Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 398
________________ धर्मः // 2 // ततः प्रकथ्य वृत्तांत / मूलतः सर्वमेव हि // बनाण नात्रकाणां च / सा संबंधान्निधित्सः | या // 27 // येनाहं जनताध्यदं / परिणिन्ये त्वया किल / तेनायं मे शिशुः पुत्रो। भवतीत्य वगम्यतां // 30 // मम मातुः सुतो येन / तेन जाता जवत्ययं // येन पुत्रो मम नातु-स्तेन मे 37 ज्रातृजोऽपि हि // 31 // येन जाता मम नर्तु-स्तेनायं देवरो मम // इत्ये तैरेष संबंधी। चतु. मिर्मम नात्रकैः // 32 // पितापि पुनरेतस्य / मातुर्मे येन नंदनः // तेनायं नवति त्राता / येनो ढा तेन मे पतिः / / 33 / / सपल्या जात इत्येष / पुत्रो मे तेन बालकः // मन्मातुर्येन नायं / जनकोऽपि च तेन मे // 34 // माता या बालकस्यास्य / माता सैव ममावि हि // ये नैष जननीभर्तु-स्तेन श्वश्रूरियं मम // 35 // येन जातुश्च नार्येयं / व्रातृजाया च तेन मे // येन जा. र्या च मे भर्तुः / सपत्नीयं ततो मम // 36 // ततः कुबेरदत्तोऽपि / समाकर्ष्यार्यिकावचः // थ. त्यंत खेदमापन-श्चिंतयामास मानसे // 37 // अरेरेऽहं महामूढो / महादुःकृतकारकः // पापा. नामप्यहं पापो / जघन्यानां जघन्यकः // 30 // यन्मयेदमकर्तव्यं / लोके शास्त्रे च निंदितं // | मातर्यपि महापापं / महापापेन सेवितं // 35 // अहो ह्यज्ञानमूढेन / कामाकुलितचेतसा / कृ. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.

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