Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 36
________________ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला २७ (४) संक्रमावली तथा बन्धावली सकल करणों के अयोग्य होती है । पृ. २४७ (५) प्रथम समयवर्ती सम्यक्त्वी के मिथ्यात्व के ३ टुकड़े हो जाते हैं। पृ. १९५-९६ (६) मिथ्यात्व का उत्कृष्ट स्थितिबंध चारों गति में होता है । पृ. ९, १०, ११, १९१ (७) सम्यक्त्वी के भी सम्यक्त्व प्रकृति की सत्ता कुछ कम ७० कोड़ा कोड़ी सागर हो सकती है । पृ. १० जयधवल. पु. ४:(१) विसंयोजना वाला सासादन में भी जाता है । पृ. ११, २४ तथा जयध. ८/११६ (२) छ: मास ८ समय में ६०८ जीव मोक्ष जाते हैं और उतने ही नित्य निगोद से निकलते हैं । पृ. १०० (३) जितने मिथ्यात्वी सम्यक्त्व को प्राप्त होते हैं उतने ही सम्यक्त्वी सम्यक्त्व खोकर मिथ्यात्वी बन जाते हैं । पृ. १०० । (४) ऐसे मिथ्यात्वी, जो पहले सम्यक्त्वी थे, अनन्त हैं । पृ. ९९-१०० (५) इतर-निगोद नित्यनिगोदों के अनन्तवें भाग प्रमाण हैं । पृ. १००-१०१ जयधवल पु.५:(१) सम्यक्त्व प्रकृति सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्व की स्थिरता तथा नि:काक्षिता को घातती है । अर्थात् एकदेश सम्यक्त्व घातती है । पृ. १३० (और भी देखें जय. १३/५८) (२) सम्यक्त्व गुण सावयव है । पृ. १३९ देशसंयमी व संयमी के संज्वलन कषाय तथा नोकषाय का देशघाती उदय ही रहता है । पृ. १४८ (और भी देखें ध. ५/२०२ तथा जयध. ९९/३९) (४) अन्तरंग कारण को स्वभाव कहते हैं । पृ. ३८७ (५) विशुद्धि के वश से सम्यक्त्वघाता जाकर अनन्तगुणीहीनऐसी सम्यक्त्वप्रकृतिपने को प्राप्त होता है । पृ. २६१ जयधवल पु. ५ तथा ६:(१) ८ वर्ष आयु से पूर्व द्रव्यलिंगी मुनि भी नहीं होता । पृ. १२ (२) अनन्तर ही (तत्काल ही) कहे हुए अर्थ को स्मरण रखने में जो असमर्थ है उसको अध्यात्मशास्त्र सुनने का अधिकार नहीं है । पृ. १५३. (३) योग तथा कषाय के सिवा अन्य कारणों से भी कर्म परमाणुओं की हानि वृद्धि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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