Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 395
________________ 374 धर्म- | दीपकैः // प्रतिबोध्य पितुर्गेहे / प्रेषयामास तामसौ // 3 // ततश्च पितरं पृष्ट्वा / ऽव्योपार्जनटीका| हेतवे // कृत्वावशेषसामग्रीं / जगाम मथुरां पुरीं / ए४ // व्यवदन्नसौ तत्र ! विविधक्रय विक्रयैः // प्रऋतमर्जयामास / ऽव्यं पुण्यानुजावतः // 5 // अथ कुबेरसेनाख्यां / वेश्यामपश्यदन्यदा // ख्यातकीर्ति स्वकामेव / जननी पूर्ववर्णितां // 6 // ततस्तस्याः सुरूपत्वा-कामाकुलितमानसः // काले गबति तामेव / चक्रे च स्वपरीग्रहे // ए // तत्रैव विदधत्सर्व / नोजनस्नपनादिकं // पु. त्रमुत्पादयामास / तस्यामेव स्वमातरि // ए // श्तश्च अथ कुबेरदत्तापि / वसतिस्म पितुर्दाहे // कुर्वती धर्मकार्याणि / यथाकामं यथावलं // // तमेव निजवृत्तांतं / चिंतयंती दिवानिशं // संसारस्य च वैरस्यं / जावयंती दणे दणे // 10 // शुश्राव सुव्रताख्याया। गणिन्याश्चरणांतिके // सर्वजाषितं धर्म / जावतः प्रतिवासरं // 1 // न्यदा जातवैराग्या / संसारोबेदकारणं // गणिन्याः सुव्रताख्यायाः / समीपे व्रतमाददे // 2 // ततः श्रुतमधीयाना / संवेगातिशयादियं // षष्टाष्टमादिकं तेपे / तपस्तीवं सुदुष्करं // 3 // एवं सर्वा | प्रकुर्वत्याः / सामाचारों यथोदितां // संसारासारतां चैव / भावयंत्या विशेषतः // 4 // वर्धमानशु. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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