Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्म संसारमार्गश्चानाद्यनिधनन्नवपथाः, तस्य संतोषवतः सुखत्तोरः सुलंध्यो, वामेतरकरे दक्षिणवादा यः / का स्य कस्यापि संतोषः संतुष्टता संबलं पथ्यदनं वरं प्रधानमिति. // 1 // ननु कथं धनं विना संतो. पवतां सुखं नवतीत्याह // मूलम् ॥-संतोषामृततृप्तानां / यत्तेषां सुखमुत्तमं // कुतस्तधनबुब्धानां / दिवारात्रौ च धावतां // 1 // व्याख्या-संतोषामृततृप्तानां संतोषपीयूषप्रीणितानां यदित्यनाख्येयं तेषां संतोषवतां सुख शर्मोत्तम प्रधान जवति, तदिति सुखं धनबुब्धानामर्थगृधिमतां दिवारात्रौ वा रात्रि दिवं च | धावतां प्रसर्पतां कुतः? न कुतोऽपीत्यर्थः. // 1 // सांप्रतं यहशेन सत्वाः सुखिनो जति तं संतोषं नमस्कुर्वन्नाह // मूलम् ।।–दुःखदारुकुगराय / बह्वाशापाशनाशिने // निःशेषसुखमूलाय / संतोषाय न मोनमः // 1 // व्याख्या-सुःखदारुकुठारायेत्यशर्मदारुविदारणपरशवे, बह्वाशापाशनाशिने प्रभूत| वांगबंधनविनाशकाय, निःशेषसुखमूलाय समस्तशर्मकारणाय संतोषाय संतुष्टये नमोनमोऽतिशये. / न नमस्कारोऽस्तु. // 1 // इह लोक एव संतोषफलमाह P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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