Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara
Author(s): Jawaharlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 43
________________ ३४ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला है (किण्हा य णीलकाऊणदयादो बंधिऊण णिरयाऊ । ति.प. अधिकार २ गाथा २९३-९४) नील कापोत लेश्यारूप परिणाम तिर्यंचायु के बंध के कारण हैं (त.सार ४/३५-३९) कापोत पीत लेश्यारूप परिणाम मनुष्यायु के बंध के कारण हैं । (राजवार्तिक ६/१७/१/५२६) पीत पद्म शुक्ल देवायु के बंध के कारण हैं । (रा.वा.६/२०/१/५२७) तीनों अशुभ लेश्याओं में चारों आयुओं का बंध होता है । पीत व पद्म में नरकायु को छोड़कर शेष तीन आयु का बंध होता है । शुक्ल लेश्या में मनुष्य व देवायु का ही बन्ध होता है । (महाधवल २/२७८-२८१ धवल ८/३२० से ३५८ आदि) कृष्ण लेश्या के उत्कृष्ट अंशों और पीतपद्म शुक्ल लेश्याओं के उत्कृष्ट अंशों में से कुछ अंश ऐसे हैं जिनमें आयु बन्ध नहीं होता । सामान्यत: छहों लेश्याओं में आयु बंध होता है। आयुबंध के विस्तार से कारणों को जानने के लिए निम्न स्थल दृष्टव्य हैं :तत्त्वार्थसूत्र अध्याय-६, सर्वार्थसिद्धि अध्याय-६, राजवार्तिक अध्याय-६, श्लोकवार्तिक अध्याय ६, तिलोयपण्णत्ति २/२९३-९४ - ३०३, ४/३६५ आदि ४/५०४, ४/२५००-२५११, ३/१९८ आदि, ८/५५६ आदि, ७/६१६, ८/६४६ आदि तत्त्वार्थसार ४/३०- गोम्मटसार कर्मकाण्ड ८०४ आदि भगवती आराधना ४४६ टीका, १८१ टीका त्रिलोकसार ४५० आदि । इनमें विस्तार से आयु बंध के विविध लोकगम्य कारणों का निर्देश किया गया है। गतियों में आयु परिमाण प्रथम नरक में जघन्य आयु १० हजार वर्ष होती है, उत्कृष्ट १ सागर होती है । दूसरे नरक में जघन्य १ समय अधिक १ सागर तथा उत्कृष्ट तीन सागर है। तीसरे नरक में जघन्य आयु १ समयाधिक ३ सागर तथा उत्कृष्ट ७ सागर है । चौथे नरक में जघन्य आयु १ समय अधिक ७ सागर तथा उत्कृष्ट १० सागर है। पाँचवी पृथ्वी में जघन्य आयु समयाधिक १० सागर उत्कृष्ट १७ सागर है । छठी पृथ्वी में जघन्य आयु १ समयाधिक १७ सागर तथा उत्कृष्ट आयु २२ सागर है । सातवीं पृथ्वी में जघन्य आयु १ समय अधिक २२ सागर उत्कृष्ट आयु ३३ सागर है। तिर्यंचों में पृथ्वी कायिक (शुद्ध) की उत्कृष्ट आयु १२००० वर्ष तथा खर पृथ्वी कायिक की २२ हजार वर्ष है । शेष अप् तेज वायु वनस्पति द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय की उत्कृष्ट आयु क्रमश: ७ हजार, ३ दिन रात, ३ हजार वर्ष, १० हजार वर्ष, १२ वर्ष,४९ १. जो आचार्य भोग भूमि में अकाल मरण मानते है (धवल १५/२९९ तथा संतकम्मपंजिया पृ.७८) उनके मतानुसार ___ भी भोग भूमि में विविध आयु विकल्प बन जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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