Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्मः | गं स्पृशंति च // गवां मूत्रं पिबत्यन्ये / ह्यन्ये पंचगवं तथा // 55 // शुध्यर्थ स्त्रांति तीर्थेषु / वि। शंत्यन्ये हुताशने // तथापि नैव शुध्यति / विना दीदां जिनोदितां // 53 // किंच शौचं विना शुधि-र्जायते न कदाचन // सत्वाहिंसादिकं तच्च / यतः प्राहुर्मनीषिणः // 14 // सर्वजीवदया 3 // शौचं / शौचं सत्यप्रनाषणं // अचौर्य ब्रह्मचर्य च / शौचं संतोष एव च // 55 // कषायनिग्रहः शौचं / शौचमिडियनिग्रहः॥ प्रमादवर्जनं शौचं / ध्यानं शौचं तथोत्तमं / / 56 // दृष्टयोगजयः शौचं / शौचं वरविवेकिता // तपो द्वादशधा चैव / शौचमाहुर्मनीषिणः // 27 // सर्वज्ञोक्तेन वृ. तेन / तत्सर्वं च दयादिकं // शौचं संपूर्णमेवास्ति / सदांतरात्मशुधिकृत् // 27 // अथ कुबेरद त्तोऽपि / श्रुत्वा चैतत्तदंतिके | जगाद संस्तुवन्नेवं / तां परमोपकारिणीं // 27 // त्वमार्ये धर्ममातासि / त्वमेव मे सहोदरी // कल्याणमालिका मूला। त्वमेव मम सशुरुः // 60 // अकृत्यागा. धगर्तायां / दुर्गमायां निमज्जतः // दत्तो हस्तावलंबो मे / त्वयैव हितकारिणि // 61 // अकृत्य सेक्नोपात्त-पापपंकमनंतकं // धर्मोपदेशनीरेण / पदालितं त्वया मम // 6 // त्वमझानमहा| ध्वांत-ध्वंसनैकरविप्रजा / / कटपपादपशाखेव / संकल्पितफलप्रदा // 63 / / समग्रसंपदां मूलं / PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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