Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्म अथ महेश्वरेणोक्तं / पश्याहो यददत्तक / परस्परमिदं युग्मं / जातं प्रेमानुरक्तकं // 70 // / अयं कुबेरदत्ताख्यः / पुतस्तेऽतीववल्सनः // मत्पुत्रिकावियोगेन / प्राणानुनति निश्चितं // 1 // | श्यं कुबेरदत्तापि / मत्पुत्री बंधुवत्सला // निजात्मनो वियोगेन / नूनं प्राणैर्विमुच्यते // 7 // | तदहो यददत्तात्र / संगतमिदमेव हि // अन्योन्यमनयोरेव / यहिवाहो विधीयते // 3 // अथानंदितचित्तोऽसौ / यदादत्तोऽब्रवीदिदं // साधु साधु त्वया प्रोक्तं / श्रेष्टिस्तक्रियतामिति // 14 // ततश्चोनयसंमत्या / निजकापत्ययोस्तयोः // कारितं सर्वसामय्या / पाणिग्रहणमंगलं // 75 // श्र. थैव तिष्टतोस्तत्र / संपादितविवाहयोः // अन्योन्यं परमप्रेम-तंतुन्निडचेतसोः // 76 // नित्यं नानाप्रकाराजिः / क्रीमाभिः क्रीमतोरलं // संपद्यमाननिःशेष-तुंगनोगोपनोगयोः // 9 // अ. खेमसुखसंदोह-समुांतर्निमग्नयोः // अतियाति तयोः कालः। स्वर्ग स्वर्गीकसामिव // 9 // त्रिभिर्विशेषकं // अन्यदा घृतसक्ताभ्यां / ताभ्यां ग्रहणके किल // संचारिते स्वनामांके / वे मु. | द्रिके परस्परं / / 7 // ततः कुबेरदत्तोऽसौ / ददर्शाथ कथंचन // सत्कां कुबेरदत्ताया-स्तां ना. | मांकितमुडिकां // 70 // ततो विचिंतयामास / यथेयं ननु मुदिका // मन्मुदिकासमानैव / वर्णी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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