Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ 37 धर्म | रिका चेति / सुरूपं मिंजकद्वयं // कदलीगर्नसंकाशं / सर्वावयवसुंदरं // 35 // अथाचाणि हि / तार्थिन्या / जनन्या सा निजांगजा // यथा मिंजक्युग्मं ते / नेदं सुंदरि सुंदरं // 36 // यतस्ते जनिता तेन / गर्नस्थेनापि वेदना // अत्यंत दुःसहा वत्से / तदिदं त्यज्यतामिति // 37 // त. यावाचि करिष्यामि / जननि तावकं वचः // किंतु प्रपालयाम्येत–कतिचिदिवसानहं // 30 // | दशाहोत्सवमेतस्य / तावदंव करोम्यहं // पश्चाच पूरयिष्यामि / सर्वीस्तव मनोरथान् / / 35 // एवं तर्हि विधेहीति / प्रतिपन्ने तया ततः // तदपत्ययुगं सापि / पालयामाप्त यत्नतः // 40 // समग्रा. निष्टसंपत्त्या / हृद्यमितहिताशनैः // पालयंत्यास्ततस्तस्या / दिनानां दशकं गतं // 41 // अथाकारि तयोः कृत्यं / दशाहोत्सवसंजवं // सर्व सर्वजनानंद-कारकं सुमहर्षिभिः // 42 // ततः कुबेरदत्तेति / नामांकं मुष्किादयं // कारयित्वा तया बई / कंठे बालकयोस्तयोः // 43 // ततश्च चा. रुमंजूषा / प्रत्यया प्रगुणीकृता // विस्तीर्णमध्यनागोरु-विन्यस्तमृदुतूलिका // 4 // तूलिकोपरि | तद्युग्मं / शायितं च ततस्तया // अश्रुपातं विमुंचंत्या / वरवस्त्रसमावृतं // 45 // ततश्च पिहितहारा। सा मंजूषा सुसंवृता / नीरंध्रीकृतसागा / तालिता बशृंखला // 46 // ततश्चासौ समुत्पा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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