक कैसे हैं ? समाधान - नहीं, क्योंकि भुज्यमान आयु का कदलीघात सम्भव होने से जघन्य निवृत्तिस्थान (= जघन्य आयुबंध रूप भेद) के नीचे भी जीवनीयस्थान (जीवन योग्य विविध आयु-विकल्प) उपलब्ध होते हैं ।(पृ. ३५४) ये जीवनीय स्थान संख्यात आवली प्रमाण अर्थात् असंख्यात होते हैं । (धवल १४/३५६-५७) .. जघन्य निर्वृत्तिस्थान (जघन्य आयुबन्ध स्थान) के नीचे के ये जीवनीय स्थान जीवनीय स्थान ही हैं, निर्वृत्ति स्थान नहीं, क्योंकि यहाँ आयुबंध के विकल्पों का अभाव है । (अर्थात् जघन्य आयु बन्ध प्रमाण आयु से भी कम जिन-जिन जीवों की आयु होती है वह नियम से मात्र कदलीघात से ही प्राप्त होती है, बंध से नहीं। ऐसे आयु विकल्प भी असंख्यात होते हैं (धवल १४ पृष्ठ ३५५) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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