Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 394
________________ धर्मः / कघटनादिन्निः // 1 // नाव्यं च कारणेनात्र / ननु केनापि निश्चितं // अतः पृनामि गत्वाहं / वृत्तांतं पितरं निजं // 2 // संचिंत्यैवं निजे चित्ते / यूतक्रीडां विमुच्य च // गत्वा पितुः समीपे. ऽसौ / तं वृत्तांतमपृचत // 73 // यदादत्तोऽपि निबंध / ज्ञात्वा तस्या निवर्तकं // मूलादारज्य निःशेषं / तं वृत्तांतं न्यवेदयत् // 4 // ततः श्रुत्वा पितुः पार्श्वे / सर्व व्यतिकरं निजं // पाणिग्रह गुपयेतं / मंजूषादर्शनादिकं // 5 // स. एवं चिंतयामास / नूनमेषा मम वसा // नार्याजावोडपि नैवास्या-मभून्मम कदाचन // 6 // तदेव सुंदरं जातं / यदकृत्यं न सेवितं // मया मोह विमूढेन / सहोदर्या तया सह / / 77 // अहो दुरंत एवायं / घोरः संसारसागरः // यन्मध्यवर्तिनः सत्वाः / प्राप्नुवंति विमंबनां // 7 // मातापि वत्सला नृत्वा / गार्या यत्र प्रजायते // नार्यापि मातृजावेन / धिक्संसारविमंबनां // // खंसा नृत्वा जनी यत्र / जनी नृत्वा वसा भवेत् // माता सुता सुता माता / यत्रासौ निर्गुणो नवः // 50 // एवमादि विचिंत्यासौ / संसारासारतां गतः // गत्वा कुबेरदत्तायाः / सर्वमाख्यद्यथा श्रुतं // 1 // उक्तवांश्च यथा नऊ। खेदं चेतसि माकृथाः / / यत ईदृश एवायं / नानानर्थभृतो जवः // ए॥ इत्यादिग्निः प्रियैर्वाक्यै-नववरस्य Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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