Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 83
________________ ७४ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला सार- क्षायिक भावों में से एक भाव से दूसरे भाव की तुलना करते हुए ही (लब्धिसार १६६ व त्रि.सा.७१ में) कहा गया है कि क्षायिक सम्यक्त्व रूप क्षायिक-लब्धि के जीवाविभाग प्रतिच्छेदों से क्षायिक ज्ञान (केवलज्ञान) रूप क्षायिक लब्धि अनन्तगुणे अविभाग प्रतिच्छेदों युक्त है । इनमें क्षायिक सम्यक्त्वरूप लब्धि जघन्य क्षायिक लब्धि कहलाती है तथा क्षायिक ज्ञान (केवलज्ञान) रूप क्षायिक लब्धि उत्कृष्ट । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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