Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 401
________________ धर्म- सर्वदोषविषापहं / सहिवेकस्फुरऽत्नं / दत्तं मेऽद्य त्वयैव हि // 64 // अतो मे तावकं वाक्यं / रु. / चितं हितगाषिणि // गृहीष्येऽहमिमां दीदां / सर्वपापप्रणाशिनी // 65 / / ततस्तां च प्रणम्यासौ / समुबाय च सत्वरं // गत्वा गृहे निजं लोकं / समाकारितवानथ // 66 // ततस्तं सर्वमापृज्य / 400 सन्मान्य च यथोचितं // कृत्वा चास्य कुटुंबस्य / सर्वस्यापि च सुस्थितं // 67 // धर्मस्थानेषु निःशेषं / खं द्रव्यं विनियोज्य च // दीनादिज्यो यथाशक्त्या / दानं दत्वानुकंपया / 60 / / तथा कु. बेरसेनां च / जवनैर्गुण्यदर्शकैः // हितैः पथ्यैः प्रियैर्वाक्यैः / संतोष्य च सविस्तरं / / 65 // श्यादि सकलं कृत्वा / कृत्यं तत्समयोचितं // मित्रपुत्रकलत्रादौ / स्नेहं मोहं विमुच्य च // 10 // त. तो जग्राह सद्दीदां / सर्व संगं विमुच्य सः // तथाविधसुसाधूनां / समीपे समतायुतः / / 71 // पं. चन्निः कुलकं / / श्रथ कुबेरसेनापि / तहियोगेन दुःखिता // अनुभूतश्रुतासार-नानारूपविम्बना // 7 // तस्याः कुबेरदत्ताख्य-वतिन्याश्चरणांतिके // नित्यं शुश्राव सध्मः / सर्वकल्याणकारकं // 13 // युग्मं // अन्यदा सा बजाणैवं / यतिधर्मोऽतिदुष्करः // नाहमेनं दमा कर्तु / गेहवासाजिनंदिता | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.

Loading...

Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404