Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 13
________________ -१२ प्रा०प्र०,प्राय० प्र० या प्रायश्चित्त प्र०=प्रायश्चित्तप्रकरण | राज० र० या राजनीतिर चण्डेश्वर का राजनीतिप्राय० प्रका० या प्रा० प्रकाश प्रायश्चित्तप्रकाश रत्नाकर प्राय० वि०, प्रा० वि० या प्रायश्चितवि० प्रायश्चित्त- | वाज० सं० या वाजसनेयीसं० वाजसनेयीसंहिता विवेक वायु०-वायुपुराण प्रा० म० या प्राय० म०प्रायश्चित्तमयूख वि० चि० या विवादचि० वाचस्पति मिश्र की विवादप्रा० सा० या प्राय० सा० प्रायश्चित्तसार चिन्तामणि बु० मू०=बुधभूषण वि० र० या विवादर०-विवादरत्नाकर बृ० या बृहस्पति०=बृहस्पतिस्मृति विश्व० या विश्वरूप०=याज्ञवल्क्यस्मति की विश्वबृ० उ० या बृह० उप०=बृहदारण्यकोपनिषद् रूपकृत टीका बृ० सं० या बृहत् सं०=बृहत्संहिता विष्णु-विष्णुपुराण बौ० गृ० सू० या बौधायनगृ०=बौधायनगृह्यसूत्र विष्णु० या वि० ध० सू०=विष्णु धर्मसूत्र बौ० ध० सू० या बौघा० ध० या बौधायनध०=बौधायन- वी० मि०-वीरमित्रोदय धर्मसूत्र वै० स्मा० या वैखानस० वैखानसस्मार्तसूत्र बौ० श्री० सू० या बौधा० श्री० सू०=बोधायनश्रौतसूत्र व्यव० त० या व्यवहारत:-रघुनन्दन का ब्र०, ब्रह्म० या ब्रह्म पु०=ब्रह्मपुराण व्यवहारतत्त्व ब्रह्माण्ड ब्रह्माण्डपुराण व्य० नि० या व्यवहारनि०-व्यवहारनिर्णय भवि० पु० या भविष्य भविष्यपुराण व्य० प्र० या व्यवहारप्र=मित्र मिश्र का व्यवहारप्रकाश मत्स्य मत्स्यपुराण व्य० म० या व्यवहारम०= व्यवहारमयूख म. पा. या मद० पा०-मदनपारिजात व्य० मा० या व्यवहारमा०=जीमतवाहन की व्यवहारमनु या मनु०-मनुस्मृति मातका मानव० या मानवगृह्य मानवगृह्यसूत्र व्यव० सा०-व्यवहारसार मिता०=मिताक्षरा (विज्ञानेश्वर कृत याज्ञवल्क्यस्मृति- श० ब्रा० या शतपथब्रा० -- शतपथब्राह्मण __की टीका) शातातप० =शातातपस्मृति मी० को. या मीमांसाको० मीमांसाकौस्तुभ | शा० गृ० या शांखायनगृ? --- शांखायनगृह्यसूत्र (खण्डदेव) शां० ब्रा० या शांखायनबा०--शांखायनब्राह्मण मेधा० या मेधातिधि-मनुस्मृति पर मेधातिथि की टीका शां० थी० म० या शांखायनश्रौत०-शांखायनश्रौतसूत्र या मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि शान्ति०--शान्तिपर्व मंत्री० उप०-मैत्र्युपनिषद् शुक्र० या शुक्रनीति० -शुक्रनीतिसार मै० सं० या मैत्रायणी सं०=मैत्रायणी संहिता शूद्रकम० :- शूद्रकमलाकर य० ध० सं० या यतिधर्म०=यतिधर्मसंग्रह शु० कौ० या शुद्धिकौ०= शुद्धिकौमुदी या०, या याज्ञ०=याज्ञवल्क्यस्मृति शु० क० या शुद्धिकल्प० = शुद्धिकल्पतरु (शुद्धि पर) राज कल्हण की राजतरंगिणी शु० प्र० या शुद्धिप्र० -शुद्धिप्रकाश राध० को० या राजघ० को०-राजधर्मकौस्तुभ श्रा० क० ल० या श्राद्धकल्प०=श्राद्धकल्पलता रानी०प्र० या राजनी०प्र०=मित्र मिश्र का राजनीति- | श्रा० कि० को० या श्राद्धक्रिया० श्राद्धक्रियाप्रकाश कौमुदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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