Book Title: Dharmratna Prakaran Part 03 Author(s): Shantisuri, Labhsagar Publisher: Agamoddharak Granthmala View full book textPage 5
________________ किञ्चिद्-वक्तव्य सुज्ञ विवेकी पाठकों के समक्ष भाव-साधु के लक्षणों का वर्णन-स्वरूप श्री धर्मरत्न-प्रकरण ( हिन्दी-अनुवाद ) का यह तीसरा भाग प्रस्तुत किया जा रहा है। ___इस ग्रंथ-रत्न में भाव-साधु के सात लक्षणों का सुन्दर वर्णन कथाओं के साथ किया गया है । इस चीज को लेकर बाल-जीवों को यह ग्रन्थ अत्युपयोगी है। ___इस चीज को लक्ष्य में रखकर आगम-सम्राट् बहुश्र त ध्यानस्थ स्वर्गत प्राचार्य श्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराज के सदुपदेश से वि० सं० १९८३ के चातुर्मास में वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी महाराज के प्रथम शिष्य मुनिराज श्री अमृतमागर जी महाराज के आकस्मिक काल-धर्म के कारण उन पुण्यात्मा की स्मृति-निमित्त श्री जैन-अमृत-साहित्य-प्रचार समिति' की स्थापना उदयपुर में हुई थी। जिसका लक्ष्य था विशिष्ट-ग्रन्थों को हिन्दी में रूपान्तरित करके बाल-जीवों को हितार्थ प्रस्तुत किये जाय । तदनुसार श्राद्ध-विधि (हिन्दी) एवं श्री त्रिषष्टीय-देशना संग्रह (हिन्दी) का प्रकाशन हुआ था, और प्रस्तुत ग्रन्थ का हिन्दी-अनुवाद मुद्रण योग्य पुस्तिका के रूप में रह गया था । उसे पूज्य गच्छाधिपति श्री की कृपा से संशोधित कर पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है। विवेकी आत्मा इसे विवेक-बुद्धि के साथ पढकर जीवन को सफल बनावें। लि. संशोधकPage Navigation
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