Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 397
________________ धर्म- | मेण सह साध्वीजि-जगाम मथुरां पुरीं // 17 // ततः कुबेरसेनाया। गेह एव गतस्मया // य. याचे सर्वदोषौघ-विनिर्मुक्तमुपाश्रयं // 17 // दत्तस्तयापि सानंदं / निरवद्य उपाश्रयः // तस्थौ तत्रैव सा तुष्टा / तत्पतिबोधहेतवे // 17 // अन्यदाच रुदंतं तं / वीक्ष्य खत्रातृपुत्रकं / गत्वा वेगेन तद्देशे। जग्राह करसंपुटे // 20 // तयोः समदमे वैनं / निवेश्यांके निजे ततः // एवं प्रो. वाच सा वाक्यैः / परस्परविरोधिधिः // 21 // यथा त्वं मम पुत्रोऽसि / ब्राता च मे सहोदरः॥ भ्रातृव्योऽसि च मे वत्स / मम त्वं देवरोऽसि च // 2 // तव पितापि यो वत्स / स मे त्राता पिता पतिः // ममायं श्वशुरश्चैव / भवत्येव न संशयः // 23 // येयं ते. जननी वत्स / माता श्वश्रूः | वसा मम // सपत्नी ब्रातृजाया च / भवत्येषा सुनिश्चितं // 24 // बमुल्लापयंती तं / बालकं च मुहुर्मुहुः // श्रुत्वा कुबेरदत्तोऽपि / तदंतिकमुपागतः // 25 // उवाच च यथार्ये त्वं / किमित्येवं प्रजाषसे / / वचनानि विरुधानि / मदीयं पुत्रकंप्रति // 16 // .... एवमुक्ता सती सापि / तंप्रत्याह प्रबुध्धीः // विरुद्धं नैव नाषेऽहं / धर्मशीला कदाचनः // // 7 // यन्मया नाषितं जाऊ / तदेतत्सत्यमेव हि // यथा च सत्यमेवेदं / तथाकर्णय कथ्यते॥ Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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